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16 छोटे ‘रॉकेट’ और एक कठिन मिशन… समझिए शुभांशु का यान हर सेकेंड 8 KM भागते स्पेस स्टेशन पर कैसे उतरेगा? 

Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: 28 घंटे की यात्रा के बाद ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट 26 जून को शाम के 4.30 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर डॉक करेगा. यह इतिहास में पहली बार होगा जब कोई भारतीय इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचेगा. 

Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: समझिए डॉकिंग होती क्या है.

  • शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में नया इतिहास बनाया. यह पहला मौका है जब कोई भारतीय ISS पर पहुंचेगा.
  • डॉकिंग प्रक्रिया ऑटोमेटेड होगी, लेकिन शुक्ला इसकी निगरानी करेंगे.
  • डॉकिंग के लिए स्पेसक्राफ्ट को सटीकता से ISS से जोड़ा जाएगा.
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Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: भारत के शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में नया इतिहास लिख रहे हैं. बुधवार, 25 जून को जब स्पेस मिशन Axiom-4 ने फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से सफल उड़ान भरी तो उसके 10 मिनट बाद ही उन्होंने नया कीर्तिमान खड़ा कर दिया था. 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में लौटा था. शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के Axiom-4 मिशन को SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट पर भेजा गया है. उन्हें SpaceX के ही फाल्कन 9 रॉकेट से लॉन्च किया गया. लगभग 28 घंटे की यात्रा के बाद एक और रिकॉर्ड बनेगा जब स्पेसक्राफ्ट गुरुवार, 26 जून को शाम के 4.30 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर डॉक करेगा. यह इतिहास में पहली बार होगा जब कोई भारतीय इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचेगा. 

यह डॉकिंग पार्ट स्पेस स्टेशन पर जा रहे किसी भी मिशन का अहम पार्ट माना जाता है. शुभांशु शुक्ला इस मिशन के पायलट हैं. भले यह डॉकिंग की प्रक्रिया ऑटोमेट होगी लेकिन मिशन पायलट के रूप में मिशन के महत्वपूर्ण डॉकिंग चरण की निगरानी करेंगे. 

अब आपके मन में सवाल आ सकता है कि आखिर यह डॉकिंग होती क्या है.

स्पेस स्टेशन पर डॉकिंग क्या होती है?

एकदम आसान भाषा में कहें तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से अपने स्पेसक्राफ्ट को उसके एकदम करीब जाकर दोनों को जोड़ना ही डॉकिंग कहलाता है. इस डॉकिंग के प्रॉसेस के बाद ही अंतरिक्ष यात्री स्पेसक्राफ्ट से निकलकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अंदर जाते हैं. 

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डॉकिंग कैसे होती है? 

डॉकिंग के लिए जरूरी है कि स्पेसक्राफ्ट स्पेस स्टेशन में मौजूद डॉकिंग साइट पर सटीकता के साथ जुड़े और दोनों अटैच हो जाएं. यह चरण काफी मुश्किल होता है क्योंकि ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को जिस स्पेस स्टेशन पर डॉक करना है वो खुद पृथ्वी से लगभग 418 किलोमीटर ऊपर लगभग 8 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से परिक्रमा कर रहा है. अब स्पेस स्टेशन के साथ जुड़ने के लिए स्पेसक्राफ्ट को एक लाइन में आना होता है, इसके लिए वो अपने अंदर लगे छोटे छोटे बूस्टर का उपयोग करता है, अपनी दिशा को बदलता है और सटीकता से आगे बढ़ते हुए ठीक डॉकिंग साइट पर जुड़ता है.

यह कहने और सुनने में जितना आसान है, असल में यह उतना ही मुश्किल है. डॉकिंग की यह प्रक्रिया कई चरणों में होती है. SpaceX के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में कुल 16 ड्रेको थ्रस्टर लगे हुए हैं. स्पेस स्टेशन की ओर बढ़ने के लिए वह अपने ऑर्बिट को बढ़ाता है और इसके लिए अपने 16 ड्रेको थ्रस्टर्स का उपयोग करता है. अपने ऑर्बिट को बढ़ाते हुए ड्रैगन स्पेस स्टेशन के नजदीक आता जाता है. SpaceX के अनुसार यह सब ऑटोनॉमस होता है यानी कंप्यूटर यह कठिन काम खुद करता है.

आखिर में ड्रैगन अंतिम अप्रोच अपनाता है और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के साथ डॉक करता है. इसके बाद प्रेशर मेंटेन किया जाता है और हर तरह के लीक की जांच के बाद हैच (गेट) खोला जाता है और क्रू मेंबर स्पेस स्टेशन के अंदर प्रवेश करते हैं.

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