विधानसभा के बाहर उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत
नई दिल्ली:
उत्तराखंड में राजनीतिक ड्रामे का पटाक्षेप कांग्रेस के विधायकों के दावे और बीजेपी विधायकों के मायूस चेहरों से साफ होता दिख रहा है कि ऊंट किस करवट बैठा है। इसी के साथ राज्य में मिली इस 'फिलहाल अघोषित' जीत से राज्य के बाहर राजनीति के केंद्र यानी दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने राज्य के लिए रणनीति तैयार कर ली है।
साफ छवि वाले नेता बनेंगे मंत्री
दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ सूत्र बता रहे हैं कि अब राज्य में सरकार गठन के समय पार्टी साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करेगी।
कुछ महीने चलेगी सरकार, फिर होगी विधानसभा भंग
सूत्र बता रहे हैं कि कुछ महीने सरकार चलाई जाएगी और जैसा की हाल में हरीश रावत ने 12 घंटे के मुख्यमंत्रित्व काल में लोकलुभावन घोषणाएं की और लोगों का दिल जीता वैसा ही फिर एक बार किया जाएगा और लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया जाएगा। और जैसे ही माहौल अपने पक्ष में बनाने में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह कामयाब हो जाएगी वैसी हरीश रावत खुद राज्य में विधानसभा भंग करने की राज्यपाल को सिफारिश कर देंगे और पार्टी चुनाव में जाएगी।
स्टिंग के दंश से कुछ यूं बच निकलना चाहती है कांग्रेस
पार्टी के वरिष्ठ सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी विधानसभा भंग करने की सिफारिश इसलिए भी करना चाहेगी, क्योंकि हरीश रावत विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाने वाली स्टिंग का दंश झेल रहे हैं। इस विधानसभा के भंग होते ही स्टिंग मामले से इन्हें बचाने का रास्ता भी निकल आएगा।
केंद्र करता रहेगा परेशान
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जब तक इस विधानसभा के तहत सरकार में रहेंगे तो जांच के बहाने केंद्र सरकार सीबीआई के जरिए परेशान करती रहेगी। उन्हें बार-बार बुलाया जाता रहेगा और पार्टी की छवि के सीधा नुकसान होगा।
पीडीएफ और बीएसपी के समर्थन से पार्टी गदगद
पार्टी के सूत्रों की मानें तो जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंगलवार को हुए शक्तिपरीक्षण में पीडीएफ और बीएसपी के विधायकों ने जैसा साथ दिया है उससे पार्टी काफी खुश है। पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि अगले चुनाव में भी इनका साथ रहे।
बिहार की तरह महागठबंधन की तैयारी
सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी अब बिहार चुनाव की तरह यहां पर भी महागठबंधन बनाएगी और उत्तराखंड में भी बिहार विधानसभा की कामयाबी को दोहराएगी।
बीजेपी के सामने यह मुश्किल
जल्द चुनाव के पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि अगर कांग्रेस के 9 बागी विधायक बीजेपी में जाते हैं तो बीजेपी को टिकट देने में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे में बीजेपी को असंतुष्टों का सामना करना पड़ेगा।
हरीश रावत यूं बने सबसे बड़े नेता
जबकि कांग्रेस को 9 नए चेहरे ढूंढने होंगे। ऐसे में हरीश रावत के लिए एक सुनहरा मौका है कि उनके जितने भी कट्टर विरोधी थे अब वह पार्टी से निकल गए हैं। इसी के साथ हरीश रावत के विरोधी हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा के खेमों से उन्हें मुक्ति मिल गई है।
अब उत्तराखंड में हरीश रावत कांग्रेस के एक मात्र बड़े नेता बचे हैं। और आलाकमान इस बात को अच्छी तरह समझता है और कांग्रेस आलाकमान नेता बदलने की किसी बात से साफ इनकार कर रहे हैं।
बीजेपी यूं फंस गई अपने जाल में
बता दें कि राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लगाए रखने के लिए केंद्र सरकार को लोकसभा और राज्यसभा से इससे संबंधित प्रस्ताव को 13 मई से पास कराना पड़ेगा। ऐसे में जब राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है तब इसके पास होने में दिक्कत आएगी और केंद्र को फजीहत का सामना करना होगा।
बीजेपी को याद आई अटल सरकार की गलती
उल्लेखनीय है कि केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का समय था और उसी समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी और तब आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली में विधायकों की परेड कराई थी। तब भी बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था और सरकार ने शर्मींदगी से बचने के लिए अपना निर्णय वापस ले लिया था। फिर राबड़ी देवी की सरकार बहाल हुई थी।
