WMO की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 अब तक का सबसे गरम साल होगा
मोरक्को:
मोरक्को में चल रहा जलवायु परिवर्तन सम्मेलन शुक्रवार देर रात इस वादे के साथ खत्म हुआ कि पेरिस समझौते को लागू करने के लिए कायदे 2018 तक बना लिये जायेंगे और इसमें पारदर्शिता बरती जायेगी. भारत ने विकसित देशों से दोहा समझौते को लागू कर तुरंत अपने कार्बन उत्सर्जन कम करने को भी कहा है. पेरिस डील इसी साल 4 नवंबर को लागू हुई है जिसके तहत धरती को गर्म होने से रोकने के लिए सभी देशों को कदम उठाने हैं.
चिंता की बात यह है कि सात साल पहले कोपनहेगन में सभी देशों ने धरती का तापमान 1.5 डिग्री से अधिक न बढ़ने देने के लिए कदम उठाने की बात की थी लेकिन अब तक कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए कोई बड़े प्रयास नहीं किए गये. धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है और विश्व मौसम संगठन यानी WMO ने इसी सम्मेलन के दौरान जो रिपोर्ट जारी की उसके मुताबिक वह करीब सवा डिग्री बढ़ चुका है. गरम होती धरती की वजह से बाढ़, चक्रवाती तूफान और सूखे जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं. भारत ने इस सम्मेलन में अमीर देशों से अपील की है वे अपने कार्बन उत्सर्जन कम करें और इस बात पर चिंता जताई कि विकासशील देशों की मदद के लिये बनाये जा रहे ग्रीन क्लाइमेट फंड में विकसित देशों ने कोई रकम जमा नहीं की है.
वैसे मोरक्को में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान ही विश्व मौसम संगठन की रिपोर्ट ने चिंताएं और बढ़ा दी जिसकी ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की 90 प्रतिशत संभावना है कि ये साल पिछले साल का रिकॉर्ड भी तोड़ देगा और अब तक का सबसे गरम साल होगा. उधर धरती को गर्म होने से रोकने की मुहिम में पैसा ही सबसे बड़ी दिक्कत है ये बात मोरक्को सम्मेलन में भी साफ देखने को मिली. गरीब और विकासशील देश महंगी सौर और पवन ऊर्जा के लिए अमीर और विकसित देशों की ओर देख रहे हैं और अभी इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि कितनी मदद मिल पाएगी.
इस मामले पर भारत के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री अनिल दवे ने भी सम्मेलन में दिए अपने भाषण में कहा था कि 'संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत 2020 से पहले और उसके बाद दिए जाने वाले क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकासशील देशों में चिंता बनी हुई है.' बता दें कि पेरिस समझौते के तहत एक ग्रीन क्लाइमेट फंड बनना है, जिसकी मदद से हर साल गरीब और विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर दिए जाने हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस फंड में अभी नाममात्र का पैसा जमा हुआ है.
चिंता की बात यह है कि सात साल पहले कोपनहेगन में सभी देशों ने धरती का तापमान 1.5 डिग्री से अधिक न बढ़ने देने के लिए कदम उठाने की बात की थी लेकिन अब तक कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए कोई बड़े प्रयास नहीं किए गये. धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है और विश्व मौसम संगठन यानी WMO ने इसी सम्मेलन के दौरान जो रिपोर्ट जारी की उसके मुताबिक वह करीब सवा डिग्री बढ़ चुका है. गरम होती धरती की वजह से बाढ़, चक्रवाती तूफान और सूखे जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं. भारत ने इस सम्मेलन में अमीर देशों से अपील की है वे अपने कार्बन उत्सर्जन कम करें और इस बात पर चिंता जताई कि विकासशील देशों की मदद के लिये बनाये जा रहे ग्रीन क्लाइमेट फंड में विकसित देशों ने कोई रकम जमा नहीं की है.
वैसे मोरक्को में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान ही विश्व मौसम संगठन की रिपोर्ट ने चिंताएं और बढ़ा दी जिसकी ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की 90 प्रतिशत संभावना है कि ये साल पिछले साल का रिकॉर्ड भी तोड़ देगा और अब तक का सबसे गरम साल होगा. उधर धरती को गर्म होने से रोकने की मुहिम में पैसा ही सबसे बड़ी दिक्कत है ये बात मोरक्को सम्मेलन में भी साफ देखने को मिली. गरीब और विकासशील देश महंगी सौर और पवन ऊर्जा के लिए अमीर और विकसित देशों की ओर देख रहे हैं और अभी इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि कितनी मदद मिल पाएगी.
इस मामले पर भारत के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री अनिल दवे ने भी सम्मेलन में दिए अपने भाषण में कहा था कि 'संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत 2020 से पहले और उसके बाद दिए जाने वाले क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकासशील देशों में चिंता बनी हुई है.' बता दें कि पेरिस समझौते के तहत एक ग्रीन क्लाइमेट फंड बनना है, जिसकी मदद से हर साल गरीब और विकासशील देशों को 100 बिलियन डॉलर दिए जाने हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस फंड में अभी नाममात्र का पैसा जमा हुआ है.
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