इंडियन स्पेस एजेंसी ने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खास दोस्त एलन मस्क की स्पेसएक्स के साथ हाथ मिलाया है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कई मिलियन डॉलर की डील (ISRO SpaceX Deal) मस्क की कंपनी के साथ की है.अगले हफ्ते की शुरुआत में, स्पेसएक्स का फाल्कन 9 रॉकेट भारत के सबसे आधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-20 को अंतरिक्ष में ले जाने का काम करेगी.
ये भी पढ़ें-Trump Tracker: ट्रंप ने कैरोलिन लेविट को व्हाइट हाउस का प्रेस सचिव नियुक्त किया
ISRO की स्पेसएक्स संग डील
इसरो की एलन मस्क की स्पेसएक्स के साथ कई डील हुई हैं, जिनमें यह पहली डील है. जबकि कुछ लोगों का कहना है कि इसरो और स्पेसएक्स दोनों ही कम लागत वाले लॉन्च के लिए कॉम्पटिटर्स हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि ग्लोबल कमर्शियल मार्केट में स्पेसएक्स बहुत आगे है.
- इसरो ने GSAT-N2 बनाया है.
- इसका वजन लिफ्ट ऑफ मास के साथ 4,700 किलोग्राम है.
- इसकी मिशन लाइफ 14 साल है.
- यह NSIL द्वारा शुरू किया गया पूरी तरह से कमर्शियल लॉन्च है.
- सैटेलाइट 32 यूजर बीमों से सुसज्जित है, इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र में 8 संकीर्ण स्पॉट बीम और शेष भारत में 24 वाइड स्पॉट बीम शामिल हैं.
- इन 32 बीमों को भारत में मौजूद हब स्टेशन सपोर्ट करेंगे.
- यह इन-फ़्लाइट इंटरनेट कनेक्टिविटी को सक्षम बनाने में भी मदद करेगा.
अमेरिकी चुनाव से पहले हुई लॉन्च डील
डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रिश्ते बहुत अच्छे हैं. दोनों ही एक-दूसरे को दोस्त कहते हैं. वहीं एलन मस्क के रिश्ते भी दोनों के साथ ही अच्छे हैं. मस्क पीएम मोदी के प्रशंसक है. स्पेस लॉन्च की प्रकाशिकी और समय बिल्कुल सही है, लेकिन संयोग से डील अमेरिकी चुनाव रिजल्ट से पहले हुई है. इसलिए वाशिंगटन डीसी या नई दिल्ली के आलोचक "क्रोनी कैपिटलिज्म" को नहीं उठा सकते.
इतनी भारी है इसरो की सैटेलाइट
GSAT-N2 को अमेरिका के केप कैनावेरल से लॉन्च किया जाएगा. इसरो की तरफ से बनाई गई 4,700 किलोग्राम की सैटेलाइट भारतीय रॉकेटों के लिए बहुत भारी थी, इसलिए इसे विदेशी कमर्शियल लॉन्च दिया गया है. भारत का अपना रॉकेट 'द बाहुबली' या लॉन्च व्हीकल मार्क-3 ज्यादा से ज्यादा 4,000-4,100 किलोग्राम वजन उठाकर जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में ले जा सकता है.
स्पेसएक्स से क्यों की इसरो ने डील?
भारत अब तक अपने भारी सैटेलाइट के लॉन्च के लिए एरियनस्पेस पर निर्भर था, लेकिन वर्तमान में इसके पास कोई ऑपरेशनल रॉकेट नहीं है. इस दौरान भारत के पास स्पेसएक्स के साथ जाना एकमात्र विश्वसनीय विकल्प था.चीनी रॉकेट भारत ले नहीं सकता और यूक्रेन में संघर्ष की वजह से रूस अपने रॉकेटों को कमर्शिल लॉन्च के लिए दे नहीं पाएगा. ऐसे में भारत के पास स्पेसएक्स का ही ऑप्शन था.
इसरो की बेंगलुरु की कमर्शियल ब्रांच, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक राधाकृष्णन दुरईराज ने एनडीटीवी को बताया, "हमें स्पेसएक्स के साथ इस पहले लॉन्च पर अच्छी डील मिली." उन्होंने कहा कि स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट पर इतने भारी सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए यह हमारे लिए एक अच्छा सौदा था.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं