'Keyoor pathak'

- 8 न्यूज़ रिजल्ट्स
  • Blogs | केयूर पाठक |बुधवार मार्च 6, 2024 02:26 PM IST
    ऐसा लगता है कि भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व अगर कोई त्योहार सबसे अधिक करता है, तो वह होली है. यह भारत की विविधता को स्वीकारने का बड़ा उत्सव है. अलग-अलग रंग, सब मिलकर एक.
  • Blogs | केयूर पाठक और देबोराह दार्लियनमवई |रविवार अगस्त 6, 2023 10:16 AM IST
    गाँवों को मजबूत कीजिये. भारत को स्मार्ट सिटिज की जरूरत नहीं, भारत को स्मार्ट गाँवों की जरूरत है. "थिंक बिग" से जीवन छोटा हो जाता है, ये बात इन मजदूरों को मालूम है, लेकिन सत्ता को नहीं.
  • Blogs | केयूर पाठक |रविवार जुलाई 30, 2023 03:41 PM IST
    मैं मन ही मन भूपेन हजारिका के गीत गुनगुनाने लगा- “गंगा तू बहती क्यों है रे...”. मैंने गंगा से बात करना चाहा, मैंने जमुना की तरफ भी देखा. लेकिन संगम में मुझे प्रलयंकारी चुप्पी ही सुनाई दी- यह चुप्पी संस्कृतिविहीन चुप्पी थी.
  • Blogs | केयूर पाठक |मंगलवार जुलाई 4, 2023 09:42 AM IST
    पश्चिमी देशों के लिए यह अनिवार्य दायित्व था कि वह पश्चिम में नस्लीय विविधता को प्रोत्साहित करें, ताकि अतीत में उसके किये गए पापों के लिए उन्हें माफ़ किया जा सके. लेकिन...!
  • India | केयूर पाठक |सोमवार जून 5, 2023 11:50 AM IST
    World Environment Day 2023: ‘जुड़ शीतल’ जैसे पर्यावरण केन्द्रित लोकपर्व हर प्राचीन समाज का हिस्सा रहा है. हां, इनका स्वरूप और मनाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन अपने परिवेश और पर्यावरण को जीवित और संरक्षित रखने की परम्पराएँ सामान्य रूप से देखी जा सकती है.
  • Blogs | केयूर पाठक |शनिवार मई 27, 2023 08:59 AM IST
    भारत में 2021 में जितनी भी सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं उनमें से लगभग 60 प्रतिशत गाड़ियों को निर्धारित गति से तेज चलाने के कारण ही हुई है. गति जीवन की गति को ख़तम कर दे रही है.
  • Blogs | केयूर पाठक |बुधवार मई 3, 2023 09:52 PM IST
    इतिहास का विश्लेषण जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए. यह गंभीर और जोखिम भरा होता है. सिनेमा लोकप्रियता से प्रेरित होते हैं. ऐसे में सिनेमा में ऐसी जल्दबाजी ऐतिहासिक विकृति के कारण बनते हैं- जैसा कि अनगिनत पूर्व की हिंदी फिल्मों में देखा गया. फिर भी मणिरत्नम का प्रयास सराहनीय है.
  • Blogs | केयूर पाठक एवं सी. सतीश |मंगलवार अप्रैल 18, 2023 09:32 PM IST
    छात्रों का उत्पीड़न उसके प्रारंभिक समय से ही शुरू हो जाता है. निजी स्कूलों की लूट से त्रस्त अभिभावक अपने बच्चों से अपनी लागत का परिणाम चाहता है. परिणाम न मिलने पर अपनी खीझ किसी न किसी रूप में बच्चों से भी निकालता है.
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