वाशिंगटन:
मुंबई में 26 नवंबर, 2008 के आतंकवादी हमले के बाद बुश प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने पाकिस्तान को बताया था कि इस मामले में पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ होने के संबंध में पुख्ता खुफिया सबूत हैं। यह जानकारी समाचार पत्र 'वाशिंगटन पोस्ट' ने रविवार को एक रिपोर्ट में प्रकाशित की है। अखबार ने लिखा है कि दिसंबर, 2008 में हुई कई सारी बैठकों में इस्लामाबाद को इस चेतावनी से अवगत कराया गया था। उस समय पाकिस्तान को सौंपे गए एक लिखित दस्तावेज में कहा गया है कि हम इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं कि लश्कर-ए-तैयबा इस घटना के लिए जिम्मेदार है...हमें पता है कि उसे पाकिस्तानी सैन्य खुफिया सेवा से लगातार मदद मिल रही है। वर्षों तक पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा दी गई चेतावनियों का जिक्र करते हुए अखबार ने वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से लिखा है, ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के दो सप्ताह बाद भी ओबामा प्रशासन पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते के भविष्य को लेकर अनिश्चित और बंटा हुआ है। अखबार ने कहा है कि अल कायदा सरगना के राजधानी इस्लामाबाद के निकट ऐबटाबाद में पाए जाने के बाद ओबामा प्रशासन में कई लोग इस आतंकवादी संगठन के साथ पाकिस्तान के महत्वाकांक्षी संबंधों को बर्दाश्त करने के पक्ष में नहीं है। अखबार ने लिखा है, अमेरिका की बेअसर चेतावनियों के वर्षों बाद कई अमेरिकी अधिकारी यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि नीति में बदलाव लंबे समय से अपेक्षित हैं। अखबार ने लिखा है कि दोनों देशों के बीच बैठकों में हिस्सा लेने वालों ने इस बात की पुष्टि की है कि दोनों पक्षों के बीच हुई बहसों में अमेरिका ने बार-बार कहा था कि उसके पास पाकिस्तानी सेना और खुफिया अधिकारियों तथा अफगान तालिबान व अन्य आतंकवादी संगठनों के बीच संबंधों का अकाट्य सबूत है। इसके साथ ही अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि इन सभी के खिलाफ कार्रवाई करने से पाकिस्तान का इनकार महंगा साबित होगा। अखबार ने लिखा है कि अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि लादेन के ठिकाने के बारे में शीर्ष पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों या नेताओं को पता होने तथा उसे किसी तरह के आधिकारिक मदद होने के संबंध में उनके पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने के पास उसके ठिकाने का पाया जाना दोनों के बीच संबंधों को एक संदिग्ध बिंदु पर ले जाता है। खासतौर से व्हाइट हाउस के कुछ अधिकारियों ने कठोर कार्रवाई की वकालत की है। लेकिन कुछ अधिकारी उस सूरत में विकल्पों पर विचार किए जाने के पक्ष में हैं, जब पाकिस्तान कोई गलत रास्ता चुनता है। प्रशासन के अंदर का कोई भी व्यक्ति जल्दबाजी में कोई गलत निर्णय लेने के पक्ष में नहीं है।
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