भोपाल:
मध्य प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है, सरकार ज्योतिषि बनाने को आमादा है लेकिन बच्चे स्कूल में ज्यामिति नहीं पढ़ पा रहे. महानगरों में बच्चे सांप-मेंढक लैब में देखते होंगे लेकिन प्रदेश के हज़ारों स्कूल में वो जीव विज्ञान का प्रयोग खुले में करने को मजबूर हैं. आलम ये है कि मध्यप्रदेश में लगभग 50,000 शिक्षकों की कमी है. शाजापुर के उकावता में 2005 में स्कूल बना, 12 साल में इमारत की ये हालत कि छत टपकने लगी, ज़मीन धंस गई, नींव दरक रही है. एक कंप्यूटर लैब जो सालों से बंद है, कंप्यूटर बीआरसी विभाग ले गया है. एक बिल्डिंग में यहां हाईस्कूल भी है, मिडिल स्कूल भी. हाई स्कूल में 65 बच्चे हैं, जिन्हें सारे विषय दो शिक्षक पढ़ाते हैं. यहां पढ़ा रहे शिक्षक के एन महावर ने बताया, 'मैं यहां 2011 से हूं, मैंने कभी कंप्यूटर नहीं देखा. यहीं छठी, सातवीं, आठवीं में 118 बच्चे हैं, दो शिक्षक उन्हें पढ़ाते हैं, फिलहाल एक छुट्टी पर हैं.' यहां कार्यरत आमना सुल्तान ने बताया, 'मैं यहां उर्दू पढ़ाती हूं, विषय के टीचर नहीं हैं. मुझे हिन्दी अंग्रेजी भी पढ़ाना पड़ता है. गेस्ट शिक्षकों की योजना नहीं है, बिजली नहीं है इसलिये कंप्यूटर नहीं चलते.
उकावता से ही 20 किलोमीटर दूर है पनवाड़ी. यहां कैंपस में प्राइमरी, मिडिल, हाई स्कूल सबकुछ है. वैसे कन्या विद्यालय को दस साल पहले इमारत मिली थी. मौजूदा स्कूल के 500 मीटर दूर बोर्ड अभी भी टंगा है. यहां से आर्यभट्ट, कल्पना चावला बनाने की योजना थी. लेकिन दस साल से इसमें अस्पताल चलता है, नवीं की बच्चियां पुराने स्कूल में बैठकर सबक पढ़ती हैं, कंप्यूटर, माइक्रोस्कोप सिर्फ किताबों में देख पाती हैं. यहां भी 107 बच्चियों पर दो शिक्षिकाएं हैं. यहां पदस्थ माया आर्य ने कहा, 'नई बिल्डिंग हमें मिली ही नहीं, वहां आर्युवेद का अस्पताल चलता है. यहां बच्चों को पढ़ाने में बहुत दिक्कत होती है.
देखें ये वीडियो रिपोर्ट...
प्राइम टाइम : स्कूलों में खाली हैं शिक्षकों के पद, क्यों नहीं हैं हर विषय के शिक्षक?
मध्य प्रदेश : बदहाल शिक्षा व्यवस्था, जर्जर स्कूलों में पढ़ रहे हैं बच्चे
पनवाड़ी से अगला पड़ाव, शासकीय विद्यालय सोमवारिया. स्कूल की बिल्डिंग के कुछ कमरे बांस-बल्लियों पर टिके हैं. 3 क्लास के लिये, 3 शिक्षक हैं. एक कमरा दफ्तर भी, मिड डे मील के लिये रसोई भी, बच्चों की पढ़ाई भी यहीं होती है. यहां काम करने वाले नौशाद खान ने कहा, 'हम एक कक्ष में पढ़ाते हैं, यहीं मिड डे मील होता है, टंकी में हाथ धोते हैं. हिन्दी पढ़ाने वाली दीपशिखा ने कहा, 'दिक्कत आती है, यहां जो पढ़ाती हूं वहां सुनते हैं, सबको बताया है लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. एक कमरे में तीन कक्षाएं चलती हैं, शौचालय है पर छत टूटी है, ऐसे में बच्चों को घर जाना पड़ता है.'
