शेयर बाजार में शेयरों में निवेश कर मुनाफा कमाया जाता है. कई बार नुकसान भी होता है. लेकिन हमेशा कहा जाता है कि जो लोग जानकार हैं वे अपना पैसा बढ़ा लेते हैं. यहां तक की बाजार की चाल ढीली पड़ती है तब ये लोग पैसा बना लेते हैं. आखिर ऐसा क्या होता है जिसको जानने के और समझने के बाद ये लोग पैसा बनाते हैं और बहुत सारे लोग अपना घाटा उठाते हैं. इन्हीं सब बातों को देखकर यह प्रयास किया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोग यह समझ सकें की शेयर बाजार में किस कंपनी में निवेश करना उनके लिए सही है और किस समय बाजार में रहना चाहिए और कब पोर्टफोलियो में बदलाव करना चाहिए जिससे पैसे का नुकसान न उठाना पड़े.
जरूरी यह है कि लोग शेयर बाजार में देखादेखी से न जाएं. पहले शेयर बाजार को समझें फिर उतरें. कहा जाता है कि पानी में उतरने से पहले पानी की गहराई का अंदाजा लगाना चाहिए. जिन्हें तैरना आता है वे बच जाते हैं जो तैरना नहीं जानते हैं वे डूब जाते हैं. शेयर बाजार से भी पैसा बनाने के लिए मेहनत करनी होती है. जरूरी बातों जानना और समझना होता है. फिर निवेश आरंभ करना चाहिए.
एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि टिप के आधार पर निवेश न करें. यदि कोई जानकार भी है तब भी बेसिक जानकारी जरूर हासिल करें तभी निवेश अच्छा होता है. आम तौर पर शेयर बाजार में दो तरह से शेयरों की खरीद बिक्री होती है. इसमें ट्रेडिंग और इनवेस्टिंग का कॉन्सेप्ट है. ट्रेडिंग यानी नियमित रूप से स्टॉक ख़रीदना और बेचना. इनवेस्टिंग यानी कुछ समय के लिए शेयर्स में निवेश करना और बाद में मुनाफे के साथ बेचना. आज बात इनवेंस्टिंग की हो रही है.
कर लें सेक्टर की पहचान
शेयर बाजार में कई सेक्टर हैं. पहले थोड़ी बहुत इन सेक्टर्स के बारे में जानकारी ले लेनी चाहिए. फिर समय के अनुसार सही सेक्टर की पहचान कर लेनी चाहिए. सभी लोग जानते हैं कि शेयर बाजार में हजारों कंपनियां लिस्टेड हैं. इन कंपनियों में से बढ़िया स्टॉक चुनना थोड़ा मुश्किल होता है. इसलिए सबसे पहले किसी एक सेक्टर की पहचान कर लेनी चाहिए. यह वह सेक्टर होना चाहिए जिसे यह देखकर चुना जाए कि इसमें आने वाले कुछ समय में विकास होगा. यानी इस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का मुनाफा होने वाला है. फिलहाल शेयर बाजार में निम्नलिखित प्रमुख सेक्टर हैं. जैसे कृषि और कमोडिटी, विमानन, ऑटोमोबाइल, बैंक और वित्तीय सेवाएं, इलेक्ट्रिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स, फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स , गैस और पेट्रोलियम, सूचना प्रौद्योगिकी, इंफ्रास्ट्रक्चर, फार्मास्युटिकल्स, रियल एस्टेट, दूरसंचार, कपड़ा, पर्यटन आदि हैं.
कंपनी को जानें और भविष्य परखें
सेक्टर के साथ ही जिस कंपनी का शेयर खरीदना है उसका चयन करते समय यह ध्यान रखना है कि वह कंपनी भविष्य के हिसाब से खुद के कितना तैयार रखती है. कितना तैयार है और उसके उत्पाद भविष्य के लिए कितने कारगर हैं. कहीं ऐसा तो नहीं है कि इसके उत्पाद भविष्य में काम के न रहे है. ऐसा तमाम उदाहरण मिलते हैं कि कंपनी के उत्पादों का भविष्य खत्म हो गया और कंपनी बरबाद हो गई. यानी आपको कंपनी का बिजनेस मॉडल की बेसिक जानकारी ले लेनी चाहिए और समझ लेना चाहिए. इसमें यह जरूरी देखना चाहिए कि आगे आने वाले 15-20 सालों तक कंपनी के उत्पादों की उपयोगिता बनी रहे.
फाइनेंशियल स्टेटस देखें
दूसरी जरूरी बात है कि कंपनी का फाइनेंशियल स्टेटस के बारे में जानकारी ली जाए. इसके लिए थोड़ी मेहनत करनी होगी. पहले ही बताया गया है किस प्रकार से किसी कंपनी के फाइनेंशियल स्टेटमेंट को चेक किया जाता है. इस स्टेटमेंट में क्या क्या देखना होता है. अच्छा होता है कि किसी कंपनी के 3-5 साल के स्टेटमेंट को देखना चाहिए. इससे कंपनी की ग्रोथ हिस्ट्री का पता चलता है. यह निवेश से जुड़ा निर्णय लेने में मदद करता है.
