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रवीश कुमार का ब्लॉग

'रवीश कुमार का ब्लॉग' - 291 News Result(s)
  • क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

    क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

    खबर बताती है कि जिन लोगों ने लोन लिया उसे बिजनेस में नहीं लगाया. ऐसे लोगों ने भी लोन लिया जिनका बिजनेस पहले से बंद हो गया था और ऐसे लोगों ने भी लिया जो बिजनेस नहीं कर रहे थे.

  • सुप्रीम कोर्ट में बड़े मुद्दों पर सुनवाई न होने को लेकर बहस, जांच एजेंसियों की भूमिका पर विपक्ष आक्रामक

    सुप्रीम कोर्ट में बड़े मुद्दों पर सुनवाई न होने को लेकर बहस, जांच एजेंसियों की भूमिका पर विपक्ष आक्रामक

    चीफ जस्टिस एनवी रमना आज रिटायर हो गए. उनके कार्यकाल में देश को कई अहम याचिकाओं पर निर्णय नहीं मिला, कई सारे सवालों के जवाब नहीं मिले लेकिन खुद भी चीफ जस्टिस एनवी रमना, न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका को लेकर कई गंभीर सवाल उठा गए. उन टिप्पणियों के ज़रिए सार्वजनिक बहस को मज़बूती तो मिली लेकिन उन्हीं प्रश्नों पर कोर्ट के फैसलों से जवाब नहीं मिलने से रह गया. चीफ जस्टिस के कोर्ट में आज उनका आखिरी दिन था लेकिन उनकी कोर्ट की सुनवाई का सीधा प्रसारण इतिहास बना गया. इसके बाद भी कई ऐसे मामले रहे जो इतिहास में दर्ज होने का इंतज़ार करते रहे. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि इस बात के लिए माफी चाहते हैं कि अपने कार्यकाल में इस बात पर ध्यान नहीं दे सके कि मुकदमों को जल्दी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सके. उन्होंने कहा कि सोलह महीने में केवल 50 दिन मिले जिसमें वे प्रभावी और पूर्णकालिक तरीके से सुनवाई कर पाए. कोविड के काऱण कोर्ट पूरी तरह काम नहीं कर पाया.

  • अनंत फायदों का अग्निपथ, Keep It Up, Keep It Up

    अनंत फायदों का अग्निपथ, Keep It Up, Keep It Up

    पूरा रविवार यह बताने में गुजर गया कि अग्निवीर को सेना में क्या-क्या मिलेगा और सेना के बाहर क्या-क्या मिलेगा. वायु सेना के बाद थल सेना ने भी अग्निवीर की भर्ती का नोटिफिकेशन निकाल दिया. यानी सरकार इस योजना पर स्पष्ट तरीके से बढ़ चुकी है. सोमवार को जारी सेना के नोटिफिकेशन में साफ-साफ बताया गया है कि अग्निवीर को क्या-क्या मिलेगा और क्या-क्या नहीं मिलेगा. रविवार की प्रेस कांफ्रेंस में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव,लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने साफ-साफ कहा था कि सेवा शर्तों में अग्निवीरों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा.

  • बुलडोजर का इंसाफ, अदालत न अपील, दलील न वकील

    बुलडोजर का इंसाफ, अदालत न अपील, दलील न वकील

    नूपुर शर्मा का सर कलम करने की मांग करने वालों को अदालत की जरूरत नहीं रही, किसी जावेद का घर बुलडोजर से ढहा देने पर ख़ुश होने वालों को भी अदालत की ज़रूरत नहीं रही. यह सही वक्त है कि भारत की अदालतें तय कर लें कि उनकी ज़रूरत रही या नहीं रही. क्या हर बार ये संयोग ही होता है कि प्रदर्शन या हिंसा के बाद किसी को तुरंत ही मास्टरमाइंड बताकर अतिक्रमण के नाम पर उसका घर गिराया जाने लगता है? जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तो बकायदा हर जिले में खुफिया तंत्र और उसके संचालन के लिए एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था, बड़े अफसर की जवाबदेही तय की थी, ताकि भीड़ की हिंसा रोकी जा सके. इस गाइडलाइन के हिसाब से कितने बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है?

