Blogs | प्रियदर्शन |बुधवार जुलाई 7, 2021 11:56 PM IST मृत्यु न जाने कब से- बरसों से या दशकों से- दिलीप कुमार के सिरहाने आ-आकर लौटती रही. वे जैसे किसी भीष्म पितामह की तरह अपनी कीर्ति के सूर्य के किसी उत्तरायण में जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे. या ऐसी किसी प्रतीक्षा का भी उनके लिए कोई अर्थ नहीं रह गया था. वह एक बीता हुआ युग थे जिसे उनकी भुरभुरी होती देह अपने साथ लिए चल रही थी. उनके निधन के साथ जैसे एक कौंध की तरह वह पूरा युग हमारी आंखों के सामने चला आया.