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This Article is From Sep 26, 2015

यूएन में अपने भाषण में पीएम मोदी ने वैदिक श्लोकों के माध्यम से रखीं बातें

यूएन में अपने भाषण में पीएम मोदी ने वैदिक श्लोकों के माध्यम से रखीं बातें
संयुक्त राष्ट्र में भाषण देते पीएम नरेंद्र मोदी (फोटो : पीटीआई)
संयुक्त राष्ट्र: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपना दूसरा संबोधन भी हिन्दी में ही किया और अपनी बातें रखने के लिए वेदों की ऋचाओं और राष्ट्रपित महात्मा गांधी तथा जनसंघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय की उक्तियों का सहारा लिया।

संयुक्त राष्ट्र में सतत विकास लक्ष्य पर शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आधुनिक महानायक बताते हुए उनका यह उद्धरण पेश किया कि हम उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें, जिसे हम नहीं देख पाएंगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय को भारत का महान विचारक बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके विचारों का केंद्र अन्त्योदय रहा है और संयुक्त राष्ट्र के एजेंडा 2030 में भी अन्त्योदय की महक आती है।

उन्होंने कहा कि भारत दीनदयाल जी के जन्मशती वर्ष को मनाने की तैयारी कर रहा है, तब यह निश्चित ही एक सुखद संयोग है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मै उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूं, जहां धरती को मां कहते है और मानते हैं। वेद उदघोष करते है- 'माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्यौ' अर्थात...ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।

पीएम मोदी ने कहा कि हम अपनी सफलता और संसाधन दूसरों के साथ बांटेंगे। भारतीय परम्परा में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है। 'उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुंबकम' अर्थात...उदार बुद्धि वालों के लिए तो सम्पूर्ण संसार एक परिवार होता है, कुटुंब है... अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं सबके कल्याण की मंगल कामना करता हूं 'सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु: मां कश्चिद दु:खभाग्भवेत अर्थात सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी कल्याणकारी देखे, किसी को किसी प्रकार का दुख न हो।

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