चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पीएम नरेंद्र मोदी मित्रतापूर्ण संबंधों की वकालत करते रहे हैं.
नई दिल्ली:
वैसे तो भारत और चीन सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे के साथ शांति और मित्रतापूर्ण संबंधों को विकसित करने की वकालत करते हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ आजकल चीनी मीडिया भारत को धमकी देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता. उसी की ताजा कड़ी में चीनी मीडिया ने दावा किया है कि यदि इन दोनों के बीच युद्ध शुरू हो जाए तो उनकी सेना महज 48 घंटों के भीतर नई दिल्ली पर धावा बोल सकती है. सिर्फ इतना ही नहीं यह भी कहा गया कि चीनी सैनिकों को भेजने में यदि पैराशूट की मदद ली गई तो केवल 10 घंटे में ही वे दिल्ली में पहुंच जाएंगे.
उल्लेखनीय है कि हालिया दौर में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर, एनएसजी ग्रुप में भारत की सदस्यता और भारत के वियतनाम को मिसाइल बेचने की मंशा के मसले पर द्विपक्षीय खटास बढ़ी है. पिछले दिनों मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की सूची में डालने और प्रतिबंध लगाने की भारत की कोशिशों को चीन ने फिर से नाकाम कर दिया. इससे पहले भी वह इस तरह की कोशिश को नाकाम कर चुका है. भारत ने चीन के इस कदम की आलोचना की है. भारत का मानना है कि अपने मित्र पाकिस्तान की वजह से चीन जानबूझकर ऐसा कर रहा है.
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भारत की एनएसजी सदस्यता 'फेयरवेल गिफ्ट' नहीं हो सकती : चीन ने अमेरिका से कहा
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चीनी मीडिया की धमकी, अगर भारत ने वियतनाम को आकाश मिसाइलें बेचीं तो चीन चुप नहीं बैठेगा
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चीन से परमाणुशक्ति-चालित लड़ाकू पनडुब्बी हासिल कर सकता है पाकिस्तान : NDTV एक्सक्लूसिव
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चीन दूसरे देशों की चिंताओं पर ध्यान नहीं देता : विदेश सचिव एस जयशंकर
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इसी तरह जब कुछ दिन पहले चीन के प्रतिद्वंद्वी वियतनाम को भारत ने स्वदेश निर्मित सतह से आकाश में मार करने वाले आकाश मिसाइल बेचने की मंशा जाहिर की तो तब चीन ने भड़कते हुए कहा था कि भारत ये न समझे कि चीन इस पर चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा.
कुछ समय पहले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह(एनएसजी) में भारत की दावेदारी को भी चीन ने झटका दिया था. केवल चीन के विरोध की वजह से ही भारत इस समूह का सदस्य नहीं बन सका. जबकि अमेरिका समेत दुनिया के कई बड़े मुल्कों ने भारत का समर्थन किया था. इसके पीछे भी यही माना जा रहा है कि चीन चाहता है कि यदि भारत को इसमें शामिल किया जाए तो पाकिस्तान को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाना चाहिए. इसीलिए यह दबाव बनाया जा रहा है.
चीन के साथ संबंधों के मसले पर बुधवार को दिल्ली में आयोजित हो रहे रायसीना डायलॉग में बोलते हुए विदेश सचिव एस जयशंकर ने आज कहा है कि अपनी संप्रभुता के मामले में चीन बहुत संवेदनशील रहता है, लेकिन दूसरे देशों की चिंताओं पर ध्यान नहीं देता. एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की योजना और निर्माण बिना भारत की सहमति के उस भारतीय ज़मीन पर किया गया, जो अवैध तरीके से पाकिस्तान के कब्ज़े में है. चीन को दूसरे देशों की चिंताओं के लिए भी संवेदनशील होना चाहिए.
उल्लेखनीय है कि हालिया दौर में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर, एनएसजी ग्रुप में भारत की सदस्यता और भारत के वियतनाम को मिसाइल बेचने की मंशा के मसले पर द्विपक्षीय खटास बढ़ी है. पिछले दिनों मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकियों की सूची में डालने और प्रतिबंध लगाने की भारत की कोशिशों को चीन ने फिर से नाकाम कर दिया. इससे पहले भी वह इस तरह की कोशिश को नाकाम कर चुका है. भारत ने चीन के इस कदम की आलोचना की है. भारत का मानना है कि अपने मित्र पाकिस्तान की वजह से चीन जानबूझकर ऐसा कर रहा है.
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इसी तरह जब कुछ दिन पहले चीन के प्रतिद्वंद्वी वियतनाम को भारत ने स्वदेश निर्मित सतह से आकाश में मार करने वाले आकाश मिसाइल बेचने की मंशा जाहिर की तो तब चीन ने भड़कते हुए कहा था कि भारत ये न समझे कि चीन इस पर चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा.
कुछ समय पहले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह(एनएसजी) में भारत की दावेदारी को भी चीन ने झटका दिया था. केवल चीन के विरोध की वजह से ही भारत इस समूह का सदस्य नहीं बन सका. जबकि अमेरिका समेत दुनिया के कई बड़े मुल्कों ने भारत का समर्थन किया था. इसके पीछे भी यही माना जा रहा है कि चीन चाहता है कि यदि भारत को इसमें शामिल किया जाए तो पाकिस्तान को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाना चाहिए. इसीलिए यह दबाव बनाया जा रहा है.
चीन के साथ संबंधों के मसले पर बुधवार को दिल्ली में आयोजित हो रहे रायसीना डायलॉग में बोलते हुए विदेश सचिव एस जयशंकर ने आज कहा है कि अपनी संप्रभुता के मामले में चीन बहुत संवेदनशील रहता है, लेकिन दूसरे देशों की चिंताओं पर ध्यान नहीं देता. एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की योजना और निर्माण बिना भारत की सहमति के उस भारतीय ज़मीन पर किया गया, जो अवैध तरीके से पाकिस्तान के कब्ज़े में है. चीन को दूसरे देशों की चिंताओं के लिए भी संवेदनशील होना चाहिए.
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