ओजोन परत (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती की सुरक्षात्मक ओजोन परत एयरोसॉल स्प्रे और शीतलकों (कूलन्ट) से हुए नुकसान से अंतत: उबर रही है. ओजोन परत 1970 के दशक के बाद से महीन होती गई थी. वैज्ञानिकों ने इस खतरे के बारे में सूचित किया और ओजोन को कमजोर करने वाले रसायनों का धीरे धीरे पूरी दुनिया में इस्तेमाल खत्म किया गया.
इक्वाडोर के क्विटो में सोमवार को हुए एक सम्मेलन में जारी किए गए वैज्ञानिक आकलन के मुताबिक, इसका परिणाम यह होगा कि 2030 तक ऊत्तरी गोलार्ध के ऊपर ओजोन की ऊपरी परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी और अंटार्टिक ओजोन छिद्र 2060 तक गायब हो जाना चाहिए. वहीं दक्षिणी गोलार्ध में यह प्रक्रिया कुछ धीमी है और उसकी ओजोन परत सदी के मध्य तक ठीक हो पाएगी.
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के प्रमुख पृथ्वी वैज्ञानिक और रिपोर्ट के सह प्रमुख ने कहा, “यह वाकई में बहुत अच्छी खबर है.” उन्होंने कहा, “अगर ओजोन को क्षीण बनाने वाले तत्व बढ़ते जाते तो हमें भयावह प्रभाव देखने को मिलते. हमने उसे रोक दिया.” ओजोन पृथ्वी के वायुमंडल की वह परत है जो हमारे ग्रह को पराबैंगनी प्रकाश (यूवी किरणों) से बचाती है. पराबैंगनी किरणें त्वचा के कैंसर, फसलों को नुकसान और अन्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती है.
इक्वाडोर के क्विटो में सोमवार को हुए एक सम्मेलन में जारी किए गए वैज्ञानिक आकलन के मुताबिक, इसका परिणाम यह होगा कि 2030 तक ऊत्तरी गोलार्ध के ऊपर ओजोन की ऊपरी परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी और अंटार्टिक ओजोन छिद्र 2060 तक गायब हो जाना चाहिए. वहीं दक्षिणी गोलार्ध में यह प्रक्रिया कुछ धीमी है और उसकी ओजोन परत सदी के मध्य तक ठीक हो पाएगी.
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के प्रमुख पृथ्वी वैज्ञानिक और रिपोर्ट के सह प्रमुख ने कहा, “यह वाकई में बहुत अच्छी खबर है.” उन्होंने कहा, “अगर ओजोन को क्षीण बनाने वाले तत्व बढ़ते जाते तो हमें भयावह प्रभाव देखने को मिलते. हमने उसे रोक दिया.” ओजोन पृथ्वी के वायुमंडल की वह परत है जो हमारे ग्रह को पराबैंगनी प्रकाश (यूवी किरणों) से बचाती है. पराबैंगनी किरणें त्वचा के कैंसर, फसलों को नुकसान और अन्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं