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This Article is From Sep 26, 2015

सुरक्षा परिषद में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया जाना चाहिए : पीएम मोदी

सुरक्षा परिषद में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों को शामिल किया जाना चाहिए : पीएम मोदी
पीएम मोदी
संयुक्त राष्ट्र: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी 4 शिखर सम्मेलन का आगाज करते हुए इसमें शिरकत कर रहे नेताओं को धन्यवाद दिया। पीएम मोदी ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के संबंध में दशकों तक के लिए वैश्विक सतर्कता महत्वपूर्ण विषय है। हमारा चार देशों का समूह जी4 सन 2004 में एकजुट हुआ। विश्व शांति और सौहार्द के लिए हमारी संयुक्त प्रतिबद्धताएं हैं।'

उन्‍होंने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र की 70वीं वर्षगांठ पर हम इसके जन्म के समय की तुलना में मूलभूत रूप से बदल चुके समय में हैं। आज सुरक्षा को लेकर खतरे अधिक जटिल हो गए हैं। यह खतरे अप्रत्याशित और अनजान किस्म के हैं।'

पीएम मोदी ने कहा, 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सबसे बड़े जनसांख्यिकी और अर्थव्यवस्था के प्रमुख लोकोमोटिव को जरूर शामिल करना चाहिए। इससे विश्वसनीयता बढ़ेगी और इसे वैधता को ले जाएगी। इससे अधिक प्रभावी ढंग से चुनौतियों का सामना किया जा सकेगा।'

उन्‍होंने आगे कहा, हम कुछ दशकों के बाद आखिरकार कुछ हलचल देख रहे हैं। वार्ता शुरू करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यह भले ही पहला कदम है लेकिन हमारा लक्ष्य इसके तर्कपूर्ण निष्कर्ष तक पहुंचना है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह बैठक इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए बड़ा प्रोत्साहन देगी।'

बैठक  में जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे और ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ ने  भी भागदारी की।  यह न्यूयार्क में मोदी का आज का अंतिम आधिकारिक कार्यक्रम था।

भारत एवं उक्त तीन देश, जो कि जी 4 ग्रुप के देश कहलाते हैं, एक-दूसरे का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए समर्थन करते हैं।

महासभा ने 14 सितंबर को मौजूदा सत्र में यूएनएससी सुधारों के लिए एक दस्तावेज पर चर्चा करने और दस्तावेज आधारित वार्ता शुरू करने का निर्णय पारित किया था जिसके बाद यह शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

दूसरी बार जी4 शिखर सम्मेलन का आयोजन
जी4 शिखर सम्मेलन का आयोजन दूसरी बार किया गया  है। पहला जी4 शिखर सम्मेलन 2004 में उस समय हुआ था जब चार बहुत महत्वपूर्ण देशों ने परिषद सुधार पर जोर देने के लिए यह समूह गठित किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया था कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार केवल परिषद में सुधार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वैश्विक संस्था की संचालन संरचना में भी सुधार करना शामिल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 15 देशों की परिषद में सुधार और विस्तार बहुत महत्वपूर्ण है। इस वैश्विक संस्था का जब गठन हुआ था, उस समय इसमें केवल 51 देश शामिल थे लेकिन इसके सदस्यों की संख्या अब बढ़कर 193 हो गई है।

परिषद का 1963 से 1965 के बीच केवल एक बार विस्तार किया गया था। उस सयम अस्थायी सदस्यों की संख्या 11 से बढ़ाकर 15 करने का प्रस्ताव पारित किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1945 की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का दर्पण
स्वरूप ने कहा, ‘ यह हमें ऐसा महसूस कराता है कि 2015 की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 21 सदी नहीं बल्कि 1945 की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का दर्पण है। ’ उन्होंने कहा कि परिषद में सुधार के बाद ही वह मौजूदा समय की चुनौतियों से सही तरीके से निपटने में सक्षम होगी। उन्होंने कहा,‘ हमारे सामने साइबर सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की चुनौती है। तीन महाद्वीपों में युद्ध की स्थिति है लेकिन सुरक्षा परिषद उनसे निपटने में सक्षम नहीं है। क्यों? क्योंकि यह उचित प्रतिनिधित्व नहीं करती और साथ ही इसकी वैधता पर भी सवाल उठ रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद और महासभा के बीच संबंध निर्धारित करने की भी आवश्यकता है।

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