  • यूपी में राशन कार्ड का हाहाकार

    यूपी में राशन कार्ड का हाहाकार

    आपदा में अवसर तो आपने सुना ही होगा लेकिन यह तो नहीं सुना होगा कि आपदा आपके लिए थी और अवसर किसी और के लिए था. किसी और के लिए भी नहीं, केवल चंद सौ लोगों के लिए था. आक्सफैम की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के उन दो वर्षों के दौरान दुनिया में हर 30 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हो रहा था. हर 33 घंटे में दस लाख लोग अत्यंत गरीबी रेखा के नीचे धकेले जा रहे थे. इस एक डेटा से आप समझ सकते हैं कि कोरोना किसके लिए अवसर लेकर आया था और किसके लिए आपदा.

  • अपनी ही प्रेस से दूर होते प्रधानमंत्री, अपने ही शब्दों से अनजान होती जनता

    अपनी ही प्रेस से दूर होते प्रधानमंत्री, अपने ही शब्दों से अनजान होती जनता

    आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. आज के दिन प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हैं. भारत और जर्मनी के बीच 14 समझौतों पर दस्तख़त हुए हैं. इनकी घोषणा के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर श्कोल्ज़ प्रेस के सामने हाज़िर हुए. दुनिया भर के पत्रकार इन समझौतों और यूक्रेन युद्ध को लेकर सवाल जवाब का इंतजार कर रहे थे लेकिन उन्हें बताया गया कि प्रेस कान्फ्रेंस में सवाल जवाब नहीं होगा. 

  • महंगाई के बाद बिजली संकट सहने को तैयार रहें

    महंगाई के बाद बिजली संकट सहने को तैयार रहें

    भारत की जनता कहां तक और कब तक सह सकती है, उसकी इस क्षमता को आप कभी कम न समझें. बर्दाश्त करने के मामले में जनता का जवाब नहीं है. अभी तक ऐसा कोई संकट नहीं आया है जिसे भारत की जनता ने सहकर नहीं दिखाया है. अगर कोई समस्या इस संकोच में धीरे-धीरे आ रही है या नहीं आ रही है कि लोग सह नहीं पाएंगे,उनमें ताकत नहीं बची है. मेरी इन संकोची समस्याओं से अपील है कि वे जल्दी-जल्दी आएं. भारत की जनता को सहने का मौक़ा देकर गौरवान्वित करें. यह कतई न समझें कि भारत की महान जनता इस वक्त समस्याओं से घिरी है तो नई समस्याओं को नहीं सह पाएगी. महंगाई ने उसे डराने का प्रयास किया, जनता महंगाई की सपोर्टर बन गई और इसे बहस से गायब कर दिया. वह समस्याओं को दूर करने का नहीं, बल्कि सहने का अभ्यास कर रही है और काफी सफल है. 

  • तबाही की पुतिन की मुहिम कहां थमेगी?

    तबाही की पुतिन की मुहिम कहां थमेगी?

    आसमान से बम गिर रहे हैं और सामने से गोली आ रही है लेकिन दिमाग़ जहां था वहीं अटका हुआ है. जिससे पता चलता है कि दिमाग़ को खत्म करने की जंग इस दुनिया में हर जगह जीती जा चुकी है. इसका बमों और मिसाइलों से कोई लेना-देना नहीं है. प्रोपेगैंडा इतना मज़बूत है कि बहुत से लोग युद्ध को सही बताते हैं और रंग और नस्ल के नाम पर नफरत इतनी मज़बूत हैं कि मरने की हालत में भी कोई गोरा किसी काले को धक्का देकर अलग कर रहा होता है. मानवाधिकार का बखरा लग गया है. कई तरह के अधिकारों में बंट गया है. लोग अपने-अपने धर्माधिकार, नस्लाधिकार, जात्याधिकार, रंगाधिकार, क्षेत्राधिकार और सर्वाधिकार को श्रेष्ठ बताने और दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं. ग़नीमत है यूरोपीय और व्हाइट श्रेष्ठता से भरे किसी जानकार ने भूरे रंग के बारुद को ब्राउन साहिब नहीं पुकारा है. 

  • यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

    यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

    भारत बनाम इंडिया की जगह अब इंडिया बनाम न्यू इंडिया ने ली है. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कई तरह के भारत वाले अभियान लॉन्‍च हो चुके हैं. इनके नाम कभी हिन्दी में होते हैं तो कभी अंग्रेज़ी में. जैसे स्वच्छ भारत हिन्दी में है तो मेक इन इंडिया अंग्रेजी. आत्मनिर्भर भारत भी है जो इन दिनों चल रहा है. सक्षम भारत है. डिजिटल इंडिया है और स्किल इंडिया है. आपको भांति भांति के इंडिया और भांति भांति के भारत का ज़िक्र मिलेगा जिसके नाम पर कई तरह के सपने अलग अलग काल खंड में दिखाए जाते रहे हैं. कभी भारत को विश्व गुरु बनाया जाने लगता है लेकिन जब यहां के फटीचर कॉलेजों का हाल दिखने लगता है तो विश्व गुरु छोड़ कर किसी और टाइप के इंडिया की बात होने लगती है. इस तरह की टैग लाइन और डेडलाइन के बीच भारत भटक रहा है. 2022 में न्यू इंडिया बनना था और नया आया है कि 2047 में न्यू इंडिया बनेगा.

  • अफ़वाहों का मुक़ाबला सवालों से है

    अफ़वाहों का मुक़ाबला सवालों से है

    गोदी मीडिया ने आम जनता को इस तरह से झूठ की चपेट में ले लिया है कि जनता के लिए भी उस झूठ से निकलना संभव नहीं है. गोदी मीडिया के अलावा आई टी सेल और अन्य संगठनों से जुड़े लोग इस तंत्र के नॉन-स्टेट एक्टर हैं जो स्टेट का काम कर रहे हैं. झूठ फैला कर.

  • किस फैक्ट्री में तैयार होते हैं लाखों रोजगार के सैकड़ों सुनहरे आंकड़े?

    किस फैक्ट्री में तैयार होते हैं लाखों रोजगार के सैकड़ों सुनहरे आंकड़े?

    इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट विकास का पुराना चेहरा है लेकिन इसे भव्य बनाकर नया किया जा रहा है. भव्यता को सजाने में रोज़गार के दावों का बड़ा रोल रहता है. प्रोजेक्ट की मंज़ूरी से लेकर शिलान्यास तक रोज़गार को लेकर जिस तरह की ख़बरें छपती हैं और दावे किए जाते हैं उसकी विकास यात्रा पर ग़ौर करना दिलचस्प होगा.

  • UAPA, NSA, PASA, NDPS, ये कानून हैं या फंसाने की बेड़ियां...?

    UAPA, NSA, PASA, NDPS, ये कानून हैं या फंसाने की बेड़ियां...?

    हम अक्सर ख़बरों को आज और कल के खांचे में देखते हैं और पलट कर आगे बढ़ जाते हैं. यही नहीं ख़बरों को हमेशा एक अकेली घटना के रूप में देखने लग जाते हैं. इससे निकलने का रास्ता आसान तो नहीं है लेकिन अगर आप कुछ ख़ास तरह की ख़बरों को निकाल कर उन्हें एक क्रम में रख कर देखेंगे तो वह लकीर दिख जाएगी जिससे आपके नागरिक होने के अधिकार का दायरा, छोटा किया जा रहा है. इसे शिकंजा कसना कहते हैं. गर्दन तक हाथ पहुंच गया है, दबाया भी जा रहा है, रहमत इतनी है कि मारा नहीं जा रहा है. UAPA के बारे में आप कितनी बार ख़बरें पढ़ते हैं, अदालत की टिप्पणियां पढ़ते हैं लेकिन इसके बाद भी आप देखते हैं कि वही कहानी दोहराई जाती है. राज्य की मशीनरी को लगता है और यह सही भी है कि आप भूल जाते हैं और बहुतों को फर्क नहीं पड़ता. एक नया आदेश आ जाता है.

  • क्या पुलिस को बताना पड़ेगा FIR कैसे लिखें, जांच कैसे करें?

    क्या पुलिस को बताना पड़ेगा FIR कैसे लिखें, जांच कैसे करें?

    पुलिस व्यवस्था की हालत इस स्तर पर आ गई है कि हत्या के सामान्य से मामले की जांच भी सुप्रीम कोर्ट के सामने खरी नहीं उतर रही है. चीफ जस्टिस को बताना पड़ रहा है कि FIR का मतलब क्या होता है और किन बातों की जांच की जानी चाहिए. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां भी रुटीन होती जा रही हैं, ऐसा लगता है कि पुलिस तैयार होकर कोर्ट आती है कि आज सुनने को मिलेगा तो सुन लिया जाएगा. एक दिन की बात है, अखबारों और चैनलों में ख़बरें बदल जाएंगी और फिर वापस सब कुछ उसी ढर्रे पर चलता रहेगा. ख़बरों को बदलने से रोक नहीं सकते लेकिन उनकी आड़ में सिस्टम अपने आप को नहीं बदलने का बहाना खोज लेता है.

  • क्या कोई जानता है, कश्मीर में क्या हो रहा है?

    क्या कोई जानता है, कश्मीर में क्या हो रहा है?

    जम्मू कश्मीर में क्या हो रहा है, यह जानना होगा तो आप किसी न किसी से पूछेंगे. सेना और पुलिस के बयान से किसी घटना की जानकारी मिलती है लेकिन राजनीतिक तौर पर कश्मीर के भीतर क्या हो रहा है इसकी आवाज़ तो उन्हीं से आएगी जिनकी जवाबदेही है. इतना कुछ हो रहा है फिर भी कश्मीर पर कोई विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं है. इसके अलावा बाकी के पारंपरिक रास्ते या तो बंद हो चुके हैं या कमज़ोर कर दिए गए हैं जैसे राजनीतिक दल,नागरिक संगठन, NGO और मीडिया. 5 अगस्त 2019 को धारा 370 की समाप्ति के बाद इन सभी की हालत पर आप गौर कर लेंगे तो पता चलेगा कि कश्मीर पर जानने के लिए आपके पास गोदी मीडिया ही है जो कि ख़ुद नहीं जानता कि वहां क्या हो रहा है. धारा 370 की समाप्ति के दो साल से भी अधिक समय हो चुके हैं, न तो राज्य की बहाली हुई है और न ही राजनीतिक प्रक्रिया को लेकर ठोस पहल. जिसकी बहाली के लिए दिल्ली में 24 जून को दिल्ली में कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री ने बैठक भी की. इस बैठक में कश्मीरी पंडितों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, न उनका ज़िक्र हुआ था. 

  • प्रधानमंत्री जी, गृह राज्यमंत्री को 28 सेकेंड का यह वीडियो दिखाइए

    प्रधानमंत्री जी, गृह राज्यमंत्री को 28 सेकेंड का यह वीडियो दिखाइए

    28 सेकेंड का यह वीडियो है. एक सेकेंड के वीडियो में 24 से 30 फ्रेम होते हैं. 840 फ्रेम. 28 सेकेंड के इस वीडियो के एक एक फ्रेम में क्रूरता और मंत्री के झूठ की ऐसी गवाहियां हैं कि इस 28 सेकेंड का पूरा ब्यौरा बताने के लिए 28 घंटे भी कम पड़ जाएं. सोमवार रात दुनिया भर में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक के बाद भी अकेले ट्विटर से यह वीडियो इतना वायरल हो गया कि लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या को लेकर फैलाया गया झूठ का शामियाना उजड़ गया. वह वीडियो उस जीप की कहानी का सच लेकर आ गया है जिसने शांति से लौट रहे किसानों को पीछे से कुचल दिया. लेकिन यह वीडियो केवल यह बताने नहीं आया कि किसानों को जीप ने कैसे कुचला, बल्कि यह बताने आया है कि थार जीप और गोदी मीडिया में कोई अंतर नहीं है. जिस तरह से जीप ने किसानों को कुचल दिया उसी तरह गोदी मीडिया हर दिन लोगों को कुचल रहा है. गोदी मीडिया के एंकरों और चैनलों ने आपको नज़रबंद कर लिया है. यह वीडियो नहीं आता तो आपके मन में एक संदेह सच का रूप ले चुका होता कि किसान ही उपद्रवी हैं. और इस तरह से किसानों की हत्या करने वाले आपकी निगाहों में संत हो जाते. 

