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Priyadarshan Article

'Priyadarshan Article' - 20 News Result(s)
  • नय्यरा नूर की याद और नूर की तलाश 

    नय्यरा नूर की याद और नूर की तलाश 

    ये वे दिन थे जब यूट्यूब जैसी शै ने संगीत को बिल्कुल हमारे मोबाइल का खेल नहीं बना डाला था और एक-एक रिकॉर्ड खोजना और पाना फ़ख्र की बात माना जाता था।

  • क्या हम बुलडोज़र राज की ओर बढ़ रहे हैं?

    क्या हम बुलडोज़र राज की ओर बढ़ रहे हैं?

    आतंकवाद ख़तरनाक है, लेकिन राज्य का आतंक उससे ज़्यादा ख़तरनाक है, क्योंकि इसका सीधा असर नागरिकों के जीने की स्वतंत्रता पर पड़ता है. सरकार जब तय कर लेती है कि वह किसी समूह या समुदाय को निशाना बनाएगी, जब वह कानूनी तौर-तरीक़ों की परवाह नहीं करती तो दरअसल वह सबसे पहले देश के साथ अन्याय कर रही होती है, अपने नागरिकों पर अत्याचार कर रही होती है.

  • कहां हैं वे ग़रीब जिनकी साइकिलें सरकार ने बेच डालीं?

    कहां हैं वे ग़रीब जिनकी साइकिलें सरकार ने बेच डालीं?

    कौन हैं ये गरीब और कहां से इनकी साइकिलें सरकार के पास बिक्री के लिए जमा होती गईं? इस सवाल का जवाब दिल दुखाता है. ये वे लोग हैं जो दो साल पहले अपने प्रधानमंत्री द्वारा आधी रात को अचानक घोषित लॉकडाउन की चपेट में आ गए.

  • थोड़ी गुस्ताख़ हंसी भी ज़रूरी है, कुछ चुभने वाले व्यंग्य चाहिए

    थोड़ी गुस्ताख़ हंसी भी ज़रूरी है, कुछ चुभने वाले व्यंग्य चाहिए

    शक्ति को हास्यास्पद बनाना ज़रूरी होता है. सत्ता और शक्ति की क्रूरता के ख़िलाफ़ जब बहुत सारी कार्रवाइयां विफल हो जाती हैं तो शायद हंसी उसका एक जवाब बनती है.

  • बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb of Sand बुकर लांग लिस्ट के लिए चुनी गई 13 कृतियों में शामिल है. अचानक बहुत सारे लोग पूछने लगे कि यह गीतांजलि श्री कौन हैं? बेशक, इस सवाल में भी हिन्दी समाज और साहित्य दोनों की एक विडंबना झांकती है. दोनों को एक-दूसरे के जितने करीब होना चाहिए, उतने वे नहीं हैं.

  • खिड़की में एक दीवार रहती थी

    खिड़की में एक दीवार रहती थी

    क्या वाकई हिंदी की दुनिया को हिंदी लेखक या लेखन की फ़िक्र है? विनोद कुमार शुक्ल जैसे बड़े लेखक का वीडियो आता है तो उनकी बेचारगी- उचित ही- सहानुभूति और आक्रोश पैदा करती है. लेकिन क्या यह बात छुपी हुई है कि हिंदी का लेखक और अनुवादक अंततः एक गरीब प्राणी है जिसे न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती?

  • भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

    भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

    दरअसल यह बजट भारत को एक कंप्यूटर में बंद करके कुछ बिचौलियों और कुछ उद्योगपतियों के हवाले करने का प्रबंध करता है. भारत जिन खेतों में, जिन कच्चे घरों में, जिन धूल भरे गांवों और क़स्बों में रहता है, उनके बीच यह बजट पहुंचता नज़र नहीं आता.

  • क्या इन भटके हुए कश्मीरियों से भी बात नहीं की जानी चाहिए?

    क्या इन भटके हुए कश्मीरियों से भी बात नहीं की जानी चाहिए?