बैलेंसशीट देखें
फाइनेंशियल स्टेटमेंट के लिए बैलेंस शीट, इनकम स्टेटमेंट, कैश फ्लो और फाइनेंसियल रेश्यो देखने चाहिए. इस बारे में अन्य लेखों में बात की जा चुकी है. यहां कुछ शब्दों में बताने की कोशिश हो रही है.सबसे पहले बैलेंसशीट में कंपनी रिज़र्व एंड सरप्लस (Reserve & Surplus) को देखें, इसमें आप देखे की कहीं कंपनी रिज़र्व एंड सरप्लस में पिछले कुछ वर्षों से कमी तो नहीं आ रही है. कंपनी के रिज़र्व एंड सरप्लस बढ़ना कंपनी के अच्छा होता है. साथ ही यहां पर कंपनी के लायेबिलिटीज (Liabilities) के ट्रेंड को देखना चाहिए. यहां पर समझें कि लायेबिलिटीज (Liabilities) अगर कम हुई होगी तो यह निवेशक के लिए सही है. इसके बाद कंपनी के फिक्स्ड एसेट्स और करंट एसेट्स (Fixed Asset & Current Assets) के मूल्य को देखना चाहिए. इसमें देखिए कि पिछले 3-5 वर्षो में कहीं इनके मूल्य में गिरावट तो नहीं आई है. यदि गिरावट है तो ठीक नहीं है.
प्रोफिट एंड लॉस स्टेटमेंट देखें
बैलेंस शीट के बाद इनकम स्टेटमेंट या कहें कि प्रोफिट एंड लॉस स्टेटमेंट को देखना चाहिए. इसे समझने के लिए पिछले 3-5 वर्ष के कंपनी की सेल्स (sales) देखिए. सेल्स में अगर वृद्धि हो रही है तो इसका मतलब है कि कंपनी के प्रोडक्ट्स बाजार के अनुकूल हैं और बाजार में इसकी मांग है. कंपनी निवेश के लिए सही है. साथ ही देखें कि कंपनी का नेट प्रोफिट कितना है. पिछले 3-5 सालों में कंपनी का नेट प्रोफिट किस दिशा में जा रहा है. अगर यह नेट प्रोफिट लगातार तेजी से बढ़ रहा है तो यह ठीक है .
कैश फ्लो स्टेटमेंट पढ़ें
बैलेंस शीट के बाद कंपनी के कैश फ्लो को देखिए. गौरतलब है कि किसी भी कंपनी में तीन प्रकार की गतिविधियों से कैश फ्लो होता है.इसमें ऑपरेटिंग, इनवेस्टिंग और फाइनेंसिंग शामिल है. यहां पर कंपनी के सुचारु रूप से संचालन के लिए पॉजिटिव कैश फ्लो होना चाहिए. इसलिए यहां यह जरूरी हो जाता है कि पिछले कुछ सालों के कैश फ्लो को देखना चाहिए. यहां यह भी देख लेना चाहिए कि कंपनी में फ्री कैश फ्लो की मात्रा भी होनी चाहिए. फ्री कैश फ्लो कंपनी के कैश आउटफ्लो के बाद बचने वाला फ्री कैश होता हैं. बता दें कि यह जितना अधिक होगा कंपनी के लिए उतना अच्छा होता है.
ईपीएस देखें, पीई रेशियो देखें.
इसके बाद कंपनी की ईपीएस देखना चाहिए. इस पर अन्य लेख में बात की जा चुकी है. ईपीएस के बाद पीई रेशियो को देखना चाहिए. पीई रेशियो में एक बात खास याद रखनी चाहिए. पीई रेशियो किसी भी कंपनी के शेयर खरीदने का निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण रेशियो होता है. ये रेशियो काफी अहम है लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं. कारण साफ है कि यदि कोई कंपनी नई है और आरंभ में प्रोफिट नहीं कमा रही है या कंपनी नुकसान में है तो इन कंपनियों को पीई रेशियो से नहीं आंका जा सकता है. एक और बात पीई रेशियो उन कंपनियों का स्थिर रहता है जहां पर कंपनी की कमाई में साल दर साल बहुत ज्यादा अंतर से ऊपर नीचे नहीं जा रही है.
