सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे की राह में चीन ने बाधा डाल दिया है
संयुक्त राष्ट्र:
संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के प्रयास के तहत भारत ने कहा है कि वह सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर तब तक वीटो का अधिकार नहीं होने के विकल्प को लिए भी तैयार, हैं जब तक इस बारे में कोई फैसला नहीं हो जाता. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने अंतर सरकारी वार्ता बैठक में एक संयुक्त बयान में कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए बड़ी संख्या में संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश स्थायी और अस्थायी सदस्यता के विस्तार का समर्थन करते हैं.
अकबरुद्दीन ने कहा कि वीटो के सवाल पर कई लोगों ने अलग-अलग नजरिए से गौर किया, लेकिन जी-4 का रुख यह है कि वीटो कोई समस्या (नए स्थायी सदस्यों को तत्काल देने के संदर्भ में) नहीं है, बल्कि समस्या अवरोधों का प्रावधान करने को लेकर है. जी-4 में भारत के अलावा ब्राजील, जर्मनी और जापान शामिल हैं.
1945 में गठित सुरक्षा परिषद में चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका पांच स्थायी सदस्य हैं. 10 अस्थायी सदस्यों का चुनाव दो वर्ष के लिए किया जाता है. स्थायी सदस्यता के भारत के प्रयासों में चीन और पाकिस्तान अड़ंगा डालते रहे हैं.
जी-4 ने एक बयान में कहा, 'हमारा रुख इसी भावना के अनुरूप है. नए स्थायी सदस्यों के पास सैद्धांतिक तौर पर वो सभी जिम्मेदारियां और बाध्यताएं होंगी जो मौजूदा समय के स्थायी सदस्यों के पास है, हालांकि नए सदस्य वीटो का उपयोग तब तक नहीं करेंगे जब तक समीक्षा के दौरान कोई फैसला नहीं हो जाता.' इस समूह ने कहा कि वीटो का मुद्दा अहम है, लेकिन सदस्य देशों को 'सुरक्षा परिषद की सुधार प्रक्रिया पर वीटो' नहीं होने देना चाहिए.
जी4 देशों के बयान में कहा गया, 'इस बात से अवगत हैं कि आगे बढ़ने के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं है लेकिन इसके साथ ही हम संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए नए विचारों का स्वागत करते हैं.' उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक उन्हें कोई प्रगतिशील विचार सुनने को नहीं मिला है और कुछ देश पुराने ठुकराए गए विचारों को दोबारा पेश कर रहे हैं.
बयान में कहा गया कि उनका मानना है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यों के बीच 'प्रभाव का असंतुलन' है और गैर स्थायी श्रेणी में विस्तार करने भर से समस्या हल नहीं होगी। बयान में आगे कहा गया है, 'वास्तव में यह स्थायी और गैर स्थायी सदस्यों के बीच अंतर को और गहरा करेगा.' वीटो के मुद्दे पर जी-4 ने कहा उनका मानना है कि प्रतिबंध लाने पर -वीटो का मामला मात्रात्मक न हो कर गुणवत्ता का है.
अकबरुद्दीन ने कहा कि वीटो के सवाल पर कई लोगों ने अलग-अलग नजरिए से गौर किया, लेकिन जी-4 का रुख यह है कि वीटो कोई समस्या (नए स्थायी सदस्यों को तत्काल देने के संदर्भ में) नहीं है, बल्कि समस्या अवरोधों का प्रावधान करने को लेकर है. जी-4 में भारत के अलावा ब्राजील, जर्मनी और जापान शामिल हैं.
1945 में गठित सुरक्षा परिषद में चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका पांच स्थायी सदस्य हैं. 10 अस्थायी सदस्यों का चुनाव दो वर्ष के लिए किया जाता है. स्थायी सदस्यता के भारत के प्रयासों में चीन और पाकिस्तान अड़ंगा डालते रहे हैं.
जी-4 ने एक बयान में कहा, 'हमारा रुख इसी भावना के अनुरूप है. नए स्थायी सदस्यों के पास सैद्धांतिक तौर पर वो सभी जिम्मेदारियां और बाध्यताएं होंगी जो मौजूदा समय के स्थायी सदस्यों के पास है, हालांकि नए सदस्य वीटो का उपयोग तब तक नहीं करेंगे जब तक समीक्षा के दौरान कोई फैसला नहीं हो जाता.' इस समूह ने कहा कि वीटो का मुद्दा अहम है, लेकिन सदस्य देशों को 'सुरक्षा परिषद की सुधार प्रक्रिया पर वीटो' नहीं होने देना चाहिए.
जी4 देशों के बयान में कहा गया, 'इस बात से अवगत हैं कि आगे बढ़ने के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं है लेकिन इसके साथ ही हम संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए नए विचारों का स्वागत करते हैं.' उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक उन्हें कोई प्रगतिशील विचार सुनने को नहीं मिला है और कुछ देश पुराने ठुकराए गए विचारों को दोबारा पेश कर रहे हैं.
बयान में कहा गया कि उनका मानना है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यों के बीच 'प्रभाव का असंतुलन' है और गैर स्थायी श्रेणी में विस्तार करने भर से समस्या हल नहीं होगी। बयान में आगे कहा गया है, 'वास्तव में यह स्थायी और गैर स्थायी सदस्यों के बीच अंतर को और गहरा करेगा.' वीटो के मुद्दे पर जी-4 ने कहा उनका मानना है कि प्रतिबंध लाने पर -वीटो का मामला मात्रात्मक न हो कर गुणवत्ता का है.
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