
Vece Paes Win Bronze Medal: मेजर ध्यनचंद के बेटे और पूर्व भारतीय कप्तान अशोक कुमार 1972 की म्यूनिख ओलिंपिक्स में डॉ. वेस पेस के साथ टीम इंडिया का हिस्सा थे. डॉ. पेस सेंटर हाफ में और अशोक कुमार फॉरवर्ड लाइन पर. अशोक कुमार की रफ्तार डॉ. पेस की फीड की गई गेंदों पर निर्भर करती थी.
'हॉकी का संत'
अशोक कुमार कहते हैं, "अचानक आई इस ख़बर ने हिला दिया है. बहुत दुखी हूं. मेरे लिए तो वो फील्ड और बाहर भी बड़े सपोर्टर थे. वो विश्व विजेता कप्तान अजीत पाल सिंह जितने ही टैलेंटेड थे. बस उन्हें प्लेइंग इलेवन में उतना मौका नहीं मिल पाया. वो बहुत जॉली नेचर के थे. वो हॉकी के संत थे. अच्छी बातें करते थे. और सबकी मदद करते थे." अशोक कुमार बताते हैं कि दो साल पहले उनकी डॉ. पेस से कोलकाता के ही एक फंक्शन में मुलाक़ात हुई. तब पेस साहब को संभवत: पार्किन्संस की शिकायत हो गई थी.
म्यूनिख ओलिंपिक्स के साथ कई ट्रॉफी जीती
अशोक बताते हैं कि उन्हें देखते ही यादों का कारवां गुज़र गया. वो कहते हैं, "म्यूनिख के अलावा भी हमने कई ट्रॉफियां एक साथ जीतीं. 1969 में मैंने मोहन बागान में डेब्यू किया था. पेस साहब मेरे सपोर्टर और सीनियर थे. हमने एक साथ तीन बार बेइटन कप के खिताब (1969, 1970, 1971) जीते. इसके अलावा कलकत्ता लीग की ट्रॉफी 1969, 1970 और 1971 में जीती. गोल्ड कप मुंबई में भी 1969 और 1971 में उपविजेता रहे जबकि 1970 के खिताब के चैंपियन रहे."
'दुनिया के बेहतरीन सेंटर हाफ़'
1975 वर्ल्ड चैंपियन टीम के सेमीफाइनल में गोल कर भारत को फाइनल में पहुंचाने वाले असलम शेर ख़ान कहते हैं, "वेस पेस साहब दुनिया के बेहतरीन सेंटर हाफ़ थे. वो अजीत पाल जी से कम टैलेंटेड नहीं थे. तब ग्रास की 90 मिनट की हॉकी में पेस साहब को अजीत पाल की वजह से सेंटर हाफ़ में कई बार जगह नहीं मिल पाई. तब आज जैसे सब्स्टूट्यूशन के नियम भी नहीं थे. लेकिन एक पढ़े-लिखे डॉक्टर के होने का टीम पर अलग असर तो था ही."
कमाल का सेंस ऑफ़ ह्यूमर
वेस पेस साहब से इस संवाददाता, विमल मोहन, की भी ख़ासकर ओलिंपिक्स में कई बार मुलाक़ात हुई. तब पेस साहब टीम इंडिया के डॉक्टर के तौर पर दल का हिस्सा होते थे. सब समझते पर कभी किसी पॉलिटिक्स में नहीं पड़ते. कमाल का सेंस ऑफ़ ह्यूमर था और बेहद ही शानदार और हंसमुख इंसान के तौर पर ही याद किए जाएंगे.
एक घर में कई ओलिंपियन, कई चैंपियन
खुद की अनूठी कामयाबियों के साथ पूर्व ओलिंपियन और भारतीय बास्केटबॉल खिलाड़ी जेनिफर पेस के पति और ओलिंपिक पदक विजेता लिएंडर पेस के पिता होने का कोई गुमां उनके चेहरे पर कभी नहीं दिखा. 80 साल की उम्र में एक बेहद समृद्ध खेल विरासत छोड़कर और यादों का कारवां लेकर डॉ. पेस दूसरी दुनिया के हो गए.
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