'रवीश कुमार का ब्लॉग' - 13 Video Result(s)
'रवीश कुमार का ब्लॉग' - 291 News Result(s)
  • क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

    क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

    खबर बताती है कि जिन लोगों ने लोन लिया उसे बिजनेस में नहीं लगाया. ऐसे लोगों ने भी लोन लिया जिनका बिजनेस पहले से बंद हो गया था और ऐसे लोगों ने भी लिया जो बिजनेस नहीं कर रहे थे.

  • सुप्रीम कोर्ट में बड़े मुद्दों पर सुनवाई न होने को लेकर बहस, जांच एजेंसियों की भूमिका पर विपक्ष आक्रामक

    सुप्रीम कोर्ट में बड़े मुद्दों पर सुनवाई न होने को लेकर बहस, जांच एजेंसियों की भूमिका पर विपक्ष आक्रामक

    चीफ जस्टिस एनवी रमना आज रिटायर हो गए. उनके कार्यकाल में देश को कई अहम याचिकाओं पर निर्णय नहीं मिला, कई सारे सवालों के जवाब नहीं मिले लेकिन खुद भी चीफ जस्टिस एनवी रमना, न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका को लेकर कई गंभीर सवाल उठा गए. उन टिप्पणियों के ज़रिए सार्वजनिक बहस को मज़बूती तो मिली लेकिन उन्हीं प्रश्नों पर कोर्ट के फैसलों से जवाब नहीं मिलने से रह गया. चीफ जस्टिस के कोर्ट में आज उनका आखिरी दिन था लेकिन उनकी कोर्ट की सुनवाई का सीधा प्रसारण इतिहास बना गया. इसके बाद भी कई ऐसे मामले रहे जो इतिहास में दर्ज होने का इंतज़ार करते रहे. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि इस बात के लिए माफी चाहते हैं कि अपने कार्यकाल में इस बात पर ध्यान नहीं दे सके कि मुकदमों को जल्दी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सके. उन्होंने कहा कि सोलह महीने में केवल 50 दिन मिले जिसमें वे प्रभावी और पूर्णकालिक तरीके से सुनवाई कर पाए. कोविड के काऱण कोर्ट पूरी तरह काम नहीं कर पाया.

  • अनंत फायदों का अग्निपथ, Keep It Up, Keep It Up

    अनंत फायदों का अग्निपथ, Keep It Up, Keep It Up

    पूरा रविवार यह बताने में गुजर गया कि अग्निवीर को सेना में क्या-क्या मिलेगा और सेना के बाहर क्या-क्या मिलेगा. वायु सेना के बाद थल सेना ने भी अग्निवीर की भर्ती का नोटिफिकेशन निकाल दिया. यानी सरकार इस योजना पर स्पष्ट तरीके से बढ़ चुकी है. सोमवार को जारी सेना के नोटिफिकेशन में साफ-साफ बताया गया है कि अग्निवीर को क्या-क्या मिलेगा और क्या-क्या नहीं मिलेगा. रविवार की प्रेस कांफ्रेंस में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव,लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने साफ-साफ कहा था कि सेवा शर्तों में अग्निवीरों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा.

  • बुलडोजर का इंसाफ, अदालत न अपील, दलील न वकील

    बुलडोजर का इंसाफ, अदालत न अपील, दलील न वकील

    नूपुर शर्मा का सर कलम करने की मांग करने वालों को अदालत की जरूरत नहीं रही, किसी जावेद का घर बुलडोजर से ढहा देने पर ख़ुश होने वालों को भी अदालत की ज़रूरत नहीं रही. यह सही वक्त है कि भारत की अदालतें तय कर लें कि उनकी ज़रूरत रही या नहीं रही. क्या हर बार ये संयोग ही होता है कि प्रदर्शन या हिंसा के बाद किसी को तुरंत ही मास्टरमाइंड बताकर अतिक्रमण के नाम पर उसका घर गिराया जाने लगता है? जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तो बकायदा हर जिले में खुफिया तंत्र और उसके संचालन के लिए एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था, बड़े अफसर की जवाबदेही तय की थी, ताकि भीड़ की हिंसा रोकी जा सके. इस गाइडलाइन के हिसाब से कितने बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होती है?

