भारत ने शनिवार को दोहराया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर उसने सही कदम उठाया।
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नई दिल्ली:
भारत ने शनिवार को दोहराया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर उसने सही कदम उठाया।
प्रस्ताव के पक्ष में भारत के मतदान को जायज ठहराते हुए आधिकारिक सूत्रों ने कहा, "श्रीलंका में तमिलों से ढेर सारे वादे किए गए लेकिन उनके लिए बहुत कम किया गया है। कम्बोडिया जैसे देशों की तुलना में श्रीलंका में तमिलों की पुनर्वास प्रक्रिया अच्छी चली है लेकिन राजनीतिक प्रक्रिया में शिथिलता है। सत्ता का हस्तांतरण आगे नहीं बढ़ पा रहा है।"
सूत्रों ने कहा, "हमने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया क्योंकि यह भारत के रुख को दर्शाता है। हमें अपने रुख पर स्थिर रहना है।"
सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसले पर शुक्रवार रात श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री ने पत्र में राजपक्षे से पूछा है कि सत्ता के हस्तांतरण प्रक्रिया में श्रीलंका सरकार क्या शिथिलता बरत रही है क्योंकि इसमें देरी होने से वहां आतंकवाद पनपने का खतरा है।
श्रीलंका मामलों के जानकार इस बात से सहमत नहीं हैं कि यूएनएचआरसी का प्रस्ताव बहुल आबादी वाले सिंहली और तमिलों के बीच और दूराव उत्पन्न करेगा।
प्रस्ताव के पक्ष में भारत के मतदान को जायज ठहराते हुए आधिकारिक सूत्रों ने कहा, "श्रीलंका में तमिलों से ढेर सारे वादे किए गए लेकिन उनके लिए बहुत कम किया गया है। कम्बोडिया जैसे देशों की तुलना में श्रीलंका में तमिलों की पुनर्वास प्रक्रिया अच्छी चली है लेकिन राजनीतिक प्रक्रिया में शिथिलता है। सत्ता का हस्तांतरण आगे नहीं बढ़ पा रहा है।"
सूत्रों ने कहा, "हमने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया क्योंकि यह भारत के रुख को दर्शाता है। हमें अपने रुख पर स्थिर रहना है।"
सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसले पर शुक्रवार रात श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री ने पत्र में राजपक्षे से पूछा है कि सत्ता के हस्तांतरण प्रक्रिया में श्रीलंका सरकार क्या शिथिलता बरत रही है क्योंकि इसमें देरी होने से वहां आतंकवाद पनपने का खतरा है।
श्रीलंका मामलों के जानकार इस बात से सहमत नहीं हैं कि यूएनएचआरसी का प्रस्ताव बहुल आबादी वाले सिंहली और तमिलों के बीच और दूराव उत्पन्न करेगा।