शाजापुर से 60 किलोमीटर दूर आगर-मालवा ज़िले का झौंटा गांव, हमारे आने पर अकेली शिक्षिका परेशान थीं. एक क्लास में यहां भी, 6, 7, 8वीं के बच्चे पढ़ रहे थे. 1999 में यहां स्कूल बना, दस साल बाद नई बिल्डिंग मिली लेकिन यहां दबंग सिंह साहब का परिवार रहता है. स्कूल के हॉल में टीवी, बिस्तर, फ्रिज सब लगा रखा है, खुद के बच्चे को कॉन्वेंट स्कूल भेजते हैं. युवराज सिंह ने ताल ठोंककर कहा, हम यहां स्कूल लगाने देते हैं, जब दिक्कत हो तो लेकिन सिंह साहब की सच्चाई गांव के सरपंच ने खोल दी. झौंटा के सरपंच कुमेर सिंह ने बताया कि 2007 में नई बिल्डिंग बनी है, एक बार खाली करवा चुके हैं. शिक्षक चाभी दे देते हैं, ऐसे में हम क्या करें. कोई ध्यान नहीं देता, कलेक्टर को कार्रवाई करनी चाहिये.
झौंटा से बीजानगरी, यहां 175 बच्चों पर एक शिक्षक हैं. स्कूल एडवांस है, यहां स्मार्ट क्लास के लिये टीवी है, एलसीडी लेकिन इतना स्मार्ट कि सरकार को लगता है टीवी बग़ैर बिजली चल जाएगी. बिजली के बगैर हेडस्टार्ट में आए कंम्यूटर कबाड़ बन चुके हैं. यहां कार्यरत मनोज सागर ने कहा, 'बिजली कनेक्शन नहीं है, पुरानी बिल्डिंग में था. स्मॉर्ट क्लास है लेकिन बिजली नहीं है. 4-5 साल से ऊपर हो गया. यहां सामाजिक विज्ञान के एक शिक्षक जोगचंद सारे विषय देखते हैं, एक क्लास में रहते हैं तो दूसरे शोर मचाते हैं. खाना भी खिलाते हैं, कंप्यूटर कैसे चलाएं.
सरकार शिक्षकों की कमी अतिथि शिक्षकों से पूरी करती थी. एक दो नहीं पूरे 75000, रोजाना 100-150 रुपये देकर. इस बार अप्रैल से योजना नहीं बनी है, लिहाज़ा स्कूल खाली हैं, अतिथि शिक्षक परेशान. पनवाड़ी में बतौर अतिथि शिक्षक काम कर रहे ईश्वर लाल कुंडला ने कहा, 'हम अल्प वेतन में काम कर रहे हैं, लेकिन इस बार कोई आदेश नहीं आया है. प्राइमरी को 2500, मिडिल को 3000-3400, हाई सेंकेंडरी को 4200 रुपये. शिक्षा मंत्री ने अपने ज़िले में नियुक्ति करवा दी है. हम बहुत परेशान हैं.'
मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार ने एक लिखित जवाब में खुद बताया था कि 100234 सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं है. 2016 में संसद में एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें बताया गया कि देश में 1,05,630 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं, जिसमें 17,874 स्कूलों के साथ मध्यप्रदेश सबसे निचली पायदान पर है. राज्य में लगभग 1.23 स्कूल है जहां 50,000 से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं. स्कूली शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह का कहना है कि शिक्षकों की भर्ती, अक्टूबर तक हो जाएगी, हमारा बोर्ड फैसला करेगा. सवा लाख से ज्यादा स्कूल हैं लेकिन हमारे पास सीमित संसाधन हैं. यानी, शिक्षक आएंगे आधा साल बीतने के बाद. बहरहाल तस्वीरें और भी हैं. सिवनी ज़िले के पहाड़ी गांव में स्कूल के प्रिंसिपल को शौचालय में बैठना पड़ता है. वहीं महापुरुषों की तस्वीर लगानी पड़ती है, श्योपुर में बच्चियों को शौचालय की छत पर बैठकर पढ़ना पड़ता है. स्कूली शिक्षा मंत्री शायद हाथ वाला विज्ञान देखकर बता पाएं कि इन स्कूलों के लिये सुविधाएं कब जुटा पाएंगे.
वीडियो : बीमार हैं तो आपको सलाह देगी मध्य प्रदेश सरकार
उकावता से ही 20 किलोमीटर दूर है पनवाड़ी. यहां कैंपस में प्राइमरी, मिडिल, हाई स्कूल सबकुछ है. वैसे कन्या विद्यालय को दस साल पहले इमारत मिली थी. मौजूदा स्कूल के 500 मीटर दूर बोर्ड अभी भी टंगा है. यहां से आर्यभट्ट, कल्पना चावला बनाने की योजना थी. लेकिन दस साल से इसमें अस्पताल चलता है, नवीं की बच्चियां पुराने स्कूल में बैठकर सबक पढ़ती हैं, कंप्यूटर, माइक्रोस्कोप सिर्फ किताबों में देख पाती हैं. यहां भी 107 बच्चियों पर दो शिक्षिकाएं हैं. यहां पदस्थ माया आर्य ने कहा, 'नई बिल्डिंग हमें मिली ही नहीं, वहां आर्युवेद का अस्पताल चलता है. यहां बच्चों को पढ़ाने में बहुत दिक्कत होती है.
