पूर्व भारतीय कप्तान धनराज पिल्लै लंदन ओलिंपिक में भारतीय टीम के लचर प्रदर्शन के बाद अब भारतीय हॉकी पर बात करने के इच्छुक नहीं हैं और उन्होंने विदेशी कोचों को नियुक्त करने के औचित्य पर भी सवाल उठाए।
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कोलकाता:
पूर्व भारतीय कप्तान धनराज पिल्लै लंदन ओलिंपिक में भारतीय टीम के लचर प्रदर्शन के बाद अब भारतीय हॉकी पर बात करने के इच्छुक नहीं हैं और उन्होंने विदेशी कोचों को नियुक्त करने के औचित्य पर भी सवाल उठाए।
पिल्लै ने कहा, ‘‘मुझसे भारतीय हाकी के बारे में कुछ मत पूछो। 12 टीमों में 12वें स्थान पर रहना। अब इससे बुरा कुछ हो सकता है क्या।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ओलिंपिक तक हमने अपना मुंह बंद रखा था लेकिन अब क्या। यह हैरानी भरा है कि कोई भी इस लचर प्रदर्शन के बारे में बात नहीं कर रहा और रियो 2016 में पदक जीतने की सोच रहे हैं।’’
चार बार के ओलिंपियन पिल्लै ने कहा, ‘(लंदन में जो हुआ उसके बाद) सबसे पहले सुधारवादी कदम उठाए जाएं और फिर रियो के बारे में बात की जाए। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है।’’ ओलिंपिक के बाद भारत ने पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और वह ऑस्ट्रेलिया में सुपर सीरीज और फिर इसके बाद चैम्पियन्स ट्रॉफी में खेलेगा।
पिल्लै को हालांकि भारतीय कोच माइकल नोब्स को लेकर कड़ी आपत्ति है। यहां तक कि वह किसी भी विदेशी कोच के खिलाफ हैं।
पिल्लै ने कहा, ‘‘भारतीय हाकी विदेशी कोच के मार्गदर्शन में आगे नहीं बढ़ सकती। दोनों की संस्कृति में बड़ा अंतर है जिससे संवादहीनता की स्थिति पैदा होती है। मुझे समझ नहीं आता कि लंदन में खराब प्रदर्शन के बावजूद भारी भरकम वेतन के साथ कोच के अनुबंध को आगे बढ़ाने का फैसला क्यों किया गया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आपको खिलाड़ियों के नजरिए से कोचों को लाना होगा और एक विदेशी कोच भारत के अनुकूल नहीं है।’’ पिल्लै ने इससे पहले प्रशासन में शामिल होने तथा हॉकी इंडिया और भारतीय हॉकी महासंघ के विवाद को सुलझाने की इच्छा जताई थी।
इस पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि हाकी इंडिया अगर भारतीय हॉकी का सिरमौर रहता है तो अगले पांच साल में प्रदर्शन में सुधार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि खेल मंत्री हॉकी इंडिया और आईएचएफ दोनों को भंग करे और एक एकीकृत संस्था का गठन करें जिसमें खिलाड़ी शामिल हों।
पिल्लै ने कहा, ‘‘मुझसे भारतीय हाकी के बारे में कुछ मत पूछो। 12 टीमों में 12वें स्थान पर रहना। अब इससे बुरा कुछ हो सकता है क्या।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ओलिंपिक तक हमने अपना मुंह बंद रखा था लेकिन अब क्या। यह हैरानी भरा है कि कोई भी इस लचर प्रदर्शन के बारे में बात नहीं कर रहा और रियो 2016 में पदक जीतने की सोच रहे हैं।’’
चार बार के ओलिंपियन पिल्लै ने कहा, ‘(लंदन में जो हुआ उसके बाद) सबसे पहले सुधारवादी कदम उठाए जाएं और फिर रियो के बारे में बात की जाए। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है।’’ ओलिंपिक के बाद भारत ने पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और वह ऑस्ट्रेलिया में सुपर सीरीज और फिर इसके बाद चैम्पियन्स ट्रॉफी में खेलेगा।
पिल्लै को हालांकि भारतीय कोच माइकल नोब्स को लेकर कड़ी आपत्ति है। यहां तक कि वह किसी भी विदेशी कोच के खिलाफ हैं।
पिल्लै ने कहा, ‘‘भारतीय हाकी विदेशी कोच के मार्गदर्शन में आगे नहीं बढ़ सकती। दोनों की संस्कृति में बड़ा अंतर है जिससे संवादहीनता की स्थिति पैदा होती है। मुझे समझ नहीं आता कि लंदन में खराब प्रदर्शन के बावजूद भारी भरकम वेतन के साथ कोच के अनुबंध को आगे बढ़ाने का फैसला क्यों किया गया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आपको खिलाड़ियों के नजरिए से कोचों को लाना होगा और एक विदेशी कोच भारत के अनुकूल नहीं है।’’ पिल्लै ने इससे पहले प्रशासन में शामिल होने तथा हॉकी इंडिया और भारतीय हॉकी महासंघ के विवाद को सुलझाने की इच्छा जताई थी।
इस पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि हाकी इंडिया अगर भारतीय हॉकी का सिरमौर रहता है तो अगले पांच साल में प्रदर्शन में सुधार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि खेल मंत्री हॉकी इंडिया और आईएचएफ दोनों को भंग करे और एक एकीकृत संस्था का गठन करें जिसमें खिलाड़ी शामिल हों।
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