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मतदाता सूची विवाद: क्या अब हम बिहार के नहीं रहे?प्रवासी लोगों का सवाल!

बिहार से दूर दिल्ली में बसे बिहारी प्रवासियों को चिंता सता रही है कि उनके बिहार स्थित गांव में परिवार के जिन सदस्यों के नाम पहले वोटर लिस्ट में थे, क्या वो इस बार भी शामिल होंगे या नहीं?

मतदाता सूची विवाद: क्या अब हम बिहार के नहीं रहे?प्रवासी लोगों का सवाल!
  • दिल्ली के किराड़ी इलाके में मिथिला विहार प्रवासी परिवारों का निवास स्थान है जो रोजगार की तलाश में आए हैं.
  • ये परिवार ज्यादातर मधुबनी और दरभंगा जिलों से संबंधित हैं.
  • चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए नए दस्तावेजों की आवश्यकता रखी है.
  • कमजोर तबके के लिए दस्तावेजों की अनिवार्यता एक बड़ी चुनौती बन गई है.
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नई दिल्‍ली:

बिहार से दूर, दिल्ली के किराड़ी इलाके में बसा मिथिला विहार उन प्रवासी परिवारों का ठिकाना है जो रोजी-रोटी की तलाश में अपने गांवों से यहां आकर बसे हैं. ज्‍यादातर लोग मधुबनी और दरभंगा जैसे जिलों से ताल्लुक रखते हैं. अब इनकी चिंता यह है कि उनके बिहार स्थित गांव में परिवार के जिन सदस्यों के नाम पहले वोटर लिस्ट में थे, क्या वो इस बार भी शामिल होंगे?

दस्तावेज मांग बनी बड़ी दीवार

चुनाव आयोग ने इस बार वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए कई दस्तावेजों की अनिवार्यता रख दी है. लेकिन मिथिला विहार जैसे इलाकों में रहने वाले कमज़ोर तबके के लिए यह फैसला एक मुश्किल बन गया है.

स्थानीय लोगों ने बताया 

'गांव में कई बच्चे घरों में ही पैदा हुए हैं. अब कहां से लाएं जन्म प्रमाण पत्र?' 
'गांव में लोगों का जब लोकसभा चुनाव में नाम था तो अब विधानसभा में कैसे कट जाएगा ?'
'क्या अब हम बिहार के नहीं रहे? सिर्फ़ दिल्ली में कमाते हैं तो हक़ भी छिन जाएगा?' 

ADR की याचिका सुप्रीम कोर्ट में

इस पूरे विवाद के बीच चुनाव सुधारों पर नजर रखने वाली संस्था ADR (Association for Democratic Reforms) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. संस्था का कहना है कि, 'चुनाव आयोग की यह नीति संविधान के खिलाफ है. इससे वो लोग जो गरीब हैं, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है.' 

मुद्दा सिर्फ कागज का नहीं, पहचान और हक का है

मिथिला विहार के लोगों का कहना है कि यह मामला सिर्फ दस्तावेजों का नहीं बल्कि उनकी पहचान, अधिकार और लोकतंत्र में हिस्सेदारी का है. 'हमने गांव छोड़ा है, पहचान नहीं.' ये भावनाएं हर गली, हर घर में सुनाई देती हैं. 

अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले और चुनाव आयोग के अगले कदम पर हैं. सवाल है, क्या लोकतंत्र के सबसे बुनियादी अधिकार, वोट का हक, को कागजों की दीवार के पीछे धकेल दिया जाएगा?
 

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