  • यूपी में राशन कार्ड का हाहाकार

    यूपी में राशन कार्ड का हाहाकार

    आपदा में अवसर तो आपने सुना ही होगा लेकिन यह तो नहीं सुना होगा कि आपदा आपके लिए थी और अवसर किसी और के लिए था. किसी और के लिए भी नहीं, केवल चंद सौ लोगों के लिए था. आक्सफैम की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के उन दो वर्षों के दौरान दुनिया में हर 30 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हो रहा था. हर 33 घंटे में दस लाख लोग अत्यंत गरीबी रेखा के नीचे धकेले जा रहे थे. इस एक डेटा से आप समझ सकते हैं कि कोरोना किसके लिए अवसर लेकर आया था और किसके लिए आपदा.

  • अपनी ही प्रेस से दूर होते प्रधानमंत्री, अपने ही शब्दों से अनजान होती जनता

    अपनी ही प्रेस से दूर होते प्रधानमंत्री, अपने ही शब्दों से अनजान होती जनता

    आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है. आज के दिन प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हैं. भारत और जर्मनी के बीच 14 समझौतों पर दस्तख़त हुए हैं. इनकी घोषणा के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर श्कोल्ज़ प्रेस के सामने हाज़िर हुए. दुनिया भर के पत्रकार इन समझौतों और यूक्रेन युद्ध को लेकर सवाल जवाब का इंतजार कर रहे थे लेकिन उन्हें बताया गया कि प्रेस कान्फ्रेंस में सवाल जवाब नहीं होगा. 

  • महंगाई के बाद बिजली संकट सहने को तैयार रहें

    महंगाई के बाद बिजली संकट सहने को तैयार रहें

    भारत की जनता कहां तक और कब तक सह सकती है, उसकी इस क्षमता को आप कभी कम न समझें. बर्दाश्त करने के मामले में जनता का जवाब नहीं है. अभी तक ऐसा कोई संकट नहीं आया है जिसे भारत की जनता ने सहकर नहीं दिखाया है. अगर कोई समस्या इस संकोच में धीरे-धीरे आ रही है या नहीं आ रही है कि लोग सह नहीं पाएंगे,उनमें ताकत नहीं बची है. मेरी इन संकोची समस्याओं से अपील है कि वे जल्दी-जल्दी आएं. भारत की जनता को सहने का मौक़ा देकर गौरवान्वित करें. यह कतई न समझें कि भारत की महान जनता इस वक्त समस्याओं से घिरी है तो नई समस्याओं को नहीं सह पाएगी. महंगाई ने उसे डराने का प्रयास किया, जनता महंगाई की सपोर्टर बन गई और इसे बहस से गायब कर दिया. वह समस्याओं को दूर करने का नहीं, बल्कि सहने का अभ्यास कर रही है और काफी सफल है. 

  • तबाही की पुतिन की मुहिम कहां थमेगी?

    तबाही की पुतिन की मुहिम कहां थमेगी?

    आसमान से बम गिर रहे हैं और सामने से गोली आ रही है लेकिन दिमाग़ जहां था वहीं अटका हुआ है. जिससे पता चलता है कि दिमाग़ को खत्म करने की जंग इस दुनिया में हर जगह जीती जा चुकी है. इसका बमों और मिसाइलों से कोई लेना-देना नहीं है. प्रोपेगैंडा इतना मज़बूत है कि बहुत से लोग युद्ध को सही बताते हैं और रंग और नस्ल के नाम पर नफरत इतनी मज़बूत हैं कि मरने की हालत में भी कोई गोरा किसी काले को धक्का देकर अलग कर रहा होता है. मानवाधिकार का बखरा लग गया है. कई तरह के अधिकारों में बंट गया है. लोग अपने-अपने धर्माधिकार, नस्लाधिकार, जात्याधिकार, रंगाधिकार, क्षेत्राधिकार और सर्वाधिकार को श्रेष्ठ बताने और दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं. ग़नीमत है यूरोपीय और व्हाइट श्रेष्ठता से भरे किसी जानकार ने भूरे रंग के बारुद को ब्राउन साहिब नहीं पुकारा है. 

  • यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

    यात्री गण कृपया ध्‍यान दें, 2022 का नया इंडिया अब 2047 में आएगा

    भारत बनाम इंडिया की जगह अब इंडिया बनाम न्यू इंडिया ने ली है. प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कई तरह के भारत वाले अभियान लॉन्‍च हो चुके हैं. इनके नाम कभी हिन्दी में होते हैं तो कभी अंग्रेज़ी में. जैसे स्वच्छ भारत हिन्दी में है तो मेक इन इंडिया अंग्रेजी. आत्मनिर्भर भारत भी है जो इन दिनों चल रहा है. सक्षम भारत है. डिजिटल इंडिया है और स्किल इंडिया है. आपको भांति भांति के इंडिया और भांति भांति के भारत का ज़िक्र मिलेगा जिसके नाम पर कई तरह के सपने अलग अलग काल खंड में दिखाए जाते रहे हैं. कभी भारत को विश्व गुरु बनाया जाने लगता है लेकिन जब यहां के फटीचर कॉलेजों का हाल दिखने लगता है तो विश्व गुरु छोड़ कर किसी और टाइप के इंडिया की बात होने लगती है. इस तरह की टैग लाइन और डेडलाइन के बीच भारत भटक रहा है. 2022 में न्यू इंडिया बनना था और नया आया है कि 2047 में न्यू इंडिया बनेगा.

  • अफ़वाहों का मुक़ाबला सवालों से है

    अफ़वाहों का मुक़ाबला सवालों से है

    गोदी मीडिया ने आम जनता को इस तरह से झूठ की चपेट में ले लिया है कि जनता के लिए भी उस झूठ से निकलना संभव नहीं है. गोदी मीडिया के अलावा आई टी सेल और अन्य संगठनों से जुड़े लोग इस तंत्र के नॉन-स्टेट एक्टर हैं जो स्टेट का काम कर रहे हैं. झूठ फैला कर.

  • किस फैक्ट्री में तैयार होते हैं लाखों रोजगार के सैकड़ों सुनहरे आंकड़े?

    किस फैक्ट्री में तैयार होते हैं लाखों रोजगार के सैकड़ों सुनहरे आंकड़े?

    इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट विकास का पुराना चेहरा है लेकिन इसे भव्य बनाकर नया किया जा रहा है. भव्यता को सजाने में रोज़गार के दावों का बड़ा रोल रहता है. प्रोजेक्ट की मंज़ूरी से लेकर शिलान्यास तक रोज़गार को लेकर जिस तरह की ख़बरें छपती हैं और दावे किए जाते हैं उसकी विकास यात्रा पर ग़ौर करना दिलचस्प होगा.

  • UAPA, NSA, PASA, NDPS, ये कानून हैं या फंसाने की बेड़ियां...?

    UAPA, NSA, PASA, NDPS, ये कानून हैं या फंसाने की बेड़ियां...?

    हम अक्सर ख़बरों को आज और कल के खांचे में देखते हैं और पलट कर आगे बढ़ जाते हैं. यही नहीं ख़बरों को हमेशा एक अकेली घटना के रूप में देखने लग जाते हैं. इससे निकलने का रास्ता आसान तो नहीं है लेकिन अगर आप कुछ ख़ास तरह की ख़बरों को निकाल कर उन्हें एक क्रम में रख कर देखेंगे तो वह लकीर दिख जाएगी जिससे आपके नागरिक होने के अधिकार का दायरा, छोटा किया जा रहा है. इसे शिकंजा कसना कहते हैं. गर्दन तक हाथ पहुंच गया है, दबाया भी जा रहा है, रहमत इतनी है कि मारा नहीं जा रहा है. UAPA के बारे में आप कितनी बार ख़बरें पढ़ते हैं, अदालत की टिप्पणियां पढ़ते हैं लेकिन इसके बाद भी आप देखते हैं कि वही कहानी दोहराई जाती है. राज्य की मशीनरी को लगता है और यह सही भी है कि आप भूल जाते हैं और बहुतों को फर्क नहीं पड़ता. एक नया आदेश आ जाता है.

  • क्या पुलिस को बताना पड़ेगा FIR कैसे लिखें, जांच कैसे करें?

    क्या पुलिस को बताना पड़ेगा FIR कैसे लिखें, जांच कैसे करें?

