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This Article is From Oct 23, 2015

IMF ने चेताया, पांच साल में खाली हो सकता है सऊदी अरब का खजाना

IMF ने चेताया, पांच साल में खाली हो सकता है सऊदी अरब का खजाना
प्रतीकात्मक तस्वीर
दुबई: दुनिया के दौलतमंद देशों में गिने जाने वाले सऊदी अरब का खजाना आने वाले पांच सालों में खाली हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक, तेल के दाम गिरना अगर ऐसा ही जारी रहा और सरकार अपनी मौजूदा आर्थिक नीति से ही चिपकी रही, तो सऊदी अरब की आर्थिक संपदा जल्द ही खत्म हो सकती है। आईएमएफ ने सऊदी अरब सरकार को बजट घाटे को नियंत्रित करने की सलाह दी है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, यही हाल छह सदस्यीय खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) में शामिल ओमान और बहरीन का भी है। हालांकि कुवैत, कतर और यूएई जैसे देशों की हालत सऊदी अरब के मुकाबले खासी बेहतर है, जो तेल की घटती कीमतों के बावजूद अगले 20 वर्षों तक अपनी मजबूत आर्थिक स्थिति को कायम रख सकते हैं।

तेल के गिरते दाम बनी मुसीबत
आईएमएफ के मध्य पूर्व निदेशक मसूद अहमद ने दुबई में रिपोर्ट जारी करते हुए बताया, 'क्षेत्र के तेल निर्यातकों के लिए, गिरती कीमतों से राजस्व का नुकसान हो रहा है, जो कि अकेले इस साल ही करीब 360 अरब डॉलर के करीब रहा है।'
सरकारी कर्मचारियों को दिए बोनस से और बढ़ा घाटा
आईएमएफ का अनुमान है कि सऊदी अरब का बजटीय घाटा उसकी जीडीपी के 20 पर्सेंट तक हो सकता है। किंग सलमान की ओर से सरकारी कर्मचारियों को बोनस दिए जाने के ऐलान के बाद सरकारी घाटा और बढ़ गया है। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक सऊदी सरकार का घाटा 2016 तक जीडीपी के 19.4 पर्सेंट तक पहुंच सकता है।

खर्चे घटाने की तैयारी में जुटा सऊदी अरब
सऊदी अरब ने स्थिति को समझते हुए खर्चों में कटौती की योजना बनानी शुरू कर दी है ताकि भविष्य के लिए सार्वजनिक संपदा को सहेज कर रखा सके। सऊदी अधिकारी बार-बार यह कहते रहे हैं कि तेल की कीमतों में लगातार गिरावट के बावजूद सऊदी अरब किसी भी संकट का सामना करने के लिए तैयार है। जैसा कि वह पहले भी कई बार मुश्किल परिस्थितियों का सामना कर चुका है। लेकिन आईएमएफ के मुताबिक तेल आपूर्तिकर्ता देशों के पास पांच साल बाद संपदा का अभाव हो जाएगा, क्योंकि वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।

सऊदी का विकास दर दुनिया में सबसे कम
सऊदी अरब ने बीते दशक में तेल की बिक्री से कमाए अरबों डॉलर की बचत किसी भी आर्थिक संकट से बचने के लिए रखी थी। लेकिन 2014 में सऊदी अरब की जीडीपी ग्रोथ दो फीसदी से भी कम रही है, जो दुनिया में सबसे कम है। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी की वजह से सऊदी सरकार को 2007 के बाद पहली बार अपनी परियोजनाओं को लंबित करने और बॉन्ड्स बेचने पर मजबूर होना पड़ा है। गौरतलब है कि सऊदी सरकार की कमाई का 80 पर्सेंट हिस्सा कच्चे तेल की बिक्री से ही आता है।

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