अमेरिका में पूर्व पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा है कि पाकिस्तान ने हमेशा अपनी सेना को भारत के साथ बराबरी में लाने के लिए मजबूत किया और बराबरी की उसकी यही कोशिश उनके देश की आंतरिक शिथिलता के लिए आंशिक तौर पर जिम्मेदार है।
हक्कानी ने कहा कि आजादी के बाद से ही पाकिस्तानी नेतृत्व ने अपनी सेना को भारत के बराबर लाने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा, ‘बराबरी की यही कोशिश पाकिस्तान की आंतरिक शिथिलता के लिए आंशिक तौर पर जिम्मेदार है।’ हक्कानी ने कहा कि साल 1947 में खासतौर पर भारतीयों ने बंटावारे के विचार का समर्थन नहीं किया था और शायद आज भी वे बंटवारे के विचार को पसंद नहीं करते।
उन्होंने अपनी नई पुस्तक ‘मैग्नीफिसेंट डिल्यूसंस’ में कहा, ‘मैं नहीं समझता कि भारत फिलहाल पाकिस्तान को अपने नियंत्रण में लेना चाहेगा क्योंकि वे अतिरिक्त समस्याएं मोल नहीं लेना चाहते।’ उनकी यह पुस्तक हाल ही में बाजार में आई है। हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान को व्यापार और आर्थिक मुद्दों पर जोर देना चाहिए।
हक्कानी ने कहा, ‘किसी परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र को ऐसे व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए जो बंदूके खरीदते रहना चाहता है क्योंकि वह कहता है कि उसे अपने परिवार की हिफाजत करनी है और फिर पूरी रात इस डर के साथ जगा रहता है कि कोई आएगा और उसकी बंदूके चुरा लेगा।’
उन्होंने कहा कि अमेरिका का यह सोचना गलत है कि वह सैन्य और आर्थिक सहयोग देकर पाकिस्तान के बारे में दुनिया का नजरिया बदल देगा।
पूर्व पाकिस्तानी राजदूत ने कहा कि पाकिस्तान की शिथिलता को नहीं समझकर और पाकिस्तानी नेतृत्व को अपनी सेना को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित करके अमेरिका पाकिस्तानी सेना के उदय में मददगार रहा है।
हक्कानी ने कहा कि रीगन प्रशासन (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन) के दौरान यही धारणा बनी रही कि अगर पाकिस्तान को पारंपरिक हथियार दिए जाते रहे तो वह परमाणु हथियार विकसित नहीं करेगा।
उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान को समझने में यहां गलती हुई। पाकिस्तान परमाणु हथियार चाहता था और उसने हासिल किया। परमाणु हथियार पाकिस्तान को एक तरह की सुरक्षा देते हैं।’
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