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बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन हुई हिंसक, अब तक 32 लोगों की मौत

ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां कर रहे हैं.

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन हुई हिंसक, अब तक 32 लोगों की मौत
राजधानी ढाका और अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने से कम से कम 32 लोगों की मौत
ढाका:

बांग्लादेश (Bangladesh) में गुरुवार को सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी. राजधानी ढाका और अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने के कारण अब तक 32 लोगों की मौत हो गयी है.  ढाका और अन्य शहरों में यूनिवर्सिटी के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां कर रहे हैं.

हिंसा में मंगलवार को छह लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज्यादातर छात्र थे. वहीं, बीती रात एक और मौत की सूचना मिली थी. यह विरोध प्रदर्शन पिछले लगभग एक सप्ताह से अधिक समय से चल रहा है. 

 बढ़ती हिंसा के कारण अधिकारियों को गुरुवार दोपहर से ढाका आने-जाने वाली रेलवे सेवाओं के साथ-साथ राजधानी के अंदर मेट्रो रेल को भी बंद करना पड़ा.

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आधिकारिक बीएसएस समाचार एजेंसी ने बताया कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए मोबाइल इंटरनेट नेटवर्क बंद करने का आदेश दिया. सरकार ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राजधानी सहित देश भर में अर्धसैनिक बल ‘बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश' के जवानों को तैनात किया है.

बांग्लादेश टेलीविजन भवन को आंदोलनकारियों ने घेरा
प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने ढाका के रामपुरा इलाके में सरकारी बांग्लादेश टेलीविजन भवन की घेराबंदी कर दी और इसके अगले हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया. घटना के समय इस इमारत में पत्रकारों सहित लगभग 1,200 कर्मचारी थे. कई दिनों के प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों में कम से कम सात लोगों की मौत के बाद प्रदर्शनकारियों ने बीती रात देश में ‘‘पूर्ण बंद'' लागू करने का संकल्प लिया.

सरकारी कार्यालय और बैंक खुले रहे क्योंकि अर्धसैनिक बल ‘बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश' (बीजीबी), दंगा रोधी पुलिस और विशिष्ट अपराध रोधी रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में सड़कों पर तैनात थी, लेकिन सीमित परिवहन के कारण उपस्थिति कम रही.

आंदोलन का व्यापक असर
कई कार्यालयों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा. ढाका और देश के बाकी हिस्सों के बीच बस सेवाएं भी बंद रहीं और लोग घरों में ही रहे. स्थानीय बाजारों और शॉपिंग मॉल में सीमित प्रवेश बिंदु खुले थे। सड़क किनारे कुछ दुकानें खुली दिखाई दीं, जबकि अन्य बंद रहीं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मौजूदा आरक्षण प्रणाली के चलते बड़े पैमाने पर मेधावी छात्र सरकारी सेवाओं से वंचित हो रहे हैं.

कानून मंत्री अनीसुल हक ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार ने प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ बातचीत के लिए बैठक करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, ‘‘जब भी वे सहमत होंगे, हम बैठक करेंगे.''

स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन विरोध प्रदर्शन का कर रहा है नेतृत्व
कानून मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा बुधवार  को किए गए वादे के अनुसार हिंसा की जांच के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश खोंडकर दिलिरुज्जमां के नेतृत्व में गुरुवार को एक न्यायिक जांच समिति का गठन किया गया. विरोध प्रदर्शनों में शामिल छात्रों के मुख्य समूह ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन' ने कहा कि प्रधानमंत्री के शब्द निष्ठाहीन हैं और ‘‘यह उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हत्याओं एवं तबाही को प्रतिबिंबित नहीं करता है.''

वर्तमान आरक्षण प्रणाली के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ आरक्षित हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों, 10 प्रतिशत महिलाओं, पांच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों और एक प्रतिशत नौकरियां दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं.

सरकारी नौकरी में कोटे पर क्यों है विवाद
सरकारी नौकरी में कोटा, 1971 में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में शहीद होने वाले सिपाहियों के परिजनों के लिए शुरु किया गया था. आंदोलनकर्ताओं का कहना है कि इससे प्रधानमंत्री शेख हसीना की आवामी लीग के समर्थकों को फायदा मिल रहा है. इस वजह से आंदोलनकर्ताओं की मांग है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरी दी जाए. एक अदालत ने इस कोटे को 2018 में हुए आंदोलन के बाद बैन कर दिया था लेकिन बांग्लादेश की हाई कोर्ट ने जून 2024 में बैन को हटा दिया और इस वजह से एक बार फिर सरकारी नौकरी को लेकर दंगे शुरू हो गए हैं.

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