वाशिंगटन:
अमेरिका के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने दावा किया है कि भारतीय सेना चीन के साथ सीमित संघर्ष की तैयारी कर रही है लेकिन भारत सम्भवत: अफगानिस्तान में अपने सैनिक या साजोसामान नहीं भेजेगा क्योंकि वह पाकिस्तान को उकसाना नहीं चाहता।
अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया विभाग के निदेशक जेम्स क्लैपर ने सीनेट की खुफिया समिति के समक्ष एक सुनवाई के दौरान कहा, "भारत अपनी विवादित सीमा और हिंद महासागर तथा एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख को लेकर बहुत चिंतित है।"
क्लैपर ने कहा, "भारतीय सेना मानती है कि भारत-चीन के बीच जल्द किसी बड़े संघर्ष के आसार नहीं हैं, लेकिन भारतीय सेना विवादित सीमा पर सीमित संघर्ष की तैयारियां करने के लिए अपनी ताकत बढ़ा रही है और हिंद महासागर में चीनी शक्ति प्रदर्शन को संतुलित करने के लिए काम कर रही है।"
ज्ञात हो कि भारत और चीन के बीच 1962 में एक संक्षिप्त युद्ध हुआ था और दोनों के बीच अभी भी सीमा विवाद बरकरार है। सम्बंधों में सुधार के बावजूद दोनों एशियाई देशों के बीच विवाद लगातार बने हुए हैं।
अधिकारी ने यह भी कहा कि भारत ने पूर्व एशिया में अमेरिका के मजबूत सैन्य रुख और एशिया में अमेरिकी पहुंच का समर्थन किया है।
क्लैपर ने कहा कि अमेरिका, पाकिस्तान के साथ सकारात्मक सम्बंध बनाए रखना चाहता है, लेकिन उनके हित अक्सर अलग हो जाते हैं क्योंकि पाकिस्तान भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है।
समिति के उपाध्यक्ष सैक्सबी चैम्बलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के पनाहगाहों के बारे में क्या किया जा रहा है, क्लैपर ने कहा कि इस बारे में पाकिस्तान के साथ बातचीत की जा रही है।
क्लैपर ने कहा, "पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी अलकायदा सदस्यों, अन्य विदेशी लड़ाकों तथा इस्लामाबाद के लिए खतरा पैदा कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ सीमित सफलता ही हासिल कर पाए हैं।"
क्लैपर ने कहा कि भारत ने 2011 में अफगानिस्तान के साथ अपना जुड़ाव पर्याप्तरूप में बढ़ाया है, लेकिन निकट भविष्य में वह अफगानिस्तान में सैनिक या भारी उपकरणों को नहीं भेजने वाला है, क्योंकि वह पाकिस्तान को उकसाना नहीं चाहता।
क्लैपर ने यह भी कहा कि यद्यपि ईरान परमाणु बम बनाने में सक्षम है, लेकिन वह अभी भी इस बात को लेकर अनिश्चय में है कि परमाणु बम बनाया जाए या नहीं।
क्लैपर ने कहा, "ईरान के राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे (परमाणु हथियार निर्मित किया जाए या नहीं) पर मतभेद और बहस जारी है ।"
क्लैपर ने कहा कि परमाणु बम बनाने के नफा-नुकसान का आकलन करने के दौरान ईरानी राजनीतिज्ञ इस मुद्दे पर अभी एकमत नहीं हो पाए हैं। उन्होंने कहा कि यद्यपि ईरान परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है, लेकिन फिलहाल वह इसका निर्माण नहीं कर रहा है।
क्लैपर ने यह भी कहा कि ईरान, प्रतिक्रियास्वरूप अमेरिका पर हमला भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के नए प्रतिबंधों का ईरान पर एक बड़ा असर होगा, लेकिन इससे वहां की सरकार नहीं गिरने वाली है।
सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के निदेशक डेविड पेट्रीयस ने भी सुनवाई में अपनी गवाही पेश की। उन्होंने कहा कि ईरान पर नए प्रतिबंध काफी असरकारक हो रहे हैं, हाल के सप्ताहों में ज्यादा असरकारक हुए हैं। लेकिन यह देखना बाकी है कि ये प्रतिबंध क्या ईरान को अपने आचरण और परमाणु कार्यक्रम पर अपनी नीतियां बदलने के लिए बाध्य कर पाते हैं या नहीं।
