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छह बार के भारतीय स्क्वैश चैंपियन और अर्जुन पुरस्कार विजेता ब्रिगेडियर राज मनचंदा का निधन

Brigadier Raj Manchanda passed away, स्क्वैश चैंपियन  ब्रिगेडियर राज मनचंदा छह बार के भारतीय स्क्वैश चैंपियन और अर्जुन पुरस्कार विजेता भी रहे थे.

छह बार के भारतीय स्क्वैश चैंपियन और अर्जुन पुरस्कार विजेता ब्रिगेडियर राज मनचंदा का निधन
Brigadier Raj Manchanda passed away

Brigadier Raj Manchanda passed away: पूर्व भारतीय स्क्वैश चैंपियन  ब्रिगेडियर राज मनचंदा का निधन एक दिसंबर 2024 को दोपहर 2:25 बजे आर एंड आर अस्पताल, दिल्ली में हुआ. वो छह बार के भारतीय स्क्वैश चैंपियन और अर्जुन पुरस्कार विजेता भी रहे थे. उन्हें "ओल्ड फॉक्स" उपनाम दिया गया था और भारतीय स्क्वैश के लिए वे वही थे जो ब्योर्न बोर्ग अंतर्राष्ट्रीय टेनिस में थे. वे 1977 और 1982 के बीच लगातार छह बार राष्ट्रीय चैंपियन रहे. उनका अंतिम संस्कार सोमवार को दो दिसंबर को शाम 4:00 बजे, दिल्ली छावनी, दिल्ली के बरार स्क्वायर में किया गया. 

"ओल्ड फॉक्स" के नाम से जाने जाते थे. 
उन्हें "ओल्ड फॉक्स" उपनाम दिया गया था और भारतीय स्क्वैश के लिए वे वही थे जो ब्योर्न बोर्ग अंतर्राष्ट्रीय टेनिस के लिए "ए मशीन" थे, वे 1977 और 1982 के बीच लगातार छह बार राष्ट्रीय चैंपियन रहे. साल 1978 में राष्ट्रीय खिताब ने उन्हें बहुत ज़रूरी बढ़ावा दिया था और वे ऑस्ट्रेलिया में 1979 की विश्व एमेच्योर स्क्वैश चैम्पियनशिप के लिए भारतीय टीम का नेतृत्व किया था.  दो साल बाद, एशियाई चैंपियनशिप में, उनका सामना जहांगीर खान से हुआ, जो 80 के दशक में विश्व परिदृश्य पर हावी होने वाले सबसे प्रभावशाली खिलाड़ी थी.  हालांकि राज मनचंदा खान से हार गए, लेकिन बाद में कराची में एक टूर्नामेंट में दुनिया के तीसरे नंबर के खिलाड़ी हिड्डी जहान को हराकर एक बड़ा झटका दिया था. 

हालांकि भारत कभी भी स्क्वैश रैकेट में बड़ा शक्ति नहीं थी लकिन राज मनचंदा ने खुद देश का प्रतिनिधित्व करते हुए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया. वे कई मौकों पर भारतीय टीम के कप्तान रहे, जिसमें वह समय भी शामिल है जब भारत ने 1981 में कराची में एशियाई चैंपियनशिप में भारत ने रजत पदक जीता था.

उनका सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन 1984 में जॉर्डन में एशियाई चैंपियनशिप में चौथा स्थान था, जहां उनके नेतृत्व में टीम ने कांस्य पदक जीता था. साल 1981 में जब राष्ट्रीय टीम चैंपियनशिप, अंतरराज्यीय प्रतियोगिता शुरू हुई, तब से लेकर 1992 तक जब उन्होंने आखिरी बार भाग लिया, उन्होंने 11 में से 9 बार टीम को जीत दिलाई, कई बार असंभव बाधाओं के बावजूद जैसे कि 1988-89 में जब देश के 3 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एक विरोधी टीम से थे और फिर भी टीम जीत गई थी. 

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