
- अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में आदिवासी समुदाय ने पारंपरिक परिधान में धर्मांतरण विरोधी रैली निकाली
- इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश ने 1978 के APFRA कानून को लागू करने की मांग की
- APFRA कानून धर्मांतरण रोकने के लिए बनाया गया है और राज्य की स्वदेशी आस्थाओं को संरक्षित करता है
अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में रविवार को हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने पारंपरिक परिधान में एक शांतिपूर्ण रैली निकाली. इस रैली का आयोजन इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (IFCSAP) द्वारा किया गया, जिसमें राज्य के 27 जिलों के 26 प्रमुख जनजातियों और 100 उप-जनजातियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. रैली का मकसद 1978 में पारित अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (APFRA) को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग करना था.
क्यों किया गया रैली का आयोजन
रैली में धर्मांतरण विरोधी अधिनियम (एपीएफआरए), 1978 को लागू करने की मांग की गई, जिसका ईसाई कड़ा विरोध करते हैं. ईसाई धर्म के प्रसार के कारण अल्पसंख्यक बन रहे अरुणाचल के मूल निवासी डोनयी पोलो की पूजा करते हैं, जहां डोनयी का अर्थ सूर्य और पोलो का अर्थ चंद्रमा होता है. आईएफसीएसएपी स्वदेशी आस्था एवं सांस्कृतिक सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश की अध्यक्ष डॉ. एमी रूमी ने कहा कि मूल निवासियों ने राज्य की स्वदेशी आस्था और परंपरा को बचाने के लिए अरुणाचल धर्म स्वतंत्रता अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग को लेकर यह रैली आयोजित की.
आज तक लागू नहीं हुआ कानून
अरुणाचल प्रदेश में एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट (APFRA), 1978 को लेकर बहस तेज हो गई है. आदिवासी समाज की संस्था इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (IFCSAP) ने कानून को लागू करने की मांग करते हुए कहा है कि यह कानून राज्य विधानसभा के पहले सत्र के चार महीने के भीतर पारित हुआ था, लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया गया.
धर्म परिवर्तन को लेकर चिंता
IFCSAP के अध्यक्ष डॉ. एमी रूमी ने कहा, “इस कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी भी जल्दी मिल गई थी, लेकिन इसके बाद की सरकारों ने केवल दिखावे की सहानुभूति दिखाई. अगर इसे लागू किया जाता है तो हम अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक रीति-रिवाजों को संरक्षित कर सकेंगे.” संस्था के सदस्यों ने चिंता जताई कि राज्य में आदिवासी लोग तेजी से अन्य धर्मों में परिवर्तित हो रहे हैं और अगर APFRA को लागू नहीं किया गया तो पारंपरिक आस्थाएं विलुप्त होती चली जाएंगी.
ईसाई समुदाय का विरोध
इस कानून को लेकर ईसाई समुदाय ने विरोध जताया है. अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम (ACF) ने 17 फरवरी 2025 को ईटानगर में आठ घंटे की भूख हड़ताल की थी, जिसमें कुछ विधायक भी शामिल हुए थे. ACF के अध्यक्ष तारह मिरी ने कहा, “यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और केवल ईसाई धर्म को निशाना बनाता है. अगर इसे लागू किया गया तो समाज में नफरत फैलेगी.”
हाईकोर्ट का निर्देश और सरकार की स्थिति
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने पहले कहा था कि गुवाहाटी हाईकोर्ट के निर्देश के चलते सरकार को कानून लागू करना जरूरी हो गया है. सितंबर 2024 में कोर्ट ने राज्य सरकार को छह महीने के भीतर कानून के ड्राफ्ट नियमों को अंतिम रूप देने का आदेश दिया था.
रैली में उठे तीखे स्वर
रैली के मुख्य वक्ता और अधिवक्ता एस.डी. लोड़ा ने कहा, “हम नहीं चाहते कि अरुणाचल मिजोरम या नागालैंड जैसा बने, जहां सभी लोग एक विदेशी धर्म में परिवर्तित हो गए और उनकी मूल पहचान खत्म हो गई.” वहीं प्रोफेसर डॉ. नानी बाथ ने कहा, “यह कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह आदिवासी आस्थाओं को बाहरी प्रभावों से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच है.”
क्या है APFRA 1978
APFRA कानून जबरन, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए बनाया गया था. इसके तहत किसी भी धर्म परिवर्तन की सूचना देना अनिवार्य है. यह कानून राज्य की पारंपरिक आस्थाओं जैसे डोनी-पोलो, बौद्ध धर्म और वैष्णव परंपरा को संरक्षण देने का दावा करता है. हालांकि, राज्य में बड़ी ईसाई आबादी इस कानून के खिलाफ है और इसे अपने धार्मिक अधिकारों पर हमला मानती है. अब देखना यह है कि सरकार हाईकोर्ट के निर्देश के अनुसार इस कानून को लागू करती है या विरोध के चलते कोई नया रास्ता अपनाती है.
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