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This Article is From Mar 27, 2014

श्रीलंका के खिलाफ संरा के प्रस्ताव पर मतदान से अलग रहा भारत

श्रीलंका के खिलाफ संरा के प्रस्ताव पर मतदान से अलग रहा भारत
जिनीवा:

एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के मुद्दे पर श्रीलंका के खिलाफ अमेरिका की शह पर लाए गए एक प्रस्ताव पर पहली बार गुरुवार को भारत ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। संरा मानवाधिकार परिषद में इस प्रस्ताव को 12 के मुकाबले 23 मतों से पारित किया गया जबकि 12 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

स्थानीय संरा कार्यालय में भारत के स्थायी प्रतिनिधि दिलीप सिन्हा द्वारा मतदान के समय दिये गये बयान के अनुसार संरा मानवाधिकार परिषद का यह प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय जांच तंत्र का हस्तक्षेप करने वाला दृष्टिकोण थोपता है।

भारत के अनुसार यह प्रस्ताव विपरीत नतीजे दिलाने वाला है तथा यह 'असंगत एवं अव्यावहारिक' है।

वर्ष 2009 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत ने 'श्रीलंका में सुलह, जवाबदेही और मानवाधिकार' संबंधी प्रस्ताव के मतदान में हिस्सा नहीं लिया है। तीनों बार 2009, 2012 और 2013 में भारत ने प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया था।

उन्होंने ध्यान दिलाया कि 2009, 2012 और 2013 के विपरीत यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त से श्रीलंका में मानवाधिकार की स्थिति की 'जांच, आकलन एवं निगरानी' के बारे में कहता है। यह एक हस्तक्षेप करने वाला रवैया है जिससे राष्ट्रीय समप्रभुता कमतर होती है।

सिन्हा ने कहा, 'भारत का यह दृढ़ता से मानना है कि हस्तक्षेप करने वाले रवैये के कारण राष्ट्रीय संप्रभुता एवं संस्थान कमतर होते हैं और इससे विपरीत नतीजे निकलते हैं। सार्थक अंतरराष्ट्रीय वार्ता एवं सहयोग के मूल सिद्धांत से कोई भी महत्वपूर्ण विचलन में मानवाधिकार संरक्षण एवं मूलभूत स्वतंत्रताओं के सार्वभौमिक सम्मान के लिए मानवाधिकार परिषद द्वारा किए जा रहे प्रयास कमतर होने की संभावना रहती है।'

उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी बाहरी जांच तंत्र में वह दृष्टिकोण नहीं झलकता है जिसकी परिकल्पना संरा महासभा में पूर्व में लाए गए प्रस्तावों में वार्ता एवं सहयोग के सकारात्मक रवैये के माध्यम से की गई थी। इस जांच तंत्र को किसी देश में मानवाधिकारों के संरक्षण की राष्ट्रीय प्रक्रिया की निगरानी करने की भी खुली छूट प्राप्त है।

भारत ने एक बयान में कहा, 'भारत का सदैव यह मत रहा है कि श्रीलंका में संघर्ष समाप्त होने के कारण एक ऐसा अनूठा अवसर उत्पन्न हुआ है जिसमें तमिलों सहित श्रीलंका के सभी समुदायों को स्वीकार्य स्थायी राजनीतिक समाधान को तलाश जा सकता है।'
बयान के अनुसार 'भारत का मानना है कि इस परिषद के प्रयासों को मानवाधिकार के प्रोत्साहन एवं संरक्षण के राष्ट्र द्वारा स्वयं किये जा रहे प्रयासों में योगदान देना चाहिए। हम श्रीलंका द्वारा मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय से लगातार सहयोग बनाये रखने को अपना मजबूत समर्थन देते हैं।'

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