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नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और डुफ्लो ने चुना स्विट्जरलैंड को नया ठिकाना, ट्रंप की नीतियां बनीं वजह? 

दोनों एक नए सेंटर की स्थापना करेंगे और इसे साथ में मिलकर लीड करेंगे. इस सेंटर का मकसद पॉलिसी बेस्‍ड रिसर्च को बढ़ावा देना होगा.

नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और डुफ्लो ने चुना स्विट्जरलैंड को नया ठिकाना, ट्रंप की नीतियां बनीं वजह? 
  • नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्‍थर डुफ्लो जल्द स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख यूनिवर्सिटी से जुड़ेंगे.
  • दोनों अगले साल जुलाई से यूनिवर्सिटी में शामिल होकर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स पर नया सेंटर शुरू करेंगे.
  • अमेरिका में रिसर्च फंड में कटौती और यूनिवर्सिटी की स्वतंत्रता पर हमले के कारण ब्रेन ड्रेन की स्थिति बन रही है.
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वॉशिंगटन:

अमेरिका में बसे भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्‍थर डुफ्लो जल्‍द ही देश छोड़ने वाले हैं. दोनों जल्द ही स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख यूनिवर्सिटी से जुड़ने वाले हैं. बताया जा रहा है कि यहां पर दोनों डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स पर एक नया सेंटर शुरू करने वाले हैं. यूनिवर्सिटी की तरफ से इसकी आधिकारिक पुष्टि की गई है. बनर्जी और डुफ्लो क्‍यों अमेरिका छोड़ रहे हैं, इस बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है. 

क्‍यों छोड़ रहे हैं अमेरिका 

ज्यूरिख यूनिवर्सिटी की तरफ से कहा गया है कि यह कपल अगले साल जुलाई से विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में शामिल होंगे. फिलहाल दोनों वर्तमान में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के साथ जुड़े हैं. दोनों ने साल 2019 में माइकल क्रेमर के साथ अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर गरीबी घटाने के 'प्रायोगिक दृष्टिकोण' पर नोबेल पुरस्कार जीता था. यूनिवर्सिटी की तरफ से भी इनके अमेरिका छोड़ने की वजह नहीं बताई गई है. 

क्‍या ट्रंप हैं इसकी वजह 

दोनों का स्विट्जरलैंड जाना ऐसे समय पर हो रहा है जब विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की तरफ से रिसर्च फंड में कटौती का ऐलान किया गया है. विशेषज्ञों की मानें तो जिस तरह से देश में रिसर्च पर फंडिंग में कटौती हो रही है और यूनिवर्सिटी की आजादी पर हमले हो रहे हैं, उससे देश में ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन की स्थिति बन सकती है. इस बीच, कई देश अमेरिकी वैज्ञानिकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. 

डुफ्लो के पास अमेरिका और फ्रांस की दोहरी नागरिकता है. उन्‍होंने इसी साल फ्रेंच न्‍यूजपेपर ले मोन्‍डे में आए एक एडीटोरियल को साइन किया था. अमेरिका में जिस तरह से विज्ञान को निशाना बनाया जा रहा था, वह असाधारण था और अखबार ने इसकी निंदा की थी. यूनिवर्सिटी की तरफ से बताया गया है कि अभिजीत बनर्जी और डुफ्लो दोनों को लेमान फाउंडेशन की तरफ से फंड की जाने वाली प्रोफेसरशिप प्रदान की जाएगी. 

MIT में रहेंगे पार्ट टाइम 

इसके साथ ही वो लेमान सेंटर फॉर डेवलपमेंट, एजुकेशन एंड पब्लिक पॉलिसी की स्थापना करेंगे और इसे साथ में मिलकर लीड करेंगे. इस सेंटर का मकसद पॉलिसी बेस्‍ड रिसर्च को बढ़ावा देना होगा. साथ ही यह दुनियाभर के रिसर्चर्स और शिक्षा से जुड़ी नीतियों को एक साथ लेकर आएगा. ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के डायरेक्‍टर माइकल शेपमैन ने कहा, 'हमें बेहद खुशी है कि दुनिया के दो सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री हमारे विश्वविद्यालय से जुड़ रहे हैं.' डुफ्लो ने कहा कि नया लेमान सेंटर उन्हें और उनके पति को, जो MIT में पार्ट टाइम पोस्‍ट पर बने रहेंगे, एक ऐसा मौका देगा जिसके जरिये वह अपनी रिसर्च और स्‍टूडेंट गाइडेंस के बीच की कड़ी को और मजबूत कर सकेंगे. 
 

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