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12 दिन की जंग खत्म! अमेरिका, इजरायल और ईरान.. कौन रहा सबसे बड़ा विनर और लूजर?

Iran Israel ceasefire: 12 दिन चली इस जंग में मुख्य रूप से 3 किरदार थे- ईरान, इजरायल और अमेरिका. ईरान अकेला था जबकि अमेरिका ने वाइल्ड कार्ड एंट्री मारते हुए आखिर में इजरायल की तरफ से ईरान पर हमला किया.

12 दिन की जंग खत्म! अमेरिका, इजरायल और ईरान.. कौन रहा सबसे बड़ा विनर और लूजर?
Iran Israel ceasefire: ईरान-इजरायल जंग में कौन जीता और कौन हारा

ईरान और इजरायल की जंग खत्म हो गई है. कम से कम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो यही दावा कर रहे हैं कि दोनों देशों में सीजफायर समझौता (Iran Israel ceasefire) हो गया है. हालांकि ईरानी विदेश मंत्री ने दावा किया है कि दोनों देश के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है, लेकिन अगर इजरायल कोई हमला नहीं करता है तो ईरान का मकसद भी जंग को बढ़ाना नहीं है. ईरान ने सीजफायर शुरू होने के ऐन वक्त तक इजरायल पर मिसाइल हमला जारी रखा. मिसाइल हमलों की 6 लहरों के बाद ईरान ने कहा कि आखिरी वार हमारा था और अब इजरायल हमला नहीं करता है तो ईरान कोई हमला नहीं करेगा.

तो कुल मिलाकर 12 दिन चली इस जंग में मुख्य रूप से 3 किरदार थे- ईरान, इजरायल और अमेरिका. ईरान अकेला था जबकि अमेरिका ने वाइल्ड कार्ड एंट्री मारते हुए आखिर में इजरायल की तरफ से ईरान पर हमला किया. अब जब जंग खत्म होती दिख रही है, सबसे बड़ा सवाल है कि इन किरदारों को जंग में क्या हासिल हुआ? क्या इजरायल और अमेरिका ने जिस उद्देश्य से ईरान पर हमला किया था, वो पूरा हुआ? चलिए एक-एक कर विचार करते हैं.

इजरायल और अमेरिका ने हमला क्यों किया था?

इजरायल और अमेरिका का दावा है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है और इसीलिए उन्होंने ईरान पर हमला किया. जबकि ईरान दावा कर रहा था कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण नागरिक उद्देश्यों के लिए है, परमाणु हथियार बनाने के लिए नहीं. खास बात यह थी कि जो दो देश ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए जंग शुरू करने वाले थे, उनमें से एक (अमेरिका) ने दो-दो बार खुद परमाणु हथियार का उपयोग किया था और दूसरे (इजरायल) ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर तक नहीं किया है.

13 जून को जब इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों के साथ परमाणु वैज्ञानिकों पर पहली बार हमला किया था तो उसके पहले तक ट्रंप जंग के खिलाफ नजर आ रहे थे, वो बार-बार नेतन्याहू से कह रहे थे कि हमला नहीं करना है. इतना ही नहीं, जंग शुरू होने के बाद भी ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि यह इजरायल का अपना फैसला है. लेकिन एक बार जंग आगे बढ़ी तो ट्रंप खुलकर इजरायल के साथ आ गए. उन्होंने न सिर्फ तेहरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमला करवाकर अमेरिका को जंग में शामिल किया बल्कि खुले तौर पर ईरान में सुप्रीम लीडर खामेनेई के तख्तापलट की वकालत की.

क्या अमेरिका और इजरायल अपने मकसद में सफल रहे?

अभी भी सबको इंतजार इस बात का है कि क्या सचमुच ईरान और इजरायल, दोनों सीजफायर पर सहमत हुए हैं, जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप का दावा है. लेकिन सीजफायर से भी कठिन हिस्सा उसके बाद आता है: क्या ईरान के हाथ परमाणु हथियार नहीं लगेगा, इसको लेकर दोनों देश आश्वस्त हो गए हैं. व्हाइट हाउस ने दावा किया कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से नष्ट हो गया है. लेकिन जब तक ईरान न्यूक्लियर वॉचडॉग- IAEA को ग्राउंड पर आने की इजाजत नहीं देता तब तक किसी को भी निश्चित रूप से पता नहीं चलेगा.

अमेरिका और इजरायल के लिए बुरी खबर यह है कि ईरान की संसद के अध्यक्ष ने सोमवार को कहा है कि तेहरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी IAEA के साथ अपना सहयोग खत्म करने पर विचार कर रहा है.

