अफगानिस्तान ने पिछले 40 सालों में विदेशी ताकतों के दखल, इस्लामिक कट्टरपंथी समूह तालिबान के सिर उठाने और फिर लोकतंत्र की उम्मीदों को सिर चढ़ते और फिर जमींदोज होते देखा है, लेकिन आज भी आम अफगान नागरिकों के दुर्दिन खत्म नहीं हुए. देश में एक बाऱ फिर अराजकता, गृह युद्ध और इस्लामिक कट्टरपंथियों के हावी होने का खतरा मंडरा रहा है. जानिए सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर कब्जे (Afghanistan Soviet occupation) से लेकर तालिबान (Taliban) की सत्ता में वापसी का पूरा घटनाक्रम...
Afghanistan since the Soviet occupation.#AFPgraphic timeline of main developments in Afghanistan since the Soviet occupation pic.twitter.com/ehJZzz61Ck
— AFP News Agency (@AFP) August 17, 2021
1979-89 : सोवियत संघ का हमला
तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट समर्थक सरकार की स्थापना के लिए दिसंबर 1979 में अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया. अफगान मुजाहिदीनों ने इसका विरोध किया, जिन्हें अमेरिका समेत पश्चिमी देशों का समर्थन हासिल था. ये मुजाहिदीन सोवियत सेना के खिलाफ दस साल तक लड़े. फरवरी 1989 में सोवियत संघ को सेना वापस बुलानी पड़ी.
1992-96 : गृह युद्ध में 1 लाख की मौत
अफगानिस्तान में गृह युद्ध की शुरुआत में ही दो साल में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए. तालिबान मूवमेंट की शुरुआत हुई, जिसे पाकिस्तान का भरपूर समर्थन मिला.
1996-2001 : तालिबान शासन
कट्टरपंथी इस्लामिक शासन वाला तालिबान मु्ल्ला अहमद उमर की अगुवाई में सत्ता में आया. मुल्ला उमर अलकायदा का करीबी था. उसने अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को पनाह दी. लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा और कहीं भी काम करने पर पाबंदी लगा दी गई. वे बिना पुरुषों के घरों से बाहर नहीं निकल सकती थीं और उन्हें पूरा चेहरा ढंककर रखना होता था.
2001 पश्चिमी देशों का आक्रमण
अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को अलकायदा के भयंकर आतंकी हमले के बाद पश्चिमी देशों की सेनाओं ने तालिबान के खिलाफ हमला बोल दिया. तालिबान के भागने के बाद हामिद करजई अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बनाए गए. तालिबान के खिलाफ अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के 1 लाख 30 हजार से ज्यादा सैनिक तैनात किए गए.
2004-2014 करजई का शासन
अफगानिस्तान में हुए पहले राष्ट्रपति चुनाव में हामिद करजई ती जीत हुई. करजई 2009 में भी दोबारा राष्ट्रपति चुनाव जीते. हालांकि धांधली, कम वोटिंग और तालिबान की हिंसा को लेकर चुनाव की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे.
2014-2016 अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू
नाटो गठबंधन ने अफगान सेना और पुलिस को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी. नए अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिकी अगुवाई वाले नाटो गठबंधन के साथ डील साइन की. अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू हुई। हालांकि 2016 में ओबामा ने सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया धीमी की.
2017 अमेरिकी सैनिकों की दोबारा तैनाती
अमेरिका के राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप ने सैनिकों की वापसी की की पुरानी टाइमलाइन खत्म कर दी. दोबारा हजारों सैनिक काबुल लौटे. अफगान फौजों पर हमलों के बीच अमेरिका ने हवाई हमले तेज किए.
2020 अमेरिका-तालिबान डील
अमेरिका और तालिबान के बीच एक ऐतिहासिक डील पर हस्ताक्षर हुए, जिस पर कई सालों से बातचीत चल रही थी, इससे अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की पूरी तरह वापसी का रास्ता साफ हो गया.
2021 अमेरिका लौटा, तालिबान का कब्जा
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पूरी सैन्य वापसी की समयसीमा 11 सितंबर तक तय की. नाटो सेनाओं की मई में वापसी शुरू होने के साथ तालिबान के हमले तेज हो गए. तालिबान ने अगस्त में ही तेजी से शहरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. 10 दिनों में उसने पूरे देश के बड़े शहरों पर नियंत्रण कर लिया. तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल में प्रवेश किया.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं