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This Article is From Nov 23, 2018

पाकिस्तान की मशहूर लेखिका फहमीदा रियाज़ का निधन, पढ़ें उनकी लोकप्रिय शायरी

मेरठ में जन्मी लेखिका फहमीदा रियाज़ ने 15 किताबें लिखीं. उनकी कुछ मशहूर किताबों में 'पत्थर की जुबान', 'धूप', 'पूरा चांद', 'आदमी की ज़िन्दगी', 'गोदावरी' और 'जिन्दा बहार' शामिल हैं. 

पाकिस्तान की मशहूर लेखिका फहमीदा रियाज़ का निधन, पढ़ें उनकी लोकप्रिय शायरी
जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है, पढ़ें फहमीदा रियाज़ की खास शायरी
नई दिल्ली: पाकिस्तान की मशहूर ऊर्दू लेखिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता फहमीदा रियाज़ अब इस दुनिया में नही रहीं. 73 साल की उम्र में उनका लंबी बीमारी के बाद लाहौर के एक स्थानिय अस्पताल में निधन हुआ. मेरठ में जन्मी लेखिका फहमीदा रियाज़ ने 15 किताबें लिखीं. उनकी कुछ मशहूर किताबों में 'पत्थर की जुबान', 'धूप', 'पूरा चांद', 'आदमी की ज़िन्दगी', 'गोदावरी' और 'जिन्दा बहार' शामिल हैं. 

उन्होंने 'आवाज़' नाम की एक मैगज़ीन भी शुरू की, लेकिन उनकी बेबाक लेखिकी के चलते मैगज़ीन बंद हुई और उन्हें जेल जाना पड़ा. फ़हमीदा और उनके दूसरे पति पर अलग-अलग मामलों में कई आरोप लगे. बाद में, पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल के दौरान फहमीदा ने पाकिस्तान छोड़ दिया. पति और बच्चों के साथ 7 साल तक भारत में रहीं.

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फहमीदा रियाज़ उत्तर प्रदेश के मेरठ में जुलाई 1945 को जन्मी और अपने पिता के सिंध प्रांत में तबादले के बाद हैदराबाद में जा बसीं. फहमीदा ने हमेशा पाकिस्तान में महिला अधिकारों और लोकतंत्र के लिए अपनी आवाज बुलंद की. फहमीदा एक जानी मानी प्रगतिशील उर्दू लेखिका, कवियित्री, मानवाधिकार कार्यकर्ता और नारीवादी थीं, जिन्होंने रेडियो पाकिस्तान और बीबीसी उर्दू सर्विस (रेडियो) के लिए काम किया

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यहां पढ़ें भारत में जन्मी फहमीदा रियाज़ की कुछ बेहद ही प्रसिद्ध शायरी : 

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है 
या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है 


जब सर में नहीं इश्क़ तो चेहरे पे चमक है 
ये नख़्ल ख़िज़ाँ आई तो शादाब हुआ है 


मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त 
कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में 


ये किस के आँसुओं ने उस नक़्श को मिटाया 
जो मेरे लौह-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया

सराब हूँ मैं तिरी प्यास क्या बुझाऊँगी 
इस इश्तियाक़ से तिश्ना ज़बाँ क़रीब न ला 


जिसे मैं तोड़ चुकी हूँ वो रौशनी का तिलिस्म 
शुआ-ए-नूर-ए-अज़ल के सिवा कुछ और न था 

 

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