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This Article is From Oct 28, 2016

भारत के प्रभाव की वजह से इस मामले में पाकिस्तान पर दुनिया में अलग थलग पड़ने का खतरा : रिपोर्ट

भारत के प्रभाव की वजह से इस मामले में पाकिस्तान पर दुनिया में अलग थलग पड़ने का खतरा : रिपोर्ट
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पीएम मोदी की फाइल फोटो
वाशिंगटन: एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि भारत की खरीदने की क्षमता और भूराजनैतिक प्रभाव बढ़ रहा है, ऐसे में हाई टेक रक्षा सामग्री की खरीदारी के संबंध में पाकिस्तान पर दुनिया में अलग थलग पड़ने का खतरा मंडरा रहा है.

'स्टिम्सन सेंटर' ने एक रिपोर्ट में कहा, 'पाकिस्तान लंबी अवधि में वैश्विक बाजार में सबसे अत्याधुनिक हथियार प्रणाली तक पहुंच बनाने में शायद सक्षम नहीं रहेगा, बल्कि उसके पास चीन और संभवत: रूस की सैन्य प्रणाली पर निर्भर रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा, जो पाकिस्तान की रक्षा जरूरतों के लिए उचित हो भी सकता या नहीं भी हो सकता है.'

'मिलिट्री बजट्स इन इंडिया एंड पाकिस्तान: ट्रैजेक्टरीज, प्रायोरिटीज एवं रिस्क्स' शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत की खरीदारी की बढ़ती क्षमता एवं बढ़ते भूराजनैतिक प्रभाव के कारण उच्च प्रोद्यौगिकी तक पाकिस्तान की पहुंच बाधित हो सकती है.'

अमेरिकी सैन्य सहायता वर्ष 2002 से लेकर 2015 के बीच पाकिस्तान के रक्षा खर्च का 21 प्रतिशत थी, जिसकी मदद से पाकिस्तान ने अपने संघीय बजट एवं समग्र अर्थव्यवस्था पर भार को कम करते हुए अपनी सैन्य खरीदारी के उच्च स्तरों को बनाए रखा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों के लिए वाशिंगटन में सहयोग में कमी आई है, क्योंकि पाकिस्तान अफगानिस्तान और भारत में ध्यान केंद्रित करने वाले हिंसक अतिवादी समूहों संबंधी चिंताओं से निपटने में अक्षम या अनिच्छुक प्रतीत होता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वैश्विक रक्षा कंपनियों के लिए अधिक बड़ा और अधिक आकर्षक बाजार है और निकट भविष्य में भी वह ऐसा ही रहेगा. भारत हथियारों का विश्व में सबसे बड़ा आयातक बन गया है. भारत ने वर्ष 2011 से वर्ष 2015 तक वैश्विक हथियारों का 14 प्रतिशत आयात किया, जो इससे पहले के पांच वर्षों की तुलना में 90 प्रतिशत का इजाफा है. रिपोर्ट में कहा गया है, 'जो देश और कंपनियां पाकिस्तान के साथ रक्षा संबंध रखने में रुचि रखती भी होंगी, वे नई दिल्ली का समर्थन खोने के डर से ऐसा नहीं करेंगी.' इसमें कहा गया है, 'पाकिस्तान को लंबी अवधि में महंगी हथियार प्रणालियां खरीदने संबंधी मुश्किल चयन तब तक करना होगा जब तक उसे ये रियायती दरों पर नहीं मिलती हैं.'

रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका की ओर से वित्तीय एवं सैन्य सहयोग में 'लगभग निश्चित गिरावट' के कारण पाकिस्तान को अपनी रक्षा खरीदारी के बड़े हिस्से का भार उठाना पड़ेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि सैन्य खरीदारी के मामले में पाकिस्तान भारत के साथ मुकाबला नहीं कर सकता और इसी लिए वह परमाणु हथियारों में खर्च बढ़ा सकता है. हालांकि उसने चेतावनी दी कि पारंपरिक क्षमताओं की कीमत पर परमाणु हथियारों में निवेश से पाकिस्तान की देश के भीतर आतंकवाद संबंधी चुनौतियों से निपटने की क्षमता कमजोर होगी.

इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान लंबी अवधि में भारत से पारंपरिक रूप से मुकाबला नहीं कर सकता और ऐसा करने की कोई भी कोशिश उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर देगी. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान का रक्षा बजट आधिकारिक अनुमानों से अधिक है.

रिपोर्ट के अनुसार 'हालांकि पाकिस्तान ने हालिया वर्षों में अपने रक्षा खर्च में पारदर्शिता बढ़ाई है, लेकिन देश के रक्षा दस्तावेज उत्तर देने के बजाए और अधिक प्रश्न खड़े कर देते हैं.' भारत परमाणु हथियारों पर अपने रक्षा बजट का कम से कम चार प्रतिशत खर्च करता है जबकि पाकिस्तान अपने सैन्य बजट का कम से कम 10 प्रतिशत परमाणु हथियारों पर खर्च करता है. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान वर्ष 2016 में परमाणु हथियारों पर 74 करोड़ 70 लाख डॉलर खर्च करेगा और भारत इस पर एक अरब 90 करोड़ डॉलर खर्च करेगा.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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