    कायदे से सरकारों को अभिभावक की तरह होना चाहिए. अपने बिगड़े हुए बच्चों को फौरन सज़ा देने की जगह रास्ते पर लौटाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. लेकिन अमूमन सरकारें इतनी मानवीय नहीं होतीं, उनकी व्यवस्थाएं ऐसी आदर्श नहीं होतीं.

  • बाजार के अंगने में क्रिकेट, सिनेमा और सियासत

    बाजार के अंगने में क्रिकेट, सिनेमा और सियासत

    भारतीय प्रशंसकों ने जो टी शर्ट पहन रखी थी, उस पर भी पेप्सी का विज्ञापन था और पाकिस्तान समर्थकों ने भी जो शर्ट पहन रखी थी उस पर भी पेप्सी बनी हुई थी. यानी मैच भारत जीते या पाकिस्तान- अंततः यह पेप्सी की जीत थी.

  • प्रियंका लड़की हैं, लड़ सकती हैं

    प्रियंका लड़की हैं, लड़ सकती हैं

    यही मोड़ है जहां प्रियंका गांधी का फ़ैसला एक संभावना की ओर इशारा भी करता है. महिलाओं ने पहले भी चुनावी राजनीति बदली है और चुनाव-पंडितों को अंगूठा दिखाया है.

  • जब तोड़ने वाले जय श्रीराम का नारा लगाते हैं

    जब तोड़ने वाले जय श्रीराम का नारा लगाते हैं

    जय श्रीराम का यह रुग्ण इस्तेमाल इन दिनों लगातार बढ़ा है. कुछ दिन पहले ऐसे ही नारों और गाली-गलौज के बीच एक बाइक रैली निकली थी. जाहिर है, यह वे राम नहीं हैं जिनसे लोगों की आस्था हो, ये वे राम हैं जिनका इस्तेमाल एक हथियार की तरह होना है- एक विवेकहीन भीड़ के उन्माद के अस्त्र के रूप में.

  • बिशन सिंह बेदी को इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी

    बिशन सिंह बेदी को इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी

    बिशन सिंह बेदी का कहना है कि अगर दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम में अरुण जेटली की प्रतिमा लगाई जा रही है, तो उनके नाम का स्टैंड हटा दिया जाए.

  • हादसों पर पांव रख कर चलता देश और नागरिकता पर बहस

    हादसों पर पांव रख कर चलता देश और नागरिकता पर बहस

    दरअसल यह देश अपने गरीब लोगों के साथ बहुत क्रूर है. वह उन सारी अनियमितताओं से सीधे आंख मूंदे रहता है जो उस पर असर नहीं करतीं. बहुत सारी अनियमितताओं को वह बढ़ावा देता है जिसका फ़ायदा उसे मिलता है. नियमों की अनदेखी कर बरसों से चल रहा ये कारख़ाना भी इसी कार्यसंस्कृति की उपज होगा, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए.

  • कश्मीर पर चुप रहिए, अयोध्या पर चुप रहिए, जेएनयू की निंदा कीजिए

    कश्मीर पर चुप रहिए, अयोध्या पर चुप रहिए, जेएनयू की निंदा कीजिए

    पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की कविता 'सबसे ख़तरनाक होता है' अब इतनी बार पढ़ी और दुहराई जा चुकी है कि यह अंदेशा होता है कि वह कहीं अपना अर्थ न खो बैठी हो. लेकिन हर बार हालात कुछ ऐसे होते हैं कि इस कविता को उद्धृत करने की इच्छा होती है. इन दिनों देश में 'शांति' बने रहने पर बहुत सुकून जताया जा रहा है. सब याद दिला रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद भी हिंसा नहीं हुई और अयोध्या का फ़ैसला आने के बाद भी देश में अमन बना रहा.

  • कश्मीर की दीवार में कोई खिड़की नहीं रहती

    कश्मीर की दीवार में कोई खिड़की नहीं रहती

    अगर कश्मीर में ज़मीन खरीदने और कश्मीरी लड़कियों से शादी करने का बाक़ी भारतीयों का उत्साह कुछ कम हुआ हो तो उन्हें अब इस पर भी सोचना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को बेमानी बनाए जाने के क़रीब तीन महीने बाद कश्मीर के हालात क्या हैं?

