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This Article is From Jul 05, 2015

इन वजहों से आर्थिक संकट में फंसा ग्रीस

इन वजहों से आर्थिक संकट में फंसा ग्रीस
ग्रीस में प्रदर्शन की फाइल तस्वीर
नई दिल्ली:

आज ग्रीस में रायशुमारी जारी है कि आखिर वह किस प्रकार आर्थिक संकट से निकलने के लिए तैयार होता है। क्या जनता यूरोपियन यूनियन की तय शर्तों को मानेगी और बेल आउट पैकेज लेकर कोई रास्ता तय करेगी या फिर अपने आप दिवालिएपन का संकट झेलते हुए कोई नया कदम उठाएगी। सवाल उठता है कि दुनिया को राह दिखाने वाले ग्रीस जिसे यूनान भी कहा जाता है, आज इस संकट की स्थिति में क्यों है। इसके पीछे क्या कारण हैं... आइए जानते हैं...

यूनान के इस संकट में जाने के पीछे के कारणों में इस देश का इतिहास भी है। जानकारों का मानना है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहां पर जर्मन सैनिकों के दबाव में लोगों ने काफी छोटे-छोटे कामों में रुचि दिखाई और उसे ही अपना लिया। इस स्थिति को और भयावह बनाया कम्यूनिस्टों ने और सरकारी कर्मचारियों के खर्चों ने। इसका असर यह हुआ कि देश धीरे-धीरे सिविल वार की ओर चला गया। कहा जाता है कि 1949 की एक सरकारी आर्थिक नीति ने देश को आर्थिक रूप से और कमजोर कर दिया और इससे राजनीतिक रूप से भी देश को आगे चलकर काफी नुकसान हुआ।

आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके ग्रीस की यह स्थिति करीब तीन दशकों तक बनी रही और 1980 के दशक में जाकर शांत हुई जब देश छोड़कर जा चुके कम्यूनिस्टों और यहां की राजनीतिक व्यवस्था के बीच में एक समझौता हुआ।

यूरो को स्वीकारना
1990 के दशक में बजट में काफी घाटा रहा और जो निरंतर बढ़ता ही गया। हालात इतने खराब हो गए कि यहां की करेंसी ड्रैक्मा की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में बदतर हो गई। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि 2001 में ग्रीस को न चाहते हुए भी यूरो को स्वीकारना पड़ा जो 1999 से अस्तित्व में आ चुका था। 1999 से ही यूरोपियन देशों ने यूरोजोन बनाकर वहां पर एक करेंसी यूरो का चलन आरंभ किया था ताकि वहां पर लोगों को सहूलियत रहे।

2011-2007 तक तेजी
बताया जाता है कि यूरो से जुड़ने के कुछ समय बाद से ग्रीस की अर्थव्यवस्था में काफी तेजी देखी गई। 2001 से 2007 तक ग्रीस ने काफी तरक्की की। वहीं, तमाम अर्थशास्त्री इस विकास को अस्थाई बता रहे थे। उनका मानना था कि ग्रीस में जो भी विकास हुआ वह यूरोपियन यूनियन से मिल रहे सस्ते लोन की वजह से था।

2008 की मंदी स्थिति बिगड़ी
वहीं जब 2008 में जब पूरे विश्व में मंदी का दौर आया, अन्य यूरोपियन देशों के साथ ग्रीस की स्थिति भी बिगड़ी, लेकिन यहां स्थिति बाकी देशों से ज्यादा खराब हुई। ऐसे में बाजार में करेंसी को ज्यादा डालकर ग्रीस ने अपने आप को खड़ा करने का प्रयास किया। यूरो का नियंत्रण यूरोपियन सेंट्रल बैंक के पास है। ऐसे में बाजार में पैसा तो आया लेकिन रोजगार पैदा नहीं हुआ और बेरोजगारी बढ़ गई। बताया जाता है कि इस दौरान ग्रीस में करीब 28 प्रतिशत बेरोजगारी की दर पहुंच गई थी।

