
चीनी मीडिया ने कहा है कि भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर अपनी ''रणनीतिक बेचैनी'' त्याग देनी चाहिए.
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सीपीईसी से जुड़ी संप्रभुता संबंधी चिंताओं पर बीआरएफ का बहिष्कार
लेख में कहा, दोनों देश प्रतिद्वंद्वियों की बजाए सहयोगी बन सकते हैं
असहजता के बावजूद भारत का चीन को लेकर बेचैनी से उबरना जरूरी
शिन्हुआ में आए लेख 'इंडियाज चाइना-फोबिया माइट लीड टू स्ट्रैटजिक मायोपिया' में भारत द्वारा मई में चीन में हुए बेल्ड एंड रोड फोरम (बीआरएफ) सम्मेलन का बहिष्कार करने की आलोचना करते हुए भारत से ''चीन को लेकर अपनी बेचैनी'' का त्याग करने को कहा गया.
भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाले 50 अरब डॉलर की लागत से बन रहे चाइना-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) से जुड़ी संप्रभुता संबंधी चिंताओं को लेकर बीआरएफ का बहिष्कार किया था. इसके बाद भारत ने कहा था कि चीन की महत्वाकांक्षी पहल इस तरह से आगे बढ़नी चाहिए कि उससे संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हो.
लेख में सीपीईसी का नाम नहीं लिया गया लेकिन मूल बेल्ड एंड रोड पहल की तरफ संकेत किया गया.
शिन्हुआ के लेख को सरकारी रुख समझा जाता है. इसमें कहा गया, ''रणनीतिक असहजता के बावजूद भारत के लिए 'चीन को लेकर अपनी बेचैनी' से उबरना और पहल का गहराई से आकलन करना, उसके संभावित लाभों को पहचानना तथा अवसरों का लाभ उठाना जरूरी है.''
लेख में भारत स्थित चीनी दूतावास के उप मिशन प्रमुख लियू जिन्सोंग के भाषण का हवाला देते हुए कहा गया, ''प्राचीन सभ्यताओं एवं समृद्ध इतिहास वाले दोनों देश प्रतिद्वंद्वियों की बजाए सहयोगी बन सकते हैं.'' जिन्सोंग ने अपने भाषण में कहा था कि ''एशिया का आकाश एवं समुद्र इतने बड़े हैं कि ड्रैगन (चीन) और हाथी (भारत) साथ नाच सकते हैं जिससे सच्चे अर्थों में एक एशियाई युग की शुरुआत होगी.''
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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