
ईरान में तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के हमले के बाद दुनिया भर के नेताओं की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. कुछ देशों ने इस कार्रवाई का समर्थन किया है तो कुछ ने इसकी कड़ी निंदा की है. जबकि संयुक्त राष्ट्र ने इसे बेहद खतरनाक कदम बताया है. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस हमले को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा: "राष्ट्रपति ट्रंप ने साहसिक फैसला लिया है. उन्होंने दुनिया के सबसे खतरनाक शासन को सबसे खतरनाक हथियार हासिल करने से रोकने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है."
संयुक्त राष्ट्र ने जताई चिंता
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अमेरिका की सैन्य कार्रवाई पर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने कहा: "यह हमला पहले से ही तनाव से भरे क्षेत्र को और अधिक अस्थिर बना सकता है. यह अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए गंभीर खतरा है. किसी सैन्य समाधान का रास्ता नहीं है – समाधान सिर्फ बातचीत से ही निकलेगा."
ये एक "सैन्य आक्रमण"
वेनेजुएला के विदेश मंत्री ने अमेरिका की इस कार्रवाई को "सैन्य आक्रमण" करार देते हुए इसकी कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि यह हमला इजरायल के कहने पर हुआ और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए. वहीं क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल डियाज-कैनेल ने भी हमले की निंदा करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया. उन्होंने कहा – यह पूरी दुनिया को एक खतरनाक संकट की ओर ले जा रहा है.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची ने कहा "अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन किया है. यह हमला ईरान की संप्रभुता पर हमला है और इसके गंभीर परिणाम होंगे. ईरान हर जरूरी कदम उठाने का अधिकार रखता है." जबकि मैक्सिको के विदेश मंत्रालय ने कहा कि मध्य पूर्व में जारी टकराव को सिर्फ बातचीत से सुलझाया जा सकता है. उन्होंने सभी पक्षों से तनाव घटाने की अपील की. न्यूज़ीलैंड के विदेश मंत्री ने कहा कि हालात बेहद चिंताजनक हैं और इस संघर्ष को और बढ़ने से रोकना ज़रूरी है. उन्होंने सभी देशों से फिर से बातचीत शुरू करने की अपील की.
इस हमले पर ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने कहा "ईरान का परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम वैश्विक शांति के लिए खतरा है. लेकिन हम फिर भी बातचीत और कूटनीति को ही सबसे सही रास्ता मानते हैं."
तो अमेरिका के इस हमले पर दुनिया बंट गई है कुछ इसके साथ हैं, कुछ इसके खिलाफ. लेकिन ज़्यादातर देश एक बात पर एकमत हैं – ये लड़ाई और आगे नहीं बढ़नी चाहिए. अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या इस तनाव को कूटनीति से रोका जा सकेगा या फिर ये दुनिया को एक और बड़े संघर्ष की ओर ले जाएगा?
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