संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को पांच महीने से अधिक समय से चल रहे इजरायल-हमास युद्ध को लेकर पहली बार तत्काल युद्धविराम की मांग की है. इस दौरान पिछले मसौदे पर वीटो करने वाले इजरायल के सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसमें भाग नहीं लिया. रमजान के चल रहे इस्लामी पवित्र महीने के लिए तत्काल युद्धविराम की मांग की गई. इसमें सुरक्षा परिषद की सभी 14 अन्य सदस्यों ने उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया.
प्रस्ताव में संघर्ष विराम के लिए स्थायी और टिकाऊ युद्धविराम के उपायों की मांग की गई, साथ ही कहा गया कि हमास और अन्य आतंकवादियों ने 7 अक्टूबर को पकड़े गए बंधकों को मुक्त कर दे.
रूस ने अंतिम समय में "स्थायी" युद्धविराम शब्द को हटाने पर आपत्ति जताई और मतदान बुलाया, जो पारित होने में विफल रहा.
संयुक्त राज्य अमेरिका ने युद्धविराम के लिए पिछले प्रयासों को वीटो कर दिया था, लेकिन इज़रायल के प्रति बढ़ती निराशा भी दिखाई, जिसमें भीड़भाड़ वाले दक्षिणी शहर राफा में अपने सैन्य अभियान का विस्तार करने की उसकी घोषित योजना भी शामिल है.
संयुक्त राज्य अमेरिका का अपने मध्य पूर्वी सहयोगी के प्रति रुख शुक्रवार को बदला देखा गया, जब 'तत्काल और निरंतर युद्धविराम' की 'अनिवार्यता' को मान्यता देने के लिए एक प्रस्ताव रखा गया.
हालांकि रूस और चीन ने उसे रोक दिया था, और अरब देशों के साथ मिलकर इज़रायल द्वारा गाजा में अपना अभियान रोकने की स्पष्ट मांग को पूरा नहीं करने के लिए इसकी आलोचना की थी.
नए प्रस्ताव में युद्धविराम का आह्वान सीधे तौर पर हमास द्वारा बंधकों को रिहा करने के बदले में लड़ाई रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और मिस्र के समर्थन से कतर के नेतृत्व में चल रही वार्ता से जुड़ा नहीं है.
इज़रायल ने पिछले प्रस्तावों के लिए सुरक्षा परिषद की आलोचना की है, जिनमें विशेष रूप से हमास की निंदा नहीं की गई है.
उग्रवादियों ने 250 बंधकों को भी पकड़ लिया, जिनमें से इज़रायल का मानना है कि लगभग 130 अभी भी गाजा में बंधक हैं, इनमें से 33 को मृत मान लिया गया है.
हमास द्वारा संचालित क्षेत्र में स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हमास को खत्म करने के जवाब में इजरायल के सैन्य अभियान में 32,000 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं.
संयुक्त राष्ट्र कर्मियों का कहना है कि इज़रायल सहायता काफिलों को रोकता है, जबकि विशेषज्ञ वहां खाद्य पदार्थ, दवाई और मेडिकल सुविधाओं की घोर कमी की बात कह रहे हैं.
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