अपनी गैर हाजिरी में इससे अधिक कोई हाजिर क्या हो सकता है? कि आप उन्हें अलविदा कहते वक्त इस तरह से याद किये जा रहे हैं, जैसे वो लौट कर आए हों. एक देश जो हर वक्त हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत की तलवार पर चल रहा होता है. उस देश में ऐसा एक ही शख्स था, जो दिलीप कुमार भी था और यूसुफ खान भी. 1947 के विभाजन रेखा को वो जिस आसानी से पाट दिया करते थे. बहुत कम लोगों में वैसी कुबत होती है. उनका एक मकान “फूलों का शहर” पेशावर में आज भी है.