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 31 दिसम्बर को एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें ईरान पर नए प्रतिबंधों के प्रावधान शामिल थे। इस विधेयक के जरिए उन विदेशी वित्तीय संस्थानों को निशाना बनाया गया था, जो ईरान के केंद्रीय बैंक के साथ कारोबार करते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया विभाग के निदेशक जेम्स क्लैपर ने सीनेट की खुफिया समिति के समक्ष एक सुनवाई के दौरान कहा, "भारत अपनी विवादित सीमा और हिंद महासागर तथा एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख को लेकर बहुत चिंतित है।"
क्लैपर ने कहा, "भारतीय सेना मानती है कि भारत-चीन के बीच जल्द किसी बड़े संघर्ष के आसार नहीं हैं, लेकिन भारतीय सेना विवादित सीमा पर सीमित संघर्ष की तैयारियां करने के लिए अपनी ताकत बढ़ा रही है और हिंद महासागर में चीनी शक्ति प्रदर्शन को संतुलित करने के लिए काम कर रही है।"
ज्ञात हो कि भारत और चीन के बीच 1962 में एक संक्षिप्त युद्ध हुआ था और दोनों के बीच अभी भी सीमा विवाद बरकरार है। सम्बंधों में सुधार के बावजूद दोनों एशियाई देशों के बीच विवाद लगातार बने हुए हैं।
अधिकारी ने यह भी कहा कि भारत ने पूर्व एशिया में अमेरिका के मजबूत सैन्य रुख और एशिया में अमेरिकी पहुंच का समर्थन किया है।
क्लैपर ने कहा कि अमेरिका, पाकिस्तान के साथ सकारात्मक सम्बंध बनाए रखना चाहता है, लेकिन उनके हित अक्सर अलग हो जाते हैं क्योंकि पाकिस्तान भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है।
समिति के उपाध्यक्ष सैक्सबी चैम्बलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के पनाहगाहों के बारे में क्या किया जा रहा है, क्लैपर ने कहा कि इस बारे में पाकिस्तान के साथ बातचीत की जा रही है।
क्लैपर ने कहा, "पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी अलकायदा सदस्यों, अन्य विदेशी लड़ाकों तथा इस्लामाबाद के लिए खतरा पैदा कर रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ सीमित सफलता ही हासिल कर पाए हैं।"
क्लैपर ने कहा कि भारत ने 2011 में अफगानिस्तान के साथ अपना जुड़ाव पर्याप्तरूप में बढ़ाया है, लेकिन निकट भविष्य में वह अफगानिस्तान में सैनिक या भारी उपकरणों को नहीं भेजने वाला है, क्योंकि वह पाकिस्तान को उकसाना नहीं चाहता।
क्लैपर ने यह भी कहा कि यद्यपि ईरान परमाणु बम बनाने में सक्षम है, लेकिन वह अभी भी इस बात को लेकर अनिश्चय में है कि परमाणु बम बनाया जाए या नहीं।
क्लैपर ने कहा, "ईरान के राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे (परमाणु हथियार निर्मित किया जाए या नहीं) पर मतभेद और बहस जारी है ।"
क्लैपर ने कहा कि परमाणु बम बनाने के नफा-नुकसान का आकलन करने के दौरान ईरानी राजनीतिज्ञ इस मुद्दे पर अभी एकमत नहीं हो पाए हैं। उन्होंने कहा कि यद्यपि ईरान परमाणु हथियार बनाने में सक्षम है, लेकिन फिलहाल वह इसका निर्माण नहीं कर रहा है।
क्लैपर ने यह भी कहा कि ईरान, प्रतिक्रियास्वरूप अमेरिका पर हमला भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के नए प्रतिबंधों का ईरान पर एक बड़ा असर होगा, लेकिन इससे वहां की सरकार नहीं गिरने वाली है।
सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) के निदेशक डेविड पेट्रीयस ने भी सुनवाई में अपनी गवाही पेश की। उन्होंने कहा कि ईरान पर नए प्रतिबंध काफी असरकारक हो रहे हैं, हाल के सप्ताहों में ज्यादा असरकारक हुए हैं। लेकिन यह देखना बाकी है कि ये प्रतिबंध क्या ईरान को अपने आचरण और परमाणु कार्यक्रम पर अपनी नीतियां बदलने के लिए बाध्य कर पाते हैं या नहीं।
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 31 दिसम्बर को एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें ईरान पर नए प्रतिबंधों के प्रावधान शामिल थे। इस विधेयक के जरिए उन विदेशी वित्तीय संस्थानों को निशाना बनाया गया था, जो ईरान के केंद्रीय बैंक के साथ कारोबार करते हैं।