पाकिस्तानी सेना ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘‘राजनीति से उसका कोई लेना-देना नहीं '' है और वह भविष्य में भी अराजनीतिक बनी रहेगी. साथ ही, शक्तिशाली संस्था ने जोर देते हुए कहा कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ना तो कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं और ना ही इसे स्वीकार करेंगे. सेना की मीडिया शाखा- इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर)- के महानिदेशक (डीजी) मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने यह भी कहा कि पाकिस्तान का अस्तित्व मूल रूप से लोकतंत्र पर निर्भर है और इसकी मजबूती संस्थाओं में निहित है, चाहे वह संसद, उच्चतम न्यायालय या सशस्त्र बल ही क्यों ना हो.
मेजर जनरल इफ्तिखार ने संवाददाताओं से कहा कि पाकिस्तानी सेना का ‘‘राजनीति से कोई लेना-देना नहीं'' है और इसने भविष्य में भी अराजनीतिक बने रहने का फैसला किया है.
उनका यह बयान, विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ के पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद आया है. देश में लंबे समय से चल रहे राजनीतिक उथल-पुथल के बाद शरीफ प्रधानमंत्री बने हैं.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की खबर में उन्हें उद्धृत करते हुए कहा गया है , ‘‘सेना प्रमुख ना तो कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, ना ही वह इसे स्वीकार करेंगे. वह 29 नवंबर 2022 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ''
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले महीने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की एक बैठक के बाद जारी बयान में ‘‘साजिश'' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था. उनका यह स्पष्टीकरण अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान के उस दावे का संभवत: विरोधाभासी है जिसमें उन्होंने अपनी सरकार को गिराने के लिए अमेरिका पर साजिश रचने का आरोप लगाया था.
जनरल इफ्तिखार ने कहा, ‘‘जहां तक एनएससी की बैठक के बारे में सेना की प्रतिक्रिया की बात है, उस बारे में बैठक में पूरी तरह बताया गया था और उसके बाद एक बयान जारी किया गया...जिसमें बैठक में पहुंचे गये निष्कर्ष को स्पष्ट रूप से कहा गया था. जो शब्द इस्तेमाल किये गये थे वह आपके सामने हैं...जैसा कि मैंने कहा है...जो शब्द इस्तेमाल किये गये वे स्पष्ट हैं. क्या साजिश जैसा कोई शब्द इसमें इस्तेमाल किया गया था? मुझे नहीं लगता। ''
उन्होंने कहा कि बैठक में हुई चर्चा के विवरण को सरकार के फैसला करने पर सार्वजनिक किया जा सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने राजनीतिक संकट का हल तलाशने में मदद के लिए सेना प्रमुख से संपर्क किया था.
उन्होंने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व वार्ता को तैयार नहीं थे. इसलिए सेना प्रमुख और डीजी आईएसआई प्रधानमंत्री कार्यालय गये तथा तीन परिदृश्यों पर चर्चा की गई ''
इनमें एक परिदृश्य अविश्वास प्रस्ताव पर आगे बढ़ना था. जबकि शेष दो में प्रधानमंत्री के इस्तीफा देने या अविश्वास प्रस्ताव को वापस लेने और नेशनल असेंबली को भंग करना शामिल थे.
जनरल इफ्तिखार ने कहा कि सेना ने कोई विकल्प नहीं दिया था.
उल्लेखनीय है कि इमरान खान ने दावा किया था कि सेना ने उन्हें तीन विकल्प दिये थे:‘‘इस्तीफा, अविश्वास प्रस्ताव (मतदान) या चुनाव. ''
इस सप्ताह की शुरूआत में सत्ता से बेदखल कर दिये गये खान ने संभवत: शक्तिशाली सेना का समर्थन खो दिया था. दरअसल, उन्होंने गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के प्रमुख की नियुक्ति को मंजूरी देने से पिछले साल इनकार कर दिया था.
हालांकि, आखिरकार वह सहमत हो गये लेकिन सेना के साथ उनके संबंधों में खटास आ चुकी थी.
खान लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को आईएसआई प्रमुख बनाये रखना चाहते थे लेकिन सेना आलाकमान ने उनका तबादला कर उन्हें पेशावर में कोर कमांडर नियुक्त कर दिया.
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