अमेरिका के लिए परेशानी का सबब फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट से आई एक सैटेलाइट इमेज भी है. उसमें दिख रहा है कि अमेरिका के हमले के पहले प्लांट के बाहर ट्रकों की लाइन लगी हुई थी. सवाल है कि क्या ईरानियों ने अमेरिकी हमले से पहले ही परमाणु सामग्री और यूरेनियम को शुद्ध करने वाली मशीनों को वहां से हटा दिया था? क्या ऐसे गुप्त परमाणु स्थल हैं जो हमलों से नष्ट नहीं हुए हैं?

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ईरान पर इस स्तर के हमले के बाद अमेरिकियों के लिए बहुत मुश्किल होगा कि आगे ईरानियों के साथ कोई न्यूक्लियर डील कर सके. पिछली बार जब अमेरिका ने ईरान के साथ इस तरह के समझौते पर बातचीत की थी, तो कागज पर हस्ताक्षर करने में दो साल से अधिक का समय लगा था. ओबामा ने समझौता करवाया था तो ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद इससे पीछे हट गए तो और इसे रद्द कर दिया गया. ट्रंप ने 2018 में इसी तरह के एक समझौते, जेसीपीओए को यह तर्क देते हुए तोड़ दिया था कि यह दोषपूर्ण था और ईरान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोक सकता था. अब स्थिति यह है कि ट्रंप चाहकर भी जेसीपीओए के स्तर का समझौता ईरान के साथ नहीं कर सकते.

ईरान को जंग से क्या मिला?

जंग से पहले इजरायल ने जिस तरह का माहौल बनाया था, ईरान को अंदेशा हो गया था कि तनाव बढ़ने वाला है और युद्ध कभी भी हो सकता है. जबतक अमेरिका जंग में नहीं कूदा था, ईरान ने इजरायल को मुंहतोड़ जवाब भी दिया. हालांकि अमेरिका के जंग में कूदते ही ईरान ने संभलकर कदम रखा. भले कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरान ने हमला किया लेकिन उनसे पहले अमेरिका को जानकारी भी दे दी थी. राष्ट्रपति ट्रंप ने सोमवार को कहा कि ईरान ने कतर में सैन्य अड्डे पर मिसाइलें दागने से पहले अमेरिका को नोटिस दे दिया था, जिसके बाद इससे यह संभव हो गया कि कोई जान न जाए. इसके अलावा सीजफायर का वक्त शुरू होने के आखिरी वक्त तक ईरान ने इजरायल पर मिसाइल हमले किए. उसने पहले ही कहा था कि जंग इजरायल ने शुरू की थी लेकिन खत्म ईरान करेगा. लगता है कि ईरान हाई ग्राउंड लेना चाहता है और ऐसा करके दिखाना चाहता है कि वो जंग से हट रहा है तो अपनी शर्त पर हट रहा है.

क्या इजरायल और अमेरिका ने इराक युद्ध से कुछ नहीं सीखा?

यह बात किसी से नहीं छिपी कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ईरान पर हमला करना चाहते थे. अभी पूरे गाजा पर कब्जा और हमास के सफाए के साथ ईरान के खतरे को कम करना, मानों उनकी जिंदगी का यही एक सबसे बड़ा मकसद था. उन्हें डर इस बात का है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है. लेकिन क्या उन्होंने ईरान पर हमले के पहले इराक युद्ध से कोई सबक नहीं लिया था. 

आज से 23 साल पहले 2002 में संयुक्त राज्य कांग्रेस में गवाही देते हुए तत्कालीन पूर्व इजरायली प्रधान मंत्री के रूप में बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी सांसदों से कहा था कि "आतंकवाद के खिलाफ युद्ध" जीतने, इराक और आतंकवादी समूहों को सामूहिक विनाश के हथियार हासिल करने से रोकने के लिए इराक पर आक्रमण आवश्यक था. उन्होंने यहां दावा किया कि युद्ध जल्द खत्म हो जाएगा और न केवल इराक में, बल्कि ईरान सहित पूरे क्षेत्र में लोकतंत्र के एक नए युग की शुरुआत होगी.

लेकिन क्या इसमें से कोई भी बात सच साबित हुई? यह पता चला कि सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के कोई हथियार नहीं थे. वहां शांति और सुखद लोकतंत्र तो स्थापित नहीं हुआ लेकिन यह जरूर हो गया कि इराक आज भारी आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से जूझता एक अस्थिर देश है. 


 

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