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This Article is From Sep 20, 2013

भारतीय कुश्ती के नए पोस्टर ब्वॉयज

विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतने वाले अमित और बजरंग

नई दिल्ली: भारतीय पहलवान हंगरी से इतिहास कायम कर वतन लौटे, तो एयरपोर्ट पर उनका जोरदार स्वागत हुआ। यह पहला मौका है, जब भारत के दो पुरुष पहलवानों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीते। इस सफलता के बाद कुश्ती के इतिहास में पहली बार भारतीय टीम को 2014 में होने वाले कुश्ती के वर्ल्ड कप में खेलने का मौका मिलेगा।

बुडापेस्ट में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक जीतने वाले अमित कुमार और बजरंग पुनिया भारतीय कुश्ती के नए पोस्टर ब्वॉयज हैं।
कुश्ती के जानकार कहते हैं कि वर्ल्ड चैंपियनशिप के इतिहास में भारत ने अब तक सिर्फ नौ पदक जीते हैं, जाहिर तौर पर इनकी कामयाबी बेहद अहम है।

महाबली सतपाल कहते हैं कि यह भारतीय कुश्ती की बहुत बड़ी कामयाबी है। उनका मानना है कि बीजिंग में सुशील कुमार की कामयाबी के बाद से ही न सिर्फ भारतीय पहलवानों का, बल्कि कुश्ती के कोचों का हौसला भी काफी बढ़ा है। अब उन्हें भी अंदाजा हो गया है कि क्या कुछ करने से ओलिंपिक या वर्ल्ड चैंपियनशिप में पदक की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।

वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत के लिए सिर्फ दूसरा रजत पदक जीतने वाले अमित कुमार से पहले बिशंभर सिंह ने 1967 में रजत जीता था। 19 साल के अमित कहते हैं, पहले हम ऐसे ही कुश्ती लड़ते थे, लेकिन अब इन बड़ी प्रतियोगिताओं में पदक जीतने के लक्ष्य के लिए लड़ते हैं। अमित गर्व से बताते हैं कि उनकी कुश्ती की कामयाबी के बाद एक अमेरिकी कोच ने उन्हें अमेरिका के क्लब के लिए खेलने का न्योता तक दे डाला।

कोच वीरेंद्र कुमार हंगरी में इन पहलवानों की ऐतिहासिक कामयाबी के गवाह रहे। वह गर्व से बताते हैं कि ईरान और अमेरिका के पहलवान अब भारतीय पहलवानों की तारीफ करने लगे हैं। हालांकि उनका यह भी कहना है कि सरकार या कॉरपोरेट सेक्टर एथलीटों की मदद तभी करते हैं, जब उन्हें कामयाबी हासिल हो जाती है। अगर पहले से एथलीटों को मदद मिले, तो ये और बेहतर नतीजे देंगे।

कोच रामफल बताते हैं कि अमित कुमार को हाल में जाकर ओएनजीसी में पक्की नौकरी मिली है, जबकि बजरंग पुनिया के पास कोई नौकरी नहीं है और उनके परिवार की आर्थिक हालत भी अच्छी नहीं है। कुश्ती के द्रोणाचार्य कोच रामफल कहते हैं कि जिन परिवारों से बच्चे यहां तक पहुंचे हैं, यही अपने आप में बड़ी कामयाबी है। वह कहते हैं कि बगैर किसी नौकरी या कमाई के बेहतर जरिये के बावजूद इनके परिवार वाले लगातार मेहनत करते हैं, ताकि ये कामयाबी हासिल कर सकें। इनके परिवार के लोगों को दाद देनी होगी।

विजेताओं के ढोल−नगाड़ों से स्वागत के बीच अरुण कुमार, जितेंद्र और पवन जैसे युवा और प्रतिभाशाली पहलवानों पर शायद ही किसी की नजर गई, जो पदक पाने से किसी तरह चूक गए। ये विजेता चार बजे सुबह लौटने के बावजूद सात बजे सुबह तक अखाड़ों में उतर गए। कोच रामफल उनसे उनकी गलतियों के बारे में बात करते हुए उनका हौसला बढ़ाते हैं। रामफल यह भी कहते हैं कि कुश्ती की बेंच स्ट्रेंथ तो बढ़ी है, लेकिन कुश्ती बहुत हद तक उत्तर भारत और दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में सिमटती जा रही है। सरकार को इस तरह के और भी सेंटर खोलने की ज़रूरत है।

यही नहीं, रामफल और वीरेंद्र कुमार जैसे कोच मानते हैं कि इन खिलाड़ियों को और ज्यादा एक्सपोजर की ज़रूरत है। इनके मुताबिक जितने ज्यादा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट होंगे, खिलाड़ियों को उतना ज्यादा फायदा होगा। 66 किलोग्राम वर्ग में सुशील की जगह अरुण कुमार ने इस वर्ल्ड चैंपियनशिप में टीम की नुमाइंदगी की।

अरुण कहते हैं कि सीनियर स्तर पर भारत से बाहर यह मेरा पहला टूर्नामेंट था, लेकिन मुझे अंदाजा होने लगा है कि दुनिया के दूसरे पहलवानों में कितना दम है। अगर और कंपीटिशन मिले, तो मेरा और दूसरे पहलवानों का प्रदर्शन भी और बेहतर होगा। इतना जरूर है कि कुश्ती हाल के दिनों में सबसे कामयाब भारतीय स्पोर्ट के तौर पर तेजी से आगे आ रही है, लेकिन इसके नतीजे की तरह इसकी सुविधाओं की रफ्तार नहीं बढ़ रही है।

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