    पुलिस व्यवस्था की हालत इस स्तर पर आ गई है कि हत्या के सामान्य से मामले की जांच भी सुप्रीम कोर्ट के सामने खरी नहीं उतर रही है. चीफ जस्टिस को बताना पड़ रहा है कि FIR का मतलब क्या होता है और किन बातों की जांच की जानी चाहिए. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां भी रुटीन होती जा रही हैं, ऐसा लगता है कि पुलिस तैयार होकर कोर्ट आती है कि आज सुनने को मिलेगा तो सुन लिया जाएगा. एक दिन की बात है, अखबारों और चैनलों में ख़बरें बदल जाएंगी और फिर वापस सब कुछ उसी ढर्रे पर चलता रहेगा. ख़बरों को बदलने से रोक नहीं सकते लेकिन उनकी आड़ में सिस्टम अपने आप को नहीं बदलने का बहाना खोज लेता है.

  • क्या कोई जानता है, कश्मीर में क्या हो रहा है?

    क्या कोई जानता है, कश्मीर में क्या हो रहा है?

    जम्मू कश्मीर में क्या हो रहा है, यह जानना होगा तो आप किसी न किसी से पूछेंगे. सेना और पुलिस के बयान से किसी घटना की जानकारी मिलती है लेकिन राजनीतिक तौर पर कश्मीर के भीतर क्या हो रहा है इसकी आवाज़ तो उन्हीं से आएगी जिनकी जवाबदेही है. इतना कुछ हो रहा है फिर भी कश्मीर पर कोई विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं है. इसके अलावा बाकी के पारंपरिक रास्ते या तो बंद हो चुके हैं या कमज़ोर कर दिए गए हैं जैसे राजनीतिक दल,नागरिक संगठन, NGO और मीडिया. 5 अगस्त 2019 को धारा 370 की समाप्ति के बाद इन सभी की हालत पर आप गौर कर लेंगे तो पता चलेगा कि कश्मीर पर जानने के लिए आपके पास गोदी मीडिया ही है जो कि ख़ुद नहीं जानता कि वहां क्या हो रहा है. धारा 370 की समाप्ति के दो साल से भी अधिक समय हो चुके हैं, न तो राज्य की बहाली हुई है और न ही राजनीतिक प्रक्रिया को लेकर ठोस पहल. जिसकी बहाली के लिए दिल्ली में 24 जून को दिल्ली में कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री ने बैठक भी की. इस बैठक में कश्मीरी पंडितों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, न उनका ज़िक्र हुआ था. 

  • प्रधानमंत्री जी, गृह राज्यमंत्री को 28 सेकेंड का यह वीडियो दिखाइए

    प्रधानमंत्री जी, गृह राज्यमंत्री को 28 सेकेंड का यह वीडियो दिखाइए

    28 सेकेंड का यह वीडियो है. एक सेकेंड के वीडियो में 24 से 30 फ्रेम होते हैं. 840 फ्रेम. 28 सेकेंड के इस वीडियो के एक एक फ्रेम में क्रूरता और मंत्री के झूठ की ऐसी गवाहियां हैं कि इस 28 सेकेंड का पूरा ब्यौरा बताने के लिए 28 घंटे भी कम पड़ जाएं. सोमवार रात दुनिया भर में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक के बाद भी अकेले ट्विटर से यह वीडियो इतना वायरल हो गया कि लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या को लेकर फैलाया गया झूठ का शामियाना उजड़ गया. वह वीडियो उस जीप की कहानी का सच लेकर आ गया है जिसने शांति से लौट रहे किसानों को पीछे से कुचल दिया. लेकिन यह वीडियो केवल यह बताने नहीं आया कि किसानों को जीप ने कैसे कुचला, बल्कि यह बताने आया है कि थार जीप और गोदी मीडिया में कोई अंतर नहीं है. जिस तरह से जीप ने किसानों को कुचल दिया उसी तरह गोदी मीडिया हर दिन लोगों को कुचल रहा है. गोदी मीडिया के एंकरों और चैनलों ने आपको नज़रबंद कर लिया है. यह वीडियो नहीं आता तो आपके मन में एक संदेह सच का रूप ले चुका होता कि किसान ही उपद्रवी हैं. और इस तरह से किसानों की हत्या करने वाले आपकी निगाहों में संत हो जाते. 

'रवीश कुमार का ब्लॉग' - 13 Video Result(s)