
बड़े शहरों में जहां रिहायशी सोसाइटीज को रहने के लिहाज से सुरक्षित माना जाता है, लेकिन अब वहीं सोसाइटीज आवारा कुत्तों का ठिकाना बन चुकी है. आवारा कुत्तों की वजह से नोएडा की कई सोसाइटीज में लोगों का जीना मुहाल हो गया है. दरअसल सोसाइटीज में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या से लोग खौफ खाने लगे हैं. देशभर से जिस तरह कुत्तों के हमले की घटनाएं सामने आ रही है, यकीनन वो डर सबके जेहन में साफ दिख रहा है. नोएडा में भी एक व्यक्ति की शिकायत नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों के लिए आवारा कुत्ते दहशहत का दूसरा नाम बन चुके हैं. दुखद यह भी है कि जिम्मेदार प्रशासनिक संस्थाएं एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं.
शिकायतें दर्ज, पर समाधान नदारद
एन.के. यादव बताते हैं कि उन्होंने इस मामले में कई बार शिकायतें की. उन्होंने कहा कि मैं पहले अथॉरिटी के पास गया, उन्होंने कहा नगर निगम जाओ, फिर नगर निगम ने कहा सोसाइटी मेंटेनेंस वालों से बात करो, कोई भी इस समस्या की जिम्मेदारी लेने को राजी ही नहीं है, बस एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है.
इंसानियत जरूरी है, लेकिन सुरक्षा उससे भी ज्यादा
डेजी ने कहा कि मुझे लगता है कि केरल सरकार का कुत्तों को इच्छामृत्यु देने का फ़ैसला काफ़ी समझदारी भरा है. हम यह नहीं कहते कि हमें जानवरों से नफ़रत है. लेकिन ऐसा करने का एक मानवीय तरीका होना चाहिए. कुत्तों को खिलाने के लिए निर्धारित जगहें हैं, तो सोसायटी के अंदर या पार्किंग एरिया में कुत्तों को खाना क्यों खिलाएं?
हमारे बच्चे डर के साए में पल रहे हैं
डॉ सिद्दीकी कहते हैं कि हमें हमेशा डर रहता है कि अगर हम अपने बच्चों को अकेले नीचे भेजेंगे तो कुत्ते उन पर हमला कर देंगे. इसके अलावा, कुत्तों से प्यार करने वाले लोग हमेशा हमसे झगड़ने आते हैं और कहते हैं कि कुत्ते भी बच्चे जैसे ही हैं फिर वे अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं लेते?
मेरे बच्चे का टूर्नामेंट छूट गया, बुखार में तड़पता रहा
कविता ने कहा कि स्कूल में एक टूर्नामेंट के दिन मेरे बच्चे पर एक आवारा कुत्ते ने हमला कर दिया. हम उसे अस्पताल ले गए, उसे तेज़ बुखार था. मैं अस्पताल और नोएडा अथॉरिटी के बीच चक्कर लगा रही थी. नोएडा पुलिस ने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया कि वे किसी कुत्ते के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज नहीं कर सकते. कम से कम सोसाइटी के रखरखाव वालों को ज़िम्मेदार ठहराया जाए ताकि भविष्य में कोई अप्रिय घटना न हो.
कानून क्यों नहीं
कृति ने कहा कि मैं ख़ुद कुत्ते के काटने की शिकार हूं. मैं अपने एरोबिक्स सेंटर जाने के लिए वार्म-अप करने की कोशिश कर रही थी. अचानक एक कुत्ता आया और मुझ पर हमला कर दिया. आवारा कुत्तों के लिए उचित क़ानून होना चाहिए.
अमेय ने कहा कि मेरे बच्चे को एक साल पहले एक कुत्ते ने काट लिया था,वह अब भी इतना सदमे में है कि नीचे खेलने नहीं जाना चाहता. उसे रात में अकेले सोने में दिक्कत होती है. कुत्तों के काटने के बाद जो सदमा लगता है, उसके बारे में कोई बात नहीं करता.
हमें बचाए...
एडवोकेट कपूर ने कहा कि आवारा कुत्तों का मतलब है कि वे सोसाइटी में नहीं रहते. जब हम अपने पालतू कुत्तों को घुमाने ले जाते हैं, तो हम उनका मुंह पर जाली लगाते हैं और उन्हें पकड़कर रखते हैं. क्योंकि हमें पता है कि वे अनजान लोगों पर हमला कर सकते हैं. फिर आवारा कुत्तों को खुलेआम क्यों रहने दिया जाए? मैं बस यही कहना चाहती हूं कि हमें बचाएं. हम उनकी सुरक्षा और रखरखाव के लिए बहुत पैसा देते हैं, लेकिन बदले में कुछ नहीं मिलता.
(एनडीटीवी के लिए अनुष्का की रिपोर्ट)
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