भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (एचएफसी) के लिए डिपॉजिट स्वीकार करने से संबंधित नॉर्म्स सख्त कर दिए हैं. आरबीआई (RBI) ने डिपॉजिट की मैच्योरिटी पीरिएड को घटाकर पांच साल करने और देनदारियां चुकाने के लिए लिक्विड एसेट रखने की जरूरत बढ़ाने का प्रस्ताव रखा.
हाउसिंग सेक्टर (Housing Sector) को फाइनेंस मुहैया कराने वाली एचएफसी को 12 महीने या उससे अधिक की अवधि के बाद पेमेंट-बेस्ड पब्लिक डिपॉजिट स्वीकार करने या रिन्यू करने की अनुमति फिलहाल मिली हुई है. लेकिन ऐसी डिपॉजिट 120 महीने से अधिक की नहीं हो सकती है.
डिपॉजिट स्वीकार या रिन्यू करने के क्रेडिट रेटिंग अहम
यदि एचएफसी यानी हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (Housing Finance Companies) की क्रेडिट रेटिंग न्यूनतम इन्वेस्टमेंट ग्रेड से नीचे है, तो ऐसे एचएफसी मौजूदा डिपॉजिट को रिन्यू नहीं करेंगे या उसके बाद तब तक नई डिपॉजिट स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि वे इन्वेस्टेबल क्रेडिट रेटिंग हासिल नहीं कर लेते.
इसके अलावा डिपॉजिट लेने वाली एचएफसी द्वारा रखी गई पब्लिक डिपॉजिट की मात्रा की सीमा शुद्ध स्वामित्व वाली निधि के तिगुने से घटाकर 1.5 गुना कर दी गई है.
कंपनियां डिपॉजिट का 15% तक लिक्विड एसेट्स बनाए रखेंगी
सर्कुलर के मुताबिक, डिपॉजिट लेने वाली सभी एचएफसी चरणबद्ध तरीके से पब्लिक डिपॉजिट का 15 प्रतिशत तक निरंतर आधार पर लिक्विड एसेट्स बनाए रखेंगी.आरबीआई ने इस सर्कुलर पर लोगों से 29 फरवरी तक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं.
अब RBI के हाथों में नेशनल हाउसिंग बैंक की कमान
हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का रेगुलेशन पहले नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) के पास था लेकिन कमान अपने हाथ में आने के बाद रिजर्व बैंक ने 22 अक्टूबर, 2020 को एचएफसी सर्कुलर के लिए एक अपडेटेड रेगुलेटरी फ्रेमवर्क जारी किया था.
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