'Priyadarshan Article' - 20 News Result(s)
  • नय्यरा नूर की याद और नूर की तलाश 

    नय्यरा नूर की याद और नूर की तलाश 

    ये वे दिन थे जब यूट्यूब जैसी शै ने संगीत को बिल्कुल हमारे मोबाइल का खेल नहीं बना डाला था और एक-एक रिकॉर्ड खोजना और पाना फ़ख्र की बात माना जाता था।

  • क्या हम बुलडोज़र राज की ओर बढ़ रहे हैं?

    क्या हम बुलडोज़र राज की ओर बढ़ रहे हैं?

    आतंकवाद ख़तरनाक है, लेकिन राज्य का आतंक उससे ज़्यादा ख़तरनाक है, क्योंकि इसका सीधा असर नागरिकों के जीने की स्वतंत्रता पर पड़ता है. सरकार जब तय कर लेती है कि वह किसी समूह या समुदाय को निशाना बनाएगी, जब वह कानूनी तौर-तरीक़ों की परवाह नहीं करती तो दरअसल वह सबसे पहले देश के साथ अन्याय कर रही होती है, अपने नागरिकों पर अत्याचार कर रही होती है.

  • कहां हैं वे ग़रीब जिनकी साइकिलें सरकार ने बेच डालीं?

    कहां हैं वे ग़रीब जिनकी साइकिलें सरकार ने बेच डालीं?

    कौन हैं ये गरीब और कहां से इनकी साइकिलें सरकार के पास बिक्री के लिए जमा होती गईं? इस सवाल का जवाब दिल दुखाता है. ये वे लोग हैं जो दो साल पहले अपने प्रधानमंत्री द्वारा आधी रात को अचानक घोषित लॉकडाउन की चपेट में आ गए.

  • थोड़ी गुस्ताख़ हंसी भी ज़रूरी है, कुछ चुभने वाले व्यंग्य चाहिए

    थोड़ी गुस्ताख़ हंसी भी ज़रूरी है, कुछ चुभने वाले व्यंग्य चाहिए

    शक्ति को हास्यास्पद बनाना ज़रूरी होता है. सत्ता और शक्ति की क्रूरता के ख़िलाफ़ जब बहुत सारी कार्रवाइयां विफल हो जाती हैं तो शायद हंसी उसका एक जवाब बनती है.

  • बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb of Sand बुकर लांग लिस्ट के लिए चुनी गई 13 कृतियों में शामिल है. अचानक बहुत सारे लोग पूछने लगे कि यह गीतांजलि श्री कौन हैं? बेशक, इस सवाल में भी हिन्दी समाज और साहित्य दोनों की एक विडंबना झांकती है. दोनों को एक-दूसरे के जितने करीब होना चाहिए, उतने वे नहीं हैं.

  • खिड़की में एक दीवार रहती थी

    खिड़की में एक दीवार रहती थी

    क्या वाकई हिंदी की दुनिया को हिंदी लेखक या लेखन की फ़िक्र है? विनोद कुमार शुक्ल जैसे बड़े लेखक का वीडियो आता है तो उनकी बेचारगी- उचित ही- सहानुभूति और आक्रोश पैदा करती है. लेकिन क्या यह बात छुपी हुई है कि हिंदी का लेखक और अनुवादक अंततः एक गरीब प्राणी है जिसे न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती?

  • भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

    भारत को एक कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में बंद करने वाला बजट

    दरअसल यह बजट भारत को एक कंप्यूटर में बंद करके कुछ बिचौलियों और कुछ उद्योगपतियों के हवाले करने का प्रबंध करता है. भारत जिन खेतों में, जिन कच्चे घरों में, जिन धूल भरे गांवों और क़स्बों में रहता है, उनके बीच यह बजट पहुंचता नज़र नहीं आता.

  • क्या इन भटके हुए कश्मीरियों से भी बात नहीं की जानी चाहिए?

    क्या इन भटके हुए कश्मीरियों से भी बात नहीं की जानी चाहिए?

