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न रोटी- न किताब... पाकिस्तान से निकाले जा रहे अफगानों की जुबानी, अंधकार में दिखती जिंदगी की कहानी

इस्लामाबाद ने अफगानों पर ड्रग्स से संबंध रखने और "आतंकवाद का समर्थन करने" का आरोप लगाते हुए, डॉक्यूमेंट रखने वाले भी और नहीं रखने वाले भी, लाखों अफगानों को पाकिस्तान से निकालने के लिए मार्च में एक नए अभियान की घोषणा की.

न रोटी- न किताब... पाकिस्तान से निकाले जा रहे अफगानों की जुबानी, अंधकार में दिखती जिंदगी की कहानी
पाकिस्तान से निकाले गए अफगान रिफ्यूजी बॉर्डर एरिया के पास लगे कैंपों में रहने को मजबूर हैं

नाजमीन खान का जन्म वैसे तो पाकिस्तान में हुआ था लेकिन आज उसे निकाल दिया गया है, उसे ‘उसके' वतन अफगानिस्तान जाने पर मजबूर किया गया है. नाजमीन के लिए अफगानिस्तान का पहला अनुभव बॉर्डर पर बने शिविर में तपते हुए तंबू में रहने का है.

15 साल की लड़की, नाजमीन खान ने कहा, "हमने कभी नहीं सोचा था कि हम अफगानिस्तान लौटेंगे.. जब हमारे माता-पिता ने हमें बताया कि हमें (पाकिस्तान) छोड़ना होगा, तो हम रो पड़े."

अफगानिस्तान में जाने के लिए नाजमीन के परिवार के पास कोई जगह नहीं है. इस वजर से नाजमनी और परिवार के छह अन्य मेंबर तोरखम सीमा बिंदु के पास ओमारी शिविर में एक दमघोंटू तंबू में रह रहे हैं.

दरअसल इस्लामाबाद ने अफगानों पर ड्रग्स से संबंध रखने और "आतंकवाद का समर्थन करने" का आरोप लगाते हुए, डॉक्यूमेंट रखने वाले भी और नहीं रखने वाले भी, लाखों अफगानों को पाकिस्तान से निकालने के लिए मार्च में एक नए अभियान की घोषणा की. इन अफगानों में से कई लोग लगातार युद्धों और संकटों से भागने के बाद दशकों तक पाकिस्तान में रहे हैं. लेकिन उन्हें भी यह पता चल गया था कि इस बार उन्हें पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा. इस लिए उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने का इंतजार नहीं किया और खुद पाकिस्तान छोड़ दिया.

पाकिस्तान छोड़कर जाते अफगान रिफ्यूजी

पाकिस्तान छोड़कर जाते अफगान रिफ्यूजी

इस्लामाबाद के अनुसार, 1 अप्रैल से अब तक 92,000 से अधिक अफगानों को उनके मूल देश वापस भेज दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि लगभग 30 लाख अफगानी पाकिस्तान में रह रहे हैं.

नाजमीन खान का परिवार 1960 के दशक में अफगानिस्तान से भाग कर पाकिस्तान आया था. उसके चार भाई-बहन भी पाकिस्तान में पैदा हुए थे.

नाजमीन ने बताया कि नंगरहार के सीमावर्ती प्रांत में "कुछ दिनों में हम किराए के लिए जगह तलाशेंगे", जहां परिवार की जड़ें हैं. न्यूज एजेंसी एएफपी से वह पाकिस्तान में आम तौर पर बोली जाने वाली उर्दू भाषा में बात कर रही थी. उसे कोई अफगान भाषा नहीं आता है. परिवार के पास तंबू में लेटने के लिए एक कपड़ा और कुछ फोम से ज्यादा कुछ नहीं है. उनके पास कोई गद्दा या कोई कंबल नहीं है. तिरपाल के नीचे मक्खियां भिनभिना रही है, बच्चे मैले-कुचैले कपड़ों में आ-जा रहे हैं.

