
कनाडा के लोग सोमवार, 28 अप्रैल को एक नई सरकार का चुनाव करने के लिए तैयार हैं. एक तरफ मौजूदा पीएम मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी है, वहीं कंजर्वेटिंव पार्टी को पियरे पोइलिव्रे लीड कर रहे हैं. उम्मीदवारों ने रविवार को जनता से वोट मांगने के लिए अपना अंतिम प्रयास किया, लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम घंटों में वैंकूवर में एक घातक कार-हमले से हड़कंप मच गया. इस घातक हमले ने थोड़े समय के लिए देश का ध्यान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हटा दिया, जिनके व्यापार युद्ध और कनाडा पर कब्जा करने की धमकियों ने कनाडाई लोगों को नाराज कर दिया है.
चलिए आपको बताते हैं कि कनाडा चुनाव के बाद अगला पीएम बनने की रेस में कौन-कौन शामिल है, ओपिनियन पोल में कौन आगे दिख रहा है, कौन-कौन से मुद्दे चुनाव में हावी रहे हैं और भारत के लिए इस चुनाव के नतीजे अहम क्यों हैं?
Q: कनाडा चुनाव में कौन-कौन है उम्मीदवार
इस बार के चुनाव के खास होने की एक वजह यह भी है कि एक दशक में कनाडा के अंदर होने जा रहा यह पहला ऐसा आम चुनाव है जिसमें पूर्व प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो रेस में नहीं होंगे. मुकाबला मुख्य रूप से कनाडा की दो सबसे प्रमुख पार्टी- कंजर्वेटिव और लिबरल- के बीच ही है.
मार्क कार्नी (लिबरल पार्टी)
60 साल के मार्क कार्नी कनाडा के मौजूदा प्रधान मंत्री हैं. मार्च की शुरुआत में वो लिबरल पार्टी के नेता चुने गए और उन्होंने पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो की जगह ली. राजनीति में भले नए हैं वो लेकिन इससे पहले वो कनाडा और इंग्लैंड दोनों बैंकों के प्रमुख रहे हैं. कार्नी का मजबूत पक्ष है कि वो अपने बैकग्राउंड की वजह से इकनॉमिक्स के एक्सपर्ट हैं. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ भी बागी रुख अपनाया है.
पियरे पोइलिव्रे (कंजर्वेटिव पार्टी)
45 साल के पियरे पोइलिव्रे को कार्नी के उलट राजनीति का अनुभव है. वह लगभग दो दशकों से कनाडा की राजनीति में हैं. एक तो वह अपेक्षाकृत युवा है और दूसरा कि वह राजनीति की अपनी टकरावपूर्ण शैली के लिए जाने जाते हैं. कई लोग मानते हैं कि उनकी राजनीति का तरीका अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह ही है- सब कुछ मैं ही हूं वाला. जब कनाडा में जनता ट्रंप और अमेरिका के विरोध में दिख रही है, पोइलिव्रे का यह ट्रंप वाला अंदाज उनपर भारी पड़ सकता है.
इन दो पार्टियों के अलावा ब्लॉक क्यूबेकॉइस और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी भी है लेकिन दोनों ही सरकार बनाने की रेस में नहीं है. ब्लॉक क्यूबेकॉइस एक स्थानीय और क्यूबेक राष्ट्रवादी पार्टी है. यह केवल इस फ्रांसीसी भाषी प्रांत- क्यूबेक में उम्मीदवारों को खड़ा करती है. इसके नेता यवेस-फ्रांस्वा ब्लैंचेट 2019 से पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. वहीं 46 साल के जगमीत सिंह न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं. यह एक वामपंथी झुकाव वाली पार्टी है जो श्रमिक और श्रमिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती रही है.
Q: ओपिनियन पोल में कौन आगे?
ओपिनियन पोल्स से पता चलता है कि कनाडा के लोग मानते हैं कि मार्ककार्नी सोमवार के चुनाव से पहले सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं और वो ही पीएम बनेंगे. वहीं 45 वर्षीय पियरे पोइलिव्रे महंगाई के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं, जो सत्ता में ट्रूडो के दशक के दौरान बढ़ गई थी. उनका तर्क है कि कार्नी, जिसे वह असफल उदारवादी शासन कहते हैं, उसे जारी रखेंगे.
रविवार को नैनोज के एक सर्वे में कहा गया कि दो फ्रंट पार्टियों के बीच का अंतर लगभग 4 प्रतिशत अंक है, जो शनिवार की तुलना में थोड़ा अधिक है. सर्वे में नेशनल लिबरल पार्टी को 43 प्रतिशत समर्थन जबकि कंजर्वेटिव को 38.9 प्रतिशत बताया गया.
Q: कनाडा के चुनाव में कौन से मुद्दे हावी रहे?
पार्टियों के चुनावी कैंपन का मुख्य विषय यह रहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा पर टैरिफ लगाने और उसकी संप्रभुता को खतरे में डालने के बाद कनाडा का अगला प्रधान मंत्री अमेरिका से कैसे निपटेगा. अधिकांश पार्टी अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के जवाब में किसी न किसी प्रकार के रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने पर सहमत हैं, हालांकि जवाबी टैरिफ से जुटाए गए पैसे का उपयोग कैसे किया जाएगा, इस पर उनके अलग-अलग विचार हैं.
कनाडा की आलोचना इस आधार पर की गई है कि वह अपने सैन्य खर्च में पीछे रहता है. अमेरिका राष्ट्रपति लगातार निशाना बनाते रहे हैं कि वह NATO सैन्य संगठन में अपने खर्च के लक्ष्य (देश की जीडीपी का 2%) से काफी पीछे रहता है. लिबरल और कंजर्वेटिव, दोनों पार्टियों का कहना है कि उनका लक्ष्य 2030 तक उस लक्ष्य तक पहुंचने का है.
Q: कनाडा का चुनाव भारत के लिए क्यों अहम?
चरमपंथ और खालिस्तान के मुद्दे को लेकर पिछले कुछ सालों से भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में तल्खी देखने को मिली है. कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के समय पर दोनों देशों के रिश्ते काफी बुरे हालात में पहुंच गए. लेकिन मार्क कार्नी के सत्ता में आने के बाद से भारत ने दोनों देशों के बीच के रिश्ते में सुधार की उम्मीद की. अब चुनाव के बाद जो भी नया पीएम बने, उसके साथ भी तालमेल अच्छा रहे, यही उम्मीद भारत को रहेगी.
भारत ने संबंधों में तनाव के लिए कनाडा में चरमपंथी और अलगाववादी तत्वों को दी गई ‘‘खुली छूट'' को जिम्मेदार ठहराया है. भारत को उम्मीद होगी कि नई सरकार चाहे जिसकी बने, इस तत्वों को फलने-फूलने की इजाजत कनाडा में न दी जाए.
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