साफ छवि वाले नेता बनेंगे मंत्री
दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ सूत्र बता रहे हैं कि अब राज्य में सरकार गठन के समय पार्टी साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करेगी।
कुछ महीने चलेगी सरकार, फिर होगी विधानसभा भंग
सूत्र बता रहे हैं कि कुछ महीने सरकार चलाई जाएगी और जैसा की हाल में हरीश रावत ने 12 घंटे के मुख्यमंत्रित्व काल में लोकलुभावन घोषणाएं की और लोगों का दिल जीता वैसा ही फिर एक बार किया जाएगा और लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया जाएगा। और जैसे ही माहौल अपने पक्ष में बनाने में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह कामयाब हो जाएगी वैसी हरीश रावत खुद राज्य में विधानसभा भंग करने की राज्यपाल को सिफारिश कर देंगे और पार्टी चुनाव में जाएगी।
स्टिंग के दंश से कुछ यूं बच निकलना चाहती है कांग्रेस
पार्टी के वरिष्ठ सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी विधानसभा भंग करने की सिफारिश इसलिए भी करना चाहेगी, क्योंकि हरीश रावत विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाने वाली स्टिंग का दंश झेल रहे हैं। इस विधानसभा के भंग होते ही स्टिंग मामले से इन्हें बचाने का रास्ता भी निकल आएगा।
केंद्र करता रहेगा परेशान
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जब तक इस विधानसभा के तहत सरकार में रहेंगे तो जांच के बहाने केंद्र सरकार सीबीआई के जरिए परेशान करती रहेगी। उन्हें बार-बार बुलाया जाता रहेगा और पार्टी की छवि के सीधा नुकसान होगा।
पीडीएफ और बीएसपी के समर्थन से पार्टी गदगद
पार्टी के सूत्रों की मानें तो जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंगलवार को हुए शक्तिपरीक्षण में पीडीएफ और बीएसपी के विधायकों ने जैसा साथ दिया है उससे पार्टी काफी खुश है। पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि अगले चुनाव में भी इनका साथ रहे।
बिहार की तरह महागठबंधन की तैयारी
सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी अब बिहार चुनाव की तरह यहां पर भी महागठबंधन बनाएगी और उत्तराखंड में भी बिहार विधानसभा की कामयाबी को दोहराएगी।
बीजेपी के सामने यह मुश्किल
जल्द चुनाव के पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि अगर कांग्रेस के 9 बागी विधायक बीजेपी में जाते हैं तो बीजेपी को टिकट देने में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे में बीजेपी को असंतुष्टों का सामना करना पड़ेगा।
हरीश रावत यूं बने सबसे बड़े नेता
जबकि कांग्रेस को 9 नए चेहरे ढूंढने होंगे। ऐसे में हरीश रावत के लिए एक सुनहरा मौका है कि उनके जितने भी कट्टर विरोधी थे अब वह पार्टी से निकल गए हैं। इसी के साथ हरीश रावत के विरोधी हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा के खेमों से उन्हें मुक्ति मिल गई है।
अब उत्तराखंड में हरीश रावत कांग्रेस के एक मात्र बड़े नेता बचे हैं। और आलाकमान इस बात को अच्छी तरह समझता है और कांग्रेस आलाकमान नेता बदलने की किसी बात से साफ इनकार कर रहे हैं।
बीजेपी यूं फंस गई अपने जाल में
बता दें कि राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लगाए रखने के लिए केंद्र सरकार को लोकसभा और राज्यसभा से इससे संबंधित प्रस्ताव को 13 मई से पास कराना पड़ेगा। ऐसे में जब राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है तब इसके पास होने में दिक्कत आएगी और केंद्र को फजीहत का सामना करना होगा।
बीजेपी को याद आई अटल सरकार की गलती
उल्लेखनीय है कि केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का समय था और उसी समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी और तब आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली में विधायकों की परेड कराई थी। तब भी बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था और सरकार ने शर्मींदगी से बचने के लिए अपना निर्णय वापस ले लिया था। फिर राबड़ी देवी की सरकार बहाल हुई थी।
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