‘पहले से ही झेल रहे'

जब अपने भविष्य की बात आती है, तो नाजमीन खुद को "पूरी तरह से खोया हुआ" महसूस करती है. पाकिस्तान में स्कूल छोड़ने के बाद उसके जीवन की दिशा शायद ही बदलेगी. इसकी वजह है कि तालिबान ने लड़कियों के लिए प्राथमिक विद्यालय से आगे की पढ़ाई पर बैन लगा दिया है. पूर्वी पाकिस्तान के पंजाब में रहते हुए उसने अफगानिस्तान के बारे में जो कुछ भी सुना, उससे वह जानती है कि "यहां वैसी आजादी नहीं है".

2021 में सत्ता में लौटने के बाद से, तालिबान अधिकारियों ने महिलाओं पर कई प्रतिबंध लगा दिया है. इसे  संयुक्त राष्ट्र द्वारा "लिंग भेद” बताया है. अफगानिस्तान में महिलाओं के यूनिवर्सिटी, पार्कों, जिमों और ब्यूटी सैलूनों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और कई नौकरियों से हटा दिया गया है.

मीडिया को अपनी परेशानी बताती अफगानी रिफ्यूजी महिला

मीडिया को अपनी परेशानी बताती अफगानी रिफ्यूजी महिला

गैर-सरकारी समूह इस्लामिक रिलीफ के कार्यक्रम प्रमुख इब्राहिम हुमादी ने कहा, "यह अब उनके लिए एक नया जीवन है... और वे इसे बहुत कम उपयोगिताओं, सामान, नकदी, समर्थन के साथ शुरू कर रहे हैं." इस समूह ने ओमारी कैंप में लौटने वालों के लिए लगभग 200 तंबू लगाए हैं.

जो लोग इस कैंप में आते हैं उन्हें यहां तीन दिन रहने की सुविधा दी जाती है. लेकिन इब्राहिम हुमादी के अनुसार कुछ लोग तीन दिनों से अधिक समय तक रुकते हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि अपनी छोटी सी बचत के साथ कहां जाना है. उन्होंने कहा, "वे यह भी जानते हैं कि जहां वे वापस जाएंगे, वहां भी समुदाय उनका स्वागत करेगा, उनका समर्थन करेगा... लेकिन वे यह भी जानते हैं कि समुदाय पहले से ही अफगानिस्तान की स्थिति से पीड़ित है."

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार, लगभग 85 प्रतिशत अफगान आबादी प्रतिदिन एक डॉलर से भी कम पर जीवन यापन करती है।

28 वर्षीय जलील खान मोहम्मदीन अपने सामान - रजाई, बिस्तर के फ्रेम और पंखे - को एक ट्रक में डाल रहे हैं. यह ट्रंक उनके परिवार के 16 सदस्यों को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल ले जाएगा, हालांकि वहां उनका कोई इंतजार नहीं हो कर रहा है. उन्होंने कहा, "हमने अपने जीवन में कभी (अफगानिस्तान) नहीं देखा. हमें नहीं पता कि हमें काम मिलेगा या नहीं, इसलिए हम चिंतित हैं." 

'अभी भी समझ नहीं आ रहा'

तालिबान अधिकारियों ने कहा है कि वे विशेष रूप से लौटने वालों के लिए शहर तैयार कर रहे हैं. लेकिन तोरखम के पास एक जगह पर चट्टानी मैदान पर साफ सड़कों के अलावा और कुछ नहीं है.

इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) का मानना ​​है कि यह सुनिश्चित करने के लिए "अधिक स्पष्टता" की आवश्यकता है कि लौटने वालों के लिए बनाई गई जगहों पर बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाएं हैं या नहीं. 

चकित दिख रहे नाजमीन खान के भाई दिलावर अभी भी पाकिस्तान छोड़ने को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनका जन्म 25 साल पहले पाकिस्तान में ही हुआ था. उनकी पाकिस्तानी पत्नी उनके पीछे-पीछे अफगानिस्तान नहीं आना चाहती थी और उसने तलाक मांग लिया. पहले ट्रक ड्राइवर का काम करने वाले दिलावर ने कहा, "जब हमने बॉर्डर पार किया, तो हमें दिल कर रहा था कि वापस लौट चले, फिर एक दिन बाद अच्छा लगा.. हम अभी भी नहीं समझे हैं. हम केवल काम कर रहे हैं."


 

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