    कायदे से सरकारों को अभिभावक की तरह होना चाहिए. अपने बिगड़े हुए बच्चों को फौरन सज़ा देने की जगह रास्ते पर लौटाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. लेकिन अमूमन सरकारें इतनी मानवीय नहीं होतीं, उनकी व्यवस्थाएं ऐसी आदर्श नहीं होतीं.

  • बाजार के अंगने में क्रिकेट, सिनेमा और सियासत

    बाजार के अंगने में क्रिकेट, सिनेमा और सियासत

    भारतीय प्रशंसकों ने जो टी शर्ट पहन रखी थी, उस पर भी पेप्सी का विज्ञापन था और पाकिस्तान समर्थकों ने भी जो शर्ट पहन रखी थी उस पर भी पेप्सी बनी हुई थी. यानी मैच भारत जीते या पाकिस्तान- अंततः यह पेप्सी की जीत थी.

  • प्रियंका लड़की हैं, लड़ सकती हैं

    प्रियंका लड़की हैं, लड़ सकती हैं

    यही मोड़ है जहां प्रियंका गांधी का फ़ैसला एक संभावना की ओर इशारा भी करता है. महिलाओं ने पहले भी चुनावी राजनीति बदली है और चुनाव-पंडितों को अंगूठा दिखाया है.

  • जब तोड़ने वाले जय श्रीराम का नारा लगाते हैं

    जब तोड़ने वाले जय श्रीराम का नारा लगाते हैं

    जय श्रीराम का यह रुग्ण इस्तेमाल इन दिनों लगातार बढ़ा है. कुछ दिन पहले ऐसे ही नारों और गाली-गलौज के बीच एक बाइक रैली निकली थी. जाहिर है, यह वे राम नहीं हैं जिनसे लोगों की आस्था हो, ये वे राम हैं जिनका इस्तेमाल एक हथियार की तरह होना है- एक विवेकहीन भीड़ के उन्माद के अस्त्र के रूप में.

  • बिशन सिंह बेदी को इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी

    बिशन सिंह बेदी को इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी

    बिशन सिंह बेदी का कहना है कि अगर दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला स्टेडियम में अरुण जेटली की प्रतिमा लगाई जा रही है, तो उनके नाम का स्टैंड हटा दिया जाए.

  • हादसों पर पांव रख कर चलता देश और नागरिकता पर बहस

    हादसों पर पांव रख कर चलता देश और नागरिकता पर बहस

    दरअसल यह देश अपने गरीब लोगों के साथ बहुत क्रूर है. वह उन सारी अनियमितताओं से सीधे आंख मूंदे रहता है जो उस पर असर नहीं करतीं. बहुत सारी अनियमितताओं को वह बढ़ावा देता है जिसका फ़ायदा उसे मिलता है. नियमों की अनदेखी कर बरसों से चल रहा ये कारख़ाना भी इसी कार्यसंस्कृति की उपज होगा, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए.

  • कश्मीर पर चुप रहिए, अयोध्या पर चुप रहिए, जेएनयू की निंदा कीजिए

    कश्मीर पर चुप रहिए, अयोध्या पर चुप रहिए, जेएनयू की निंदा कीजिए

    पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की कविता 'सबसे ख़तरनाक होता है' अब इतनी बार पढ़ी और दुहराई जा चुकी है कि यह अंदेशा होता है कि वह कहीं अपना अर्थ न खो बैठी हो. लेकिन हर बार हालात कुछ ऐसे होते हैं कि इस कविता को उद्धृत करने की इच्छा होती है. इन दिनों देश में 'शांति' बने रहने पर बहुत सुकून जताया जा रहा है. सब याद दिला रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद भी हिंसा नहीं हुई और अयोध्या का फ़ैसला आने के बाद भी देश में अमन बना रहा.

  • कश्मीर की दीवार में कोई खिड़की नहीं रहती

    कश्मीर की दीवार में कोई खिड़की नहीं रहती

    अगर कश्मीर में ज़मीन खरीदने और कश्मीरी लड़कियों से शादी करने का बाक़ी भारतीयों का उत्साह कुछ कम हुआ हो तो उन्हें अब इस पर भी सोचना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को बेमानी बनाए जाने के क़रीब तीन महीने बाद कश्मीर के हालात क्या हैं?