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आरओई और आरओसीई देखें
इसके बाद शेयर लेने के लिए दो और प्रमुख कारकों में आरओई (RoE) और आरओसीई (RoCE) हैं. ये दोनों रेशियो किसी भी कंपनी के शेयर का चुनाव करते समय सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं. ये रेशियो बताते हैं कि लगाई हुई इक्विटी या कैपिटल पर कितना रिटर्न प्राप्त हो रहा हैं. RoE बताता है कि कंपनी अपने इक्विटी पर कितना पैसा या रिटर्न बना रही है. यानी कंपनी के लगाए पैसे पर कितना पैसा बन रहा है. RoE = Net Profit / Total Equity
अब बात आरओसीई (RoCE – Return on Capital Employed) रेशियो की. यह रेशियो बताता है कि कंपनी ने अपने कुल लगाए हुए पैसे या इन्वेस्टमेंट पर कितना रिटर्न कमाया है. बाजार के जानकार कहते हैं कि अगर किसी ऐसी कंपनी को निवेश के दृष्टि से देखा जा रहा है जिसमें कोई भी ऋण नहीं हैं, तब RoE देखा जा सकता है. लेकिन, किसी कंपनी ने ऋण ले रखा है तो उस कंपनी में RoE भ्रामक जानकारी दे सकता हैं. इसलिए जिस कंपनी पर कर्ज (डेट Debt ) है उस कंपनी में हमेशा RoCE ही देखना चाहिए. जानकारों का कहना है कि 10% से कम ROE और RoCE वाली कंपनियों में निवेश से बचना चाहिए.
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कंपनी पर ऋण कितना है
अगली बात जो देखनी चाहिए वह किसी कंपनी पर ऋण कितना है उसे देखना चाहिए. यदि किसी कंपनी पर ज्यादा ऋण हैं तो उसे ऋण के ऊपर बहुत ज्यादा ब्याज देना होता है. यदि कंपनी लगातार ब्याज का भुगतान करती रहती है तो उसके मुनाफे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए यह अच्छा होता है कि कम ऋण फिर बिना ऋण वाली कंपनी में निवेश किया जाए.
डीई रेशियो देख लें
शेयर बाजार में किसी कंपनी के शेयरों में निवेश से पहले कंपनी का डीई रेशियो (Debt-Equity Ratio) देखा जा सकता है. डीई रेशियो यदि 1 से कम हो तो सही होता है. यह रेशियो यदि जीरो हो तो यह एक आदर्श रेशियो होता है. इस बारे में पहले एक लेख में चर्चा की जा चुकी है.
डिविडेंड का रिकॉर्ड देखें
शेयर लेने से पहले यदि यह देखा जाता है कि कंपनी का हाल डिविडेंड में कैसा है. कहा जाता है कि जिन कंपनियों की वित्तीय हालत अच्छी होती है और प्रोफिट कमाती हैं, वे अपने शेयर होल्डर्स को डिविडेंड का भुगतान करती है. बता दें कि शेयर की प्राइस में इजाफे के साथ-साथ नियमित आय के रूप में डिविडेंड को भी महत्व दिया जा सकता है. पिछले 5 सालों का डिविडेंड क्या है, देखना चाहिए.
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मैनेजमेंट का जानकारी लें
शेयर बाजार के जानकार कहते हैं कि किसी कंपनी में निवेश से पहले कंपनी के मैनजमेंट के बारे में थोड़ी जानकारी लेनी चाहिए. अच्छा और काबिल मैनेजमेंट कंपनी की प्रगति का रास्ता बनाते हैं .
शेयर बायबैक पर गौर कर लें
एक और बिंदू जिस पर गौर करना चाहिए कि कंपनी शेयर बायबैक (Share Buyback) करती है या नहीं.माना जाता है कि अगर प्रमोटर स्वयं की कंपनी के शेयर पब्लिक से वापस खरीद रहे हैं तो इसका मतलब है कि उन्हें कंपनी के बिज़नेस मॉडल में विश्वास है और भविष्य में कंपनी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद हैं.
शेयरहोल्डिंग पैटर्न चेक कर लें
इसके साथ ही कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न भी एक समझदार निवेशक के लिए एक पैरामीटर हो सकता है. गौरतलब है कि किसी कंपनी का शेयर होल्डिंग पैटर्न यह दिखाता है कि कंपनी के शेयर किन-किन व्यक्तियों के पास हैं? इसमें देखना चाहिए कि शेयर का कितना हिस्सा प्रमोटर्स के पास है. गौर करने की बात है कि प्रमोटर्स के पास जितना अधिक शेयर होगा उतना ही अच्छा माना होता है. वो कंपनी अच्छी मानी जाती है जहां प्रमोटर्स के पास ज्यादा शेयर होल्डिंग होती है. यह देख लेना चाहिए कि प्रमोटर्स के पास कम से कम 50 % शेयर हो तो अच्छा है. इसके अलावा प्लेज (Pledge) शेयर या गिरवी शेयर की स्थिति भी जरूर चेक कर लेनी चाहिए.
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