विदेश मंत्री एस जयशंकर के इस्लामाबाद जाने के बाद ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने को बेताब है. पाकिस्तान ने भले ही ऐसा खुलकर न कहा हो, लेकिन उसके नेताओं के बयान तो इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं. जयशकंर की पाकिस्तान यात्रा के बाद वहां के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने दोनों में रिश्ते सुधरने की उम्मीद जताई है. उन्होंने कहा है कि अगर दोनों देशों की क्रिकेट टीमें भारत में किसी प्रतियोगिता का फाइनल खेलती हैं तो वो उसे देखने भारत जा सकते हैं. आइए जानते हैं कि पाकिस्तान के नेता भारत से रिश्ते सुधारने पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं.
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दरअसल पाकिस्तान आर्थिक और राजनीतिक अस्थीरता के दौर से गुजर रहा है. देश में गठबंधन की सरकार चल रही है. उसके एक पूर्व प्रधानमंत्री को जेल में बंद करके रखा गया है. संसद में सबसे अधिक सांसदों वाले दल को सरकार नहीं बनाने दिया गया. अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है. पाकिस्तान इस साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से सात अरब डॉलर का कर्ज लिया है. आईएमएफ से उसने रिकॉर्ड 25वीं बार कर्ज लिया है. आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के 2023 में कुल कर संग्रह का 68 फीसदी हिस्सा तो केवल कर्ज का व्याज चुकाने में ही चला गया. इस हालात में भी उसके अपने सभी पड़ोसियों से संपर्क खराब चल रहे हैं. व्यापार ठप है. इस हालात से निपटने के लिए ही पाकिस्तान भारत के साथ संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है.
अतीत भुलाकर आगे बढ़ें भारत-पाकिस्तान
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत और पाकिस्तान को अतीत को भूलकर अच्छे पड़ोसियों की तरह रहना चाहिए. उनके इस बयान को एस जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा के बाद भारत से रिश्ते सुधारने की पहल के रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने जयशंकर की यात्रा को ‘अच्छी शुरुआत' बताया और उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष सकारात्मक रुख के साथ आगे बढ़ेंगे.
नवाज शरीफ ने दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की अचानक लाहौर यात्रा को भी याद किया. उन्होंने इसकी सहारना भी की. उन्होंने कहा कि मेरी मां से उनका मिलना बहुत बड़ी बात थी.हालांकि रिश्ते उतने मधुर रहे नहीं. नवाज दोनों देशों के बीच संबंधों में लंबे समय से जारी ठहराव से खुश नहीं हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों पक्षों को सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहिए. नवाज ने कहा कि हम अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते, न ही पाकिस्तान और न ही भारत, लेकिन हमें अच्छे पड़ोसियों की तरह रहना चाहिए. यहां तक कि उन्होंने दोनों देशों के बीच सेतु की भूमिका निभाने तक की बात कह दी.
75 साल खोए, अगले 75 न खोएं
नवाज शरीफ ने कहा है कि भारत-पाकिस्तान ने 75 साल इसी तरह लड़ते हुए बिताए हैं, हमें इसे अगले 75 सालों तक नहीं चलने देना चाहिए. उन्होंने कहा कि पीएमएल-एन की सरकारों ने दोनों देशों के बीच के रिश्ते को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की है.दोनों पक्षों को मिल-बैठकर चर्चा करनी चाहिए कि आगे कैसे बढ़ना है.
क्रिकेट संबंध बहाल करने की उठ रही बात
एस जयशंकर और पाकिस्तानी विदेश मंत्री इसहाक डार की मुलाकात से उम्मीद जगी कि शायद दोनों देशों के बीच क्रिकेट रिश्ते बहाल हो जाएं.नवाज शरीफ ने भी भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंधों को फिर से शुरू करने की वकालत की है. उनका कहना है कि अगर दोनों टीमें पड़ोसी देश में किसी बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में खेलती हैं तो वह भारत जरूर जाना चाहेंगे. इतना ही नहीं नवाज शरीफ ने दोनों दोशों के बीच व्यापारिक संबंधों के महत्व पर भी जोर दिया.
फिर याद आई अटल की लाहौर बस यात्रा
नवाज शरीफ ने 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दिल्ली-लाहौर बस यात्रा को भी याद किया. उन्होंने कहा कि वाजपेयी को आज भी लाहौर घोषणापत्र और उस समय उनके शब्दों के लिए याद किया जाता है. वह जब उस यात्रा के वीडियो देखते हैं तो उन सुखद यादों को महसूस करके बहुत अच्छा लगता है.
अमन शांति की हर कोशिश हुई बेकार
भारत ने पाकिस्तान संग रिश्ते सुधारने और अमन बनाए रखने की बहुत कोशिशें की, लेकिन सब बेकार साबित हुईं. पाकिस्तान हमेशा ही ऐसी कोशिशों पर पानी डालता रहा है.वाजपेयी और नवाज शरीफ के बीच द्विपक्षीय मसौदे पर हस्ताक्षर हुए थे. इसमें था कि दोनों देशों के बीच जंग नहीं होगी. लेकिन कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने भारत को करगिल युद्ध का जख्म दे दिया.
लाहौर समझौता तोड़ा, करगिल का जख्म दिया
नवाज शरीफ ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि लाहौर समझौते पर पाकिस्तान ने पानी डाल दिया.उन्होंने माना था कि 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए उसके बाद वाजपेयी वहां गए और उनके साथ समझौता किया. लेकिन पाकिस्तान ने उस समझौते का उल्लंघन किया,यह उनकी गलती थी.
कंगाली से बेबस और लाचार पाकिस्तान
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले काफी समय से बदहाल है. सितंबर में खबर आई थी कि खर्चों में कटौती करने के लिए उसने डेढ़ लाख नौकरियों तक में कटौती कर दी. इसके साथ ही उसने छह मंत्रालय भंग किए और दो मंत्रालयों का विलय कर दिया. उसके पास इन मंत्रालयों को चलाने के लिए फंड ही नहीं था. ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेने की शर्तों को पूरा करने के लिए किया. वहां से ऐसी खबरें भी आती रहती है कि पाकिस्तान में खाने-पीने की चीजों की कीमतें आसमान छू रही है.
भारी कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान
पाकिस्तान कर्ज के भारी बोझ तले दबा हुआ है. लेकिन उसके पास ब्याज देने तक के पैसे नहीं हैं. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुताबिक, उस पर वित्त वर्ष 2025 के लिए 26.2 अरब डॉलर का कर्ज है. आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक उसकी 40.5 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. साल 2022 में आर्थित जटिलता सूचकांक में वह 85वें नंबर पर था.
पाकिस्तान के पास पहले ही पैसा नहीं है अब उसे अगले 12 महीनों में 30.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज चुकाना है. इनमें कई अहम लोन भी शामिल हैं. यह बात केंद्रीय बैंक ने कही है. पैसा तो है ही नहीं ऐसे में ये कर्ज चुकाना पाकिस्तान के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा.कर्ज में दबे पाकिस्तान के तेवर अब ढीले पड़ने लगे है, शायद इसी वजह से वह रिश्ते सुधारने की वकालत कर रहा है.
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