पहला बेलआउट पैकेज
ऐसे में आर्थिक संकट से घिरे ग्रीस की मदद के लिए यूरोपियन यूनियन आगे आया और बेलआउट पैकेज दिया। 2010 में ट्रोयका (ईसीबी, आईएमएफ, यूरोपियन कमिशन) ने ग्रीस को मदद के लिए अपने खर्चों में कमी करने की शर्त रखी। साथ ही अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए टैक्स बढ़ाने के सुझाव दिए। ग्रीस में तमाम लोगों को यह बात स्वीकार नहीं थी। लेकिन असर अर्थव्यवस्था पर दिखा।

दूसरा बेलआउट पैकेज
इसके बाद ग्रीस को दूसरा बेलआउट पैकेज भी दिया गया। बावजूद इसके अर्थव्यवस्था में न तो ज्यादा सुधार हुआ और न ही बेरोजगारी की दर में ज्यादा फर्क पड़ा। इस दौरान बेरोजगारी की दर 25 प्रतिशत तक हो गई। और देश पर जीडीपी का 18 प्रतिशत कर्ज हो गया। यही वर्तमान स्थिति है।

पेंशन फंडों पर सवाल
ऐसे में यूरोपियन यूनियन की ओर से पेंशन फंडो, लेबर बाजार में सुधार, सरकारी खर्चों में कटौती और बजट को घाटे से उबारने की शर्तों के बीच ग्रीस की सरकार ने बातचीत आरंभ की है। लेकिन ग्रीस की ओर शर्तों का न मानने का इशारा बार बार किया जा रहा है। और मदद न मिलने पर वह यूरो यूनियन से बाहर होने की धमकी भी दे रहा है।

2008 और 2010 के बेलआउट पैकेज के बाद से कई बड़े अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने ग्रीस से अपना पैसा वापस निकाल लिया।

ग्रीस पर सख्त यूरोपियन यूनियन
जानकार मांग रहे हैं कि मामले में जर्मनी, स्पेन और आइरिश ने सख्त रुख अपना लिया है। उनका कहना है कि जब तक ग्रीस कड़े आर्थिक नियमों का पालन नहीं करेगा, उसकी स्थिति में बदलाव नहीं आएगा। अब देखना होगा कि आखिर कब तक ग्रीस, इस यूनियन में बना रहता है।

कहां जा रहा है कि बेलआउट पैकेज का पैसा
आखिर कहां जा रहा है कि बेलआउट पैकेज का पैसा। जानकार बता रहे हैं कि ग्रीस को जो भी मदद मिली ग्रीस ने उसका सर्वाधिक हिस्सा अंतरराष्ट्रीय लोन का पैसा चुकाने में दे दिया जबकि यह पैसा अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए लगाया जाना था ताकि कुछ तेजी आ सके।  

ग्रीस की टैक्स व्यवस्था
इसके अलावा यहां की टैक्स व्यवस्था पर तमाम प्रश्न उठते हैं। कहा जाता है कि यहां छह बैंड हैं और सबसे ज्यादा रईस बैंड शिपिंग से जुड़ा हुआ है और इसे टैक्स फ्री जोन के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा करीब 133 अलग-अलग पेंशन फंड हैं।

नई नौकरियों पर सवाल
ग्रीस की वर्तमान सरकार पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह 13000 और सरकारी पदों को बनाकर कर्मचारियों की नियुक्ति करेगी। इन पदों को पिछली सरकारों ने समाप्त किया था। साथ ही सरकार ने यह भी घोषणा की है कि 15000 सरकारी ब्रॉडकास्ट भी काम पर लिए जाएंगे।

सैलरी कम करने का दबाव
एक समय यह भी था कि जब ग्रीस सरकार ने अपने खर्चों में कटौती की तब यूनियन की तरफ से कहा गया कि वह अपने यहां सैलरी कम करे। असर यह हुआ कि जब देश का रक्षा बजट वहीं का वहीं रहा, लेकिन फौजियों की तनख्वाह में 40 प्रतिशत की कटौती कर दी गई। बाद में यही हाल डॉक्टरों, नर्सों का भी हुआ और अन्य सरकारी संस्थानों में भी ऐसा किया गया।

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