भारतीय-अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल ने अमेरिकी संसद में जम्मू-कश्मीर पर एक प्रस्ताव पेश करते हुए भारत से वहां लगाए गए संचार प्रतिबंधों को जल्द से जल्द हटाने और सभी निवासियों की धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षित रखे जाने की अपील की. जयपाल द्वारा कई सप्ताह के प्रयासों के बाद प्रतिनिधिसभा में पेश किए गए इस प्रस्ताव को कंसास के रिपब्लिकन सांसद स्टीव वाटकिंस के रूप में केवल एक सदस्य का समर्थन प्राप्त है. यह एक केवल एक प्रस्ताव है, जिस पर दूसरे सदन में वोट नहीं किया जा सकता और यह कानून नहीं बनेगा.
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प्रस्ताव में भारत से पूरे जम्मू-कश्मीर में संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंधों को हटाने और इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने की अपील की गई है. बता दें, भारत सरकार के पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने और उसे केन्द्र शासित प्रदेश घोषित करने के बाद से ही वहां कई प्रतिबंध लगे हुए हैं. इस प्रस्ताव को पेश किए जाने से पूर्व अमेरिका भर से भारतीय मूल के अमेरिकियों ने विभिन्न मंचों से इसका विरोध किया था. समझा जाता है कि उनके कार्यालय को इस प्रस्ताव को पेश नहीं करने के लिए भारतीय अमेरिकियों के 25 हजार से अधिक ईमेल प्राप्त हुए. भारतीय अमेरिकियों ने कश्मीर पर प्रस्ताव पेश करने के उनके कदम के खिलाफ उनके कार्यालय के बाहर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन भी किया.
The Indian government must quickly lift restrictions on cell phones and internet access, release arbitrarily detained people, protect free speech and peaceful protest, and condemn all religiously motivated violence at the highest levels across India.
— Rep. Pramila Jayapal (@RepJayapal) 8 December 2019
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प्रस्ताव में भारत से अपील की गई है कि मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए लोगों की जल्द से जल्द रिहाई की जाए और उन पर राजनीतिक गतिविधियों एवं भाषणों पर किसी प्रकार की रोक लगाने वाले बांड पर हस्ताक्षर करने की शर्त लगाने से बचा जाए. प्रस्ताव में दावा किया गया है कि इस बात के ‘फोटोग्राफिक' सबूत हैं कि हिरासत में लिए गए लोगों को उनकी रिहाई की शर्त के रूप में राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से मना करने और बयान जारी करने के लिए निश्चित बांड पर हस्ताक्षर करने होंगे. भारत ने हालांकि इन आरोपों को हमेशा खारिज किया है. भारत का कहना है कि जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने का निर्णय संप्रभु है और वह अपने आंतरिक मामले में किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा.
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