
- नेपाल में तख्तापलट के बाद सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनाई गई हैं.
- प्रधानमंत्री कार्की के सामने भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी जटिल समस्याओं से निपटने की बड़ी चुनौती है.
- कार्की ने भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखने का संदेश दिया, वहीं चीन ने अभी तक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
नेपाल में Gen-Z क्रांति ने इतिहास रच दिया. सोशल मीडिया बैन के बहाने एकजुट हुए युवाओं ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर देश में तख्तापलट कर दिया. एक नई सुबह की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री चुना गया है. शपथ लेने के बाद सुशीला कार्की देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गईं. उनके साथ मंत्रिमंडल में शामिल कई अहम चेहरे भी मौजूद रहे, इनमें एनर्जी एक्सपर्ट कुलमान घिसिंग और समाजसेवी-राजनीतिज्ञ सुदन गुरुंंग भी शामिल थे. सुशीला कार्की, प्रधानमंत्री तो बन गई हैं, लेकिन देश चलाने की राह में उनके आगे कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं.
हालात सामान्य करने की चुनौती
काठमांडू और अन्य शहरों में हाल के दिनों में जो हिंसा और कर्फ्यू दिखा, अब धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं. सेना और पुलिस फिलहाल चौकसी बनाए हुए हैं लेकिन शनिवार तक नया कर्फ्यू आदेश जारी नहीं हुआ. माना जा रहा है कि धीरे-धीरे पाबंदियां हटाई जाएंगी. सेना ने कहा है कि वह हालात पर नजर रखेगी और जरूरत पड़ने पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती रहेगी.
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और शासन की कठिन परीक्षा
प्रधानमंत्री कार्की के सामने सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी पुरानी लेकिन गहरी समस्याओं से निपटने की है. नेपाल के आम नागरिक खासकर युवाओं का गुस्सा इन्हीं दो मुद्दों पर फूटा है. जानकारों का मानना है कि कार्की को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे. सरकार के ठेकों और नियुक्तियों में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी होगी. वहीं बेरोजगारी कम करने के लिए शिक्षा-प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्टार्टअप को बढ़ावा और निजी निवेश के लिए माहौल तैयार करना होगा.

युवा पीढ़ी जो सोशल मीडिया पर सक्रिय है, उनसे संवाद बनाना भी बेहद जरूरी होगा. विश्लेषक मानते हैं कि अगर कार्की छह महीने के कार्यकाल में कुछ ठोस संकेत देती हैं तो जनता का विश्वास चुनाव तक बनाए रखा जा सकता है.
भारत को लेकर दोस्ताना संदेश
शपथ लेने के तुरंत बाद सुशीला कार्की ने भारत-नेपाल संबंधों को लेकर बेहद भावनात्मक बयान दिया. उन्होंने कहा- 'भारत में दर्द होता है, तो आंसू हमारे भी आते हैं. घर के बर्तन हैं, तो कभी कभार टकरा जाते हैं. भारत दिल के बहुत करीब है.' उनका ये बयान ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और राजनीतिक खींचतान के कारण रिश्तों में खटास आई थी. कार्की का बयान एक नई शुरुआत की उम्मीद जगाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें शुभकामनाएं दीं, नेपाल में स्थिरता और विकास की कामना की. उन्होंने लिखा- भारत नेपाल की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और जनता की आकांक्षाओं का सम्मान करता है.

नेपाल को चुभ रही चीन की चुप्पी
नेपाल में इस बदलाव पर कई देशों की नजर है. भारत ने तो सकारात्मक प्रतिक्रिया दी ही है, लेकिन चीन ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. जानकारों के मुताबिक चीन 'वेट एंड वॉच' की नीति अपना रहा है. नेपाल में चीन ने सड़क, बिजली और रेल परियोजनाओं में भारी निवेश किया है, इसलिए बीजिंग का अगला कदम अहम होगा.
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया और शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन का स्वागत किया है. किसी बड़े देश ने फिलहाल आलोचनात्मक रुख नहीं अपनाया है.
आगे की राह में और कौन-सी चुनौतियां
भारत-चीन का संतुलन: कार्की का भारत के प्रति नरम रुख साफ संकेत देता है कि वे दिल्ली के साथ रिश्ते सुधारना चाहती हैं. लेकिन चीन की आर्थिक मौजूदगी को नजरअंदाज करना उनके लिए आसान नहीं होगा. आने वाले महीनों में नेपाल की विदेश नीति में यह संतुलन सबसे अहम होगा.
युवा दबाव और आंतरिक राजनीति: यह पहली बार है जब युवा आंदोलन ने किसी सरकार को बदलने पर मजबूर किया है. कार्की को युवाओं की आकांक्षाओं पर खरा उतरना होगा. अंतरिम मंत्रिमंडल में शामिल नेता अपनी महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित होकर सहयोग भी कर सकते हैं और चुनौती भी. यह देखना दिलचस्प होगा कि कार्की कैसे संतुलन बनाती हैं.
सुशीला कार्की ने एक नया पन्ना खोल दिया है, लेकिन नेपाल का अगला अध्याय चुनावी प्रक्रिया पर निर्भर करेगा.
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