भारत-पाकिस्तान के 2 फाइनल, जिनसे बदल गई एक ही सरनेम वाले 2 खिलाड़ियों की जिंदगी

भारत-पाकिस्तान के 2 फाइनल, जिनसे बदल गई एक ही सरनेम वाले 2 खिलाड़ियों की जिंदगी

जोगिंदर शर्मा ने 2007 में मिस्बाह को आउटकर टी-20 वर्ल्ड कप भारत को दिला दिया।

पाकिस्तान क्रिकेट टीम भारत पहुंच गई है और अब 19 मार्च को कोलकाता में टीम इंडिया के साथ होने वाले मुकाबले का सबको इंतजार है। दरअसल क्रिकेट में भारत-पाकिस्तान के बीच चाहे कोई भी मैच हो दबाव चरम पर रहता है, उस पर भी यदि फाइनल हो तो आप कल्पना कर सकते हैं कि खिलाड़ियों व दर्शकों पर कितना दबाब रहता होगा। दबाव के इस क्षण में कई बार खिलाड़ी हीरो बन जाते हैं, तो कई बार जीरो। हम आपको ऐसे ही दो खिलाड़ियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें से एक 'हीरो से जीरो' बन गया और दूसरा 'जीरो से हीरो'।

एक ही राज्य और दोनों का सरनेम भी शर्मा
यह दोनों खिलाड़ी एक ही राज्य से आते हैं और दोनों ही दाहिने हाथ के मध्यम गति के बॉलर हैं। इतना ही नहीं इनका सरनेम भी शर्मा है। इन दोनों ने ही पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच में अंतिम ओवर में बॉलिंग की, लेकिन एक हीरो बन गया, तो दूसरा जीरो। यह दोनों खिलाड़ी हैं - चेतन शर्मा और जोगिंदर शर्मा है। दोनों हरियाणा के रहने वाले हैं।

सबसे पहले चेतन शर्मा, जो मियांदाद का बने शिकार
हम पहले चेतन शर्मा की बात करते हैं। बात 18 अप्रैल 1986 को भारत और पाकिस्तान के बीच शारजाह क्रिकेट मैदान पर हुए फाइनल मैच की है। इस मैच में पाक से ज्यादा दबाव, भारतीय खिलाड़ियों के ऊपर था, क्योंकि इस मैदान पर मौजूद दर्शकों में से अधिकांश पाकिस्तान के समर्थन में थे।

टॉस हारने के बाद भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में 245 रन बनाए। सलामी बल्लेबाज के रूप गावस्कर ने 92 की शानदार पारी खेली थी। उस दौर के क्रिकेट में यह स्कोर बड़ा माना जाता था। भारतीय गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन से पाकिस्तान के 61 रन पर ही 3 विकेट गिर गए। लग रहा था भारत यह मैच आसानी से जीत जाएगा, लेकिन भारत की जीत के बीच जावेद मियांदाद खड़े हो गए। मियांदाद ने शतक लगाकर मैच को अंतिम ओवर तक खींच लिया।

  • आखिरी ओवर का रोमांच: पाकिस्तान को 6 गेंदों में 11 रन चाहिए थे। गेंद चेतन शर्मा के हाथ में थी और स्ट्राइक पर थे मियांदाद। पहली गेंद पर दो रन लेने की कोशिश में वसीम अकरम रनआउट हो गए। दूसरी गेंद पर मियांदाद ने मिडविकेट पर चौका लगाया। अब 4 गेंदों पर 6 रन की जरूरत थी। तीसरी गेंद पर मियांदाद एक रन के साथ नॉन स्ट्राइक पर आ गए। अब 3 गेंदों पर पांच रन की जरूरत थी, ऐसे में बड़ा शॉट खेलने के चक्कर में जुल्कारनैन आउट हो गए।
  • अब पाकिस्तान के 9 विकेट गिर चुके थे और आखिरी दो गेंद में चाहिए थे पांच रन और मियांदाद नॉन स्ट्राइक छोर पर थे। अब किसी भी हालत में तौसीफ अहमद को एक रन लेकर मियांदाद को स्ट्राइक देना था। तौसीफ पांचवीं गेंद पर मियांदाद को स्ट्राइक देने के चक्कर में दौड़ पड़े और रनआउट होते-होते बच गए। भारत के सबसे बेहतरीन फील्डर मोहम्मद अजरूद्दीन चूक गए और मैच भी हाथ से निकलता हुआ दिखने लगा।
  • अब अंतिम गेंद पर 4 रन की जरूरत थी और स्ट्राइक पर आ गए थे खतरनाक मियांदाद। उन्होंने चारों ओर नजर दौड़ाकर फील्डिंग पोजिशन देखी। इस बीच गेंदबाज चेतन शर्मा को कप्तान कपिल देव भी समझा रहे थे। चेतनने यॉर्कर डालने की कोशिश की, लेकिन गेंद फुलटॉस हो गई और फिर क्या था, मियांदाद ने उसे मिडविकेट के ऊपर से छह रन के लिए भेज दिया और पाकिस्तान एक विकेट से जीत गया।

