कोरोना काल में किसान ने पहले उगी फसल बेचने के लिए संघर्ष किया, अब मध्यप्रदेश में उसे बोवनी के बाद यूरिया के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. सोसायटी के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं, कई जगहों पर थाने से यूरिया बांटा जा रहा है जबकि निजी दुकानों में दोगुने दामों पर यूरिया आसानी से मिल रहा है.
छिन्दवाड़ा में सारंगबिहरी सोसायटी हो नवेगांव, चौराई या अमरवाड़ा यूरिया के लिए हर जगह किसान परेशान है. कहीं ट्रक के पास लंबी लाइन है, तो कहीं थाने में हंगामे के डर से थाने में यूरिया का वितरण हो रहा है.
छिन्दवाड़ा में सारंगबिहरी सोसायटी हो नवेगांव, चौराई या अमरवाड़ा यूरिया के लिये हर जगह किसान परेशान है,कहीं ट्रक के पास लंबी लाइन है,तो कहीं थाने में हंगामे के डर से थाने में यूरिया का वितरण हो रहा है @ndtvindia @KedarSirohi pic.twitter.com/32gEGs3I0W
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) July 22, 2020
खरीफ के सीजन में जिले में 1 लाख 63 हजार 550 मीट्रिक टन खाद, यूरिया व उर्वरक की आवश्यकता है, प्रशासन का कहना है 87 हजार मीट्रिक टन मिल चुका है, जो पिछले साल से 5000 मीट्रिक टन ज्यादा है लेकिन किसान कह रहे हैं - सबको यूरिया मिलना चाहिए, नकद वाले भी किसान हैं, परमिट वाले भी ... 2-3 बोरी नकद में भी दी जाए परमिट वाले को भी. यहां कोई यूरिया नहीं है यहां पर गोदाम में 15 ट्रक खाद रखी है किसान को नहीं मिल रहा है.
बड़वानी में तो यूरिया के खिलाफ नाराज़गी का नेतृत्व भारतीय किसान संघ ने किया, वेयर हाउस के बाहर धरने पर भी बैठे, नाराजगी भी जताई. आरोप है कि सोसायटी में 266 रु में मिलने वाला यूरिया, बाजार में 550 रु में मिल रहा है, 311 रु. का सुपर 400 में 775 रु का पोटास 900 रु में, 1150 रु का डीएपी, 1250 रु का.
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किसान संघ के नेता ब्रज मोहन शर्मा ने कहा हमारी यही मांग है जो किसान नकद में खाद लेना चाह रहा है वो दिया जाए, मार्केट में बहुत महंगा मिल रहा है 500-550 तक व्यापारी माल बेच रहे हैं.
खरगोन जिले में महिलाएं भी घर छोड़कर यूरिया के लिये लाइन में खड़ी हैं, लोग घंटों इंतज़ार कर रहे हैं, कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों ने बताया जिले में 63,407 मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता थी, कुछ दिनों पहले तक 34,632 मीट्रिक टन ही मिल पाया था.
खरगौन जिले में महिलाएं भी घर छोड़कर यूरिया के लिये लाइन में खड़ी हैं, लोग घंटों इंतज़ार कर रहे हैं, कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों ने बताया,.जिले में 63,407 मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता थी, कुछ दिनों पहले तक 34,632 मीट्रिक टन ही मिल पाया था pic.twitter.com/zzWRyibVBc
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सरकार ने वैसे स्वीकारा है कि मक्का, कपास, धान के बेल्ट में यूरिया की मांग ज्यादा है, वहीं विपक्ष का आरोप है सरकार को किसानों की कोई फिक्र नहीं है. कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा 30 प्रतिशत अधिक यूरिया 50 प्रतिशत अधिक डीएपी की व्यवस्था की है, कुछ जिले जहां मक्का, धान, कपास है वहां डिमांड ज्यादा है वहां 1,20,000 टन की डिमांड आई है, हमने डेढ़ लाख टन डिमांड की है मैंने खुद ने गौड़ा जी से बात की, मुख्यमंत्री जी ने भी बात की है 43,000 टन मिल गया है उम्मीद है एक लाख टन जल्दी मिल जाएगा.
सरकार ने स्वीकारा है कि मक्का, कपास, धान के बेल्ट में यूरिया की मांग ज्यादा है, इस साल 13 जुलाई तक खरीफ सीजन में 10.26 लाख मीट्रिक टन यूरिया का वितरण किया गया है,जो पिछले साल से 3.03 लाख मीट्रिक टन अधिक है @KamalPatelBJP pic.twitter.com/wTrfMH5Fby
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वहीं कांग्रेस नेता पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव ने आरोप लगाया किसान साथी को दर दर यूरिया के लिये भटकना पड़ रहा है, सहकारी सोसायटी में खाद नहीं मिल रही है लेकिन कालाबाजारी बड़े पैमाने पर हो रही है ... बड़े बड़े व्यापारी बीजेपी के साथ सांठ गांठ करके 400-500 रु बोरी में खाद बेची जा रही है सरकार को उनकी चिंता नहीं है विधायक खरीदने में व्यस्त है.
कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केन्द्रीय रसायन और उवर्रक मंत्री सदानंद गौड़ा से मिलकर आए़, सरकार का कहना है कि इस साल 13 जुलाई तक खरीफ सीजन में, 10.26 लाख मीट्रिक टन यूरिया का वितरण किया गया है, जो पिछले साल से 3.03 लाख मीट्रिक टन अधिक है. केन्द्र ने जुलाई में राज्य को 2.06 लाख मीट्रिक टन यूरिया दिया है, अतिरिक्त डिमांड पर 11 हजार 400 मीट्रिक टन स्वदेशी और 31 हजार 764 मीट्रिक टन आयातित यूरिया मिलेगा.
कई जगहों पर यूरिया की कालाबाजारी पर कार्रवाई भी हुई है, अवैध भंडारण करने वालों के खिलाफ 14 एफआईआर दर्ज हुई है 9 मामलों में लाइसेंस रद्द किए गए, 23 मामलों में लाइसेंस सस्पेंड हुआ और 2 में उर्वरक भंडार जब्त कर लिया गया.
कुछ दिनों पहले पिपरिया में तीन ट्रक पकड़े गये, बताया गया कि इनका उपयोग साढ़े तीन एकड़ खेत में होगा. मध्यप्रदेश में कृषि विभाग में एक कैबिनेट मंत्री हैं, एक राज्य मंत्री, मुख्यमंत्री भी किसान पुत्र हैं समझते सब हैं कि वक्त पर यूरिया-डीएपी नहीं मिला तो उपज प्रभावित हो सकता है, फिर भी सरकार चाहे जिसकी हो, मंत्री चाहे जितने हों यूरिया की कालाबाजारी रूकती नहीं किसान परेशान होता रहता है.
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