लिथुआनिया (Lithuania) द्वारा ताइवान (Taiwan) को प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की अनुमति दिए जाने से नाराज चीन (China) ने रविवार को लिथुआनिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों का स्तर कम कर दिया. इस कदम से यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ बीजिंग के संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि 30 लाख से भी कम आबादी वाला यह बाल्टिक देश ईयू (EU) का प्रभावशाली सदस्य है. चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘दुनिया में केवल एक चीन है और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People's Republic of China) संपूर्ण चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र वैध सरकार है.'' इसने कहा कि ‘एक-चीन' के सिद्धांत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल है जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मान्यता देने वाला व्यापक रूप से मान्य नियम है और यह द्विपक्षीय संबंध बनाने के वास्ते चीन तथा लिथुआनिया के लिए राजनीतिक नींव है.
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बयान में कहा गया है, ‘‘खेदजनक है कि लिथुआनिया ने चीन के गंभीर रुख को नजरअंदाज करने और द्विपक्षीय संबंधों के व्यापक हितों तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल नियमों का निरादर करने का रास्ता चुना. उसने लिथुआनिया में ताइवान के नाम वाला प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित करने की अनुमति दी है. चीन सरकार के पास लिथुआनिया के साथ राजनयिक संबंधों के स्तर को कम कर मिशन प्रभारी नियुक्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. लिथुआनिया सरकार को इसके परिणाम भुगतने होंगे.''
राजनयिक भाषा में राजनयिक संबंधों के स्तर को कम करने का मतलब है कि दूतावास का नेतृत्व राजदूत की अनुपस्थिति में मिशन प्रमुख द्वारा किया जाएगा. चीन पहले ही लिथुआनिया की राजधानी विलनियस से अपने दूत को वापस बुला चुका है.
चाइना इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में यूरोपीय अध्ययन विभाग के निदेशक कुई होंगजियान ने ग्लोबल टाइम्स से कहा, ‘‘राजनयिक स्तर को कम करने का मतलब चीन-लिथुआनिया राजनयिक संबंधों को एक गंभीर झटका है, क्योंकि मिशन प्रभारी के पास राजदूतों जितने पूर्ण अधिकार नहीं होते. यह इंगित करता है कि दोनों देशों में राजनयिकों की शक्ति बहुत सीमित और प्रभावित होगी.''
नीदरलैंड द्वारा पांच मई 1981 को ताइवान को पनडुब्बी बिक्री की अनुमति दिए जाने के बाद चीन ने नीदरलैंड के साथ भी राजनयिक संबंधों के स्तर को कम करने का ऐसा ही फैसला किया था. पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन को लगता है कि लिथुआनिया के इस कदम से ईयू और छोटे देशों को इस तरह के कदम उठाने की प्रेरणा मिल सकती है.
इसके साथ ही बीजिंग ने ताइवान को आगाह करते हुए कहा, ‘‘हम ताइवान प्राधिकारियों को भी सख्त चेतावनी देते हैं कि ताइवान कभी एक देश नहीं रहा. यह मायने नहीं रखता कि ताइवान के स्वतंत्र बल तथ्यों को किस तरह दिखाते हैं लेकिन ऐतिहासिक तथ्य यह है कि मुख्य भूभाग और ताइवान एक हैं तथा इस तरह चीन को बदला नहीं जा सकता. राजनीतिक जोड़-तोड़ के लिए विदेशी समर्थन हासिल करने की कोशिशें खतरनाक साबित होंगी.''
दरअसल, ताइवान पर चीन अपना दावा जताता है. उसने हाल के हफ्तों में ताइवान के वायु क्षेत्र में 200 से अधिक सैन्य विमानों को भेजकर तनाव बढ़ा दिया है. बीजिंग ने अगस्त में विलनियस से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और लिथुआनिया से भी चीन से अपने राजदूत को वापस बुलाने को कहा था.
वहीं, लिथुआनिया के अर्थव्यवस्था मामलों के मंत्री ऑस्ट्रिन आर्मोनेत ने गुरुवार को कहा कि उनका देश यूएस एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक के साथ 60 करोड़ डॉलर के निर्यात ऋण समझौते पर हस्ताक्षर करेगा ताकि बीजिंग के आर्थिक प्रभाव का सामना किया जा सके. लिथुआनिया के साथ चीन का टकराव ऐसे संवेदनशील वक्त में हुआ है जब शिनजियांग, हांगकांग और तिब्बत में कम्युनिस्ट पार्टी पर मानवाधिकार उल्लंघन के ब्रसेल्स के आरोपों को लेकर बीजिंग के यूरोपीय संघ के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं.
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