मैच के बाद कैसे बदल गई चेतन की जिंदगी
इस हार से भारतीय टीम मायूस थी। फैन चेतन को दोष दे रहे थे। चेतन शर्मा कहते हैं कि उस समय कोई भी खिलाड़ी उनसे बात नहीं कर रहा था। देश लौटते वक़्त फ्लाइट में भी कई खिलाड़ी चेतन से बात नहीं कर रहे थे। सिर्फ इतना नहीं इस मैच के बाद जहां भी लोग मिलते थे, तो उनसे इस अंतिम गेंद की बात करते थे और पूछते थे कि उन्होंने फुलटॉस क्यों डाली। चेतन के अनुसार यह सिलसिला आज भी जारी है। वह इस मैच को भूल जाना चाहते हैं, लेकिन लोग भूलने नहीं देते। देखिए, कैसे एक गेंद ने ही चेतन को 'हीरो से जीरो' बना दिया।

अब जोगिंदर शर्मा की बात, जिन्होंने किया मिस्बाह का शिकार
भारत और पाकिस्तान के बीच एक और फाइनल की बात। पहले टी-20 वर्ल्ड कप, 2007 का यह फाइनल मुकाबला था। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 157 रन बनाए। गौतम गंभीर ने ओपनर के रूप में शानदार 75 रन बनाए। जवाब में पाकिस्तान ने 57 रन पर तीन विकेट खो दिए, लेकिन मियांदाद की 1986 वाली भूमिका मिस्बाह ने निभाई और पाकिस्तान को जीत के करीब पहुंचा दिया। अब आखिरी ओवर में पाक को जीतने केलिए 13 रन की जरूरत थी।

कप्तान धोनी ने सबको चौंकाते हुए, गेंद जोगिंदर शर्मा को थमा दी। ऐसे लग रहा था कि इतिहास दोहराया जा रहा है। उस मैच में भी पाकिस्तान के 9 विकेट गिर चुके थे, इस मैच में भी 9 विकेट गिर चुके थे। उस मैच में आखिरी ओवर में 11 रन की चाहिए थे, जबकि इस मैच में 13 रन।

  • अंतिम ओवर का रोमांच: जोगिंदर शर्मा ने पहली गेंद वाइड डाली, फिर दूसरा गेंद में कोई रन नहीं बना, तीसरे गेंद में मिस्बाह ने छक्का मारा। अब चार गेंदों में 6 रन चाहिए थे। ऐसा लग रहा था कि मैच भारत के हाथ से निकल रहा है। जोगिंदर की तीसरी गेंद पर छक्का मारने के चक्कर में मिस्बाह आउट और भारत की जीत।

ऐसे बदली जोगिंदर की जिंदगी
1986 में चेतन मायूस थे, तो वहीं 2007 में जोगिंदर शर्मा हीरो बन गए थे। चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी। इस शानदार बॉलिंग के लिए हरियाणा सरकार ने जोगिंदर को 21 लाख के इनाम के साथ-साथ पुलिस में डिप्टी कमिश्नर की नौकरी भी दी। आज जोगिंदर इस पद पर कार्यरत हैं। इस प्रकार एक गेंद ने बदल दी इन दो खिलाड़ियों की जिंदगी।
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क्या बोले थे मियांदाद
जावेद मियांदाद ने कई इंटरव्यू में इसका जिक्र करते हुए कहा था कि छक्के के लिए वह बहुत खुश थे, लेकिन चेतन शर्मा के हालात के ऊपर उन्हें दुख हो रहा था। इस मैच के बाद टीम में बने रहने केलिए चेतन को काफी संघर्ष करना पड़ा। मियांदाद का यह भी कहना था किसी खिलाड़ी का अच्छा या बुरा होना एक गेंद या एक मैच से तय नहीं होना चाहिए। हारना और जीतना क्रिकेट का हिस्सा है।