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This Article is From Sep 04, 2020

NDTV की खबर का असर : सरकारी राशन में बंटे खराब चावलों पर PMO ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की

मध्यप्रदेश में आदिवासी बहुल मंडला और बालाघाट में सरकारी राशन में जो चावल बंटे वो भेड़ बकरियों के खाने लायक है. एनडीटीवी की इस खबर का बड़ा असर हुआ है.

Madhya Pradesh : एनडीटीवी की इस खबर का बड़ा असर हुआ, अधिकारियों पर कार्रवाई हुई

भोपाल:

मध्यप्रदेश में आदिवासी बहुल मंडला और बालाघाट में सरकारी राशन में जो चावल बंटे वो भेड़ बकरियों के खाने लायक है. एनडीटीवी की इस खबर का बड़ा असर हुआ है. अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है, प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा पूरे मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा करेगी.

1 सितंबर, मंगलवार एनडीटीवी ने खबर दिखाई कि कैसे मध्यप्रदेश में गरीबों को मुफ्त में मिल रहा ये चावल, भेड़-बकरियों के खाने लायक भी नहीं. ये बात केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कही. जिस रिपोर्ट की एक्सक्लूसिव कॉपी एनडीटीवी के पास थी, 2 सितंबर को राज्य सरकार ने बड़ी कार्रवाई की.

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बालाघाट-मंडला जिलों के चावल की गुणवत्ता कार्य के लिए जिम्मेवार गुणवत्ता नियंत्रकों की सेवाएं समाप्त कर दी गई, बालाघाट के जिला प्रबंधक आरके सोनी को निलंबित कर दिया गया, संबंधित मिलर्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की गई.

इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब कर ली है, कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि हमारी सरकार जागरूक है, आप जैसे जिम्मेदार चैनल के पत्रकार कोई बात उठाते हैं तो उसका संज्ञान में लेते हैं. तीन लोग सस्पेंड हुए हैं और सरकार यह भी सुनिश्चित करेंगी कि ऐसी घटनाओं कि कोई पुनरावृति ना हो.

मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि उपभोक्ताओं को गुणवत्ता विहीन चावल प्रदाय करने का मामला गंभीर है. इसकी ईओडब्ल्यू से जांच करवाई जाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि फरवरी माह में बालाघाट में मिलर्स से प्राप्त गुणवत्ता विहीन चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बांटने के मामले में पूर्व सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. यह गंभीर मामला है. इसमें विभिन्न स्तर पर सांठ-गांठ की भी आशंका है. इस मामले की जांच में जो तथ्य उजागर होंगे, दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी.

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बालाघाट और मंडला जिलों के निरीक्षण के बाद गोदामों से चावल का प्रदाय और परिवहन बंद किया गया है. मिलिंग नीति के अनुसार गुणवत्ताविहीन चावल के स्थान पर मानक गुणवत्ता का चावल प्राप्त किया जाएगा. भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर सहन नहीं किया जाएगा.

बालाघाट जिले के 3 गोदामों का निरीक्षण किया गया. इसमें 3136 मेट्रिक टन तथा मंडला जिले में 1658 मेट्रिक टन चावल निर्धारित मानकों का नहीं पाया गया. दोनों जिलों के निरीक्षण के बाद गोदामों से चावल का प्रदाय और परिवहन बंद किया गया है. कुल 51 संयुक्त दल गठित कर भंडारित चावल के एक हजार से अधिक सैम्पल लिए जा चुके हैं. इनमें से 284 की जांच प्रारंभ की गई है. भारतीय खाद्य निगम के स्थानीय कार्यालयों से मिली जानकारी के अनुसार 72 सैम्पल वितरण योग्य हैं, जबकि 57 सैम्पल मानकों के अनुरूप नहीं है.

प्रदेश में खरीफ विपणन वर्ष 2019-20 में नवम्बर 2019 से जनवरी 2020 तक 26.21 लाख मेट्रिक टन धान का उपार्जन किया गया. अगस्त 2020 तक मिलिंग के लिए 17.40 लाख मेट्रिक टन धान मिलर्स को दिया गया. इसमें से मिलर्स ने 16.51 लाख मेट्रिक टन धान की कस्टम मिलिंग कर 11.06 लाख मेट्रिक टन चावल कार्पोरेशन को दिया था. मिलर्स से कस्टम मिलिंग के बाद प्राप्त चावल के गुणवत्ता निरीक्षण के लिए 15 गुणवत्ता नियंत्रक संलग्न किए गए थे. इन्होंने 1318 स्टेकों का निरीक्षण किया था. जिसमें से 111 स्टेक निर्धारित गुणवत्ता के नहीं पाए गए. कस्टम मिलिंग नीति के अनुसार मिलर द्वारा कस्टम मिलिंग के बाद निम्न गुणवत्ता के चावल की मात्रा मिलर को वापस कर मानक गुणवत्ता का चावल प्राप्त किया जाता है.

वैसे बालाघाट, मंडला के मामलों में तो सरकार ने कार्रवाई कर दी, लेकिन कटनी जैसे जिलों में अभी भी पीडीएस के माध्यम से गरीबों को दिए जाने वाले चावल को खराब करने के सिस्टम का चल खुला खेल चल रहा है.

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कटनी के मझगवां स्थित स्टोरेज कैप में 5 लाख मीट्रिक टन धान बारिश में भीगकर खराब हो चुका है. इस धान को राइस मिलर्स कस्टम मिलिंग करेंगे फिर पीडीएस के माध्यम से गरीबों को वितरित किया जाता है, शासन के नियम के मुताबिक अधिकतम 3 महीने तक ही धान रख सकते है लेकिन यहां पर 6 से 8 महीने तक रखा धान खराब हो जाता है. उठाव और बारदाना मुहैया कराने की जिम्मेदारी नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों की है. धान भंडारण की सुरक्षा और जिम्मेदारी मार्कफेड विपणन संघ की है. इस झोल में उलझाकर सड़े अनाज को शराब कंपनियों को बेचा जाता है या गरीबों की थाल में.

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