देखें ये वीडियो रिपोर्ट...
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मध्य प्रदेश : बदहाल शिक्षा व्यवस्था, जर्जर स्कूलों में पढ़ रहे हैं बच्चे
पनवाड़ी से अगला पड़ाव, शासकीय विद्यालय सोमवारिया. स्कूल की बिल्डिंग के कुछ कमरे बांस-बल्लियों पर टिके हैं. 3 क्लास के लिये, 3 शिक्षक हैं. एक कमरा दफ्तर भी, मिड डे मील के लिये रसोई भी, बच्चों की पढ़ाई भी यहीं होती है. यहां काम करने वाले नौशाद खान ने कहा, 'हम एक कक्ष में पढ़ाते हैं, यहीं मिड डे मील होता है, टंकी में हाथ धोते हैं. हिन्दी पढ़ाने वाली दीपशिखा ने कहा, 'दिक्कत आती है, यहां जो पढ़ाती हूं वहां सुनते हैं, सबको बताया है लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. एक कमरे में तीन कक्षाएं चलती हैं, शौचालय है पर छत टूटी है, ऐसे में बच्चों को घर जाना पड़ता है.'
शाजापुर से 60 किलोमीटर दूर आगर-मालवा ज़िले का झौंटा गांव, हमारे आने पर अकेली शिक्षिका परेशान थीं. एक क्लास में यहां भी, 6, 7, 8वीं के बच्चे पढ़ रहे थे. 1999 में यहां स्कूल बना, दस साल बाद नई बिल्डिंग मिली लेकिन यहां दबंग सिंह साहब का परिवार रहता है. स्कूल के हॉल में टीवी, बिस्तर, फ्रिज सब लगा रखा है, खुद के बच्चे को कॉन्वेंट स्कूल भेजते हैं. युवराज सिंह ने ताल ठोंककर कहा, हम यहां स्कूल लगाने देते हैं, जब दिक्कत हो तो लेकिन सिंह साहब की सच्चाई गांव के सरपंच ने खोल दी. झौंटा के सरपंच कुमेर सिंह ने बताया कि 2007 में नई बिल्डिंग बनी है, एक बार खाली करवा चुके हैं. शिक्षक चाभी दे देते हैं, ऐसे में हम क्या करें. कोई ध्यान नहीं देता, कलेक्टर को कार्रवाई करनी चाहिये.
झौंटा से बीजानगरी, यहां 175 बच्चों पर एक शिक्षक हैं. स्कूल एडवांस है, यहां स्मार्ट क्लास के लिये टीवी है, एलसीडी लेकिन इतना स्मार्ट कि सरकार को लगता है टीवी बग़ैर बिजली चल जाएगी. बिजली के बगैर हेडस्टार्ट में आए कंम्यूटर कबाड़ बन चुके हैं. यहां कार्यरत मनोज सागर ने कहा, 'बिजली कनेक्शन नहीं है, पुरानी बिल्डिंग में था. स्मॉर्ट क्लास है लेकिन बिजली नहीं है. 4-5 साल से ऊपर हो गया. यहां सामाजिक विज्ञान के एक शिक्षक जोगचंद सारे विषय देखते हैं, एक क्लास में रहते हैं तो दूसरे शोर मचाते हैं. खाना भी खिलाते हैं, कंप्यूटर कैसे चलाएं.
सरकार शिक्षकों की कमी अतिथि शिक्षकों से पूरी करती थी. एक दो नहीं पूरे 75000, रोजाना 100-150 रुपये देकर. इस बार अप्रैल से योजना नहीं बनी है, लिहाज़ा स्कूल खाली हैं, अतिथि शिक्षक परेशान. पनवाड़ी में बतौर अतिथि शिक्षक काम कर रहे ईश्वर लाल कुंडला ने कहा, 'हम अल्प वेतन में काम कर रहे हैं, लेकिन इस बार कोई आदेश नहीं आया है. प्राइमरी को 2500, मिडिल को 3000-3400, हाई सेंकेंडरी को 4200 रुपये. शिक्षा मंत्री ने अपने ज़िले में नियुक्ति करवा दी है. हम बहुत परेशान हैं.'
मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार ने एक लिखित जवाब में खुद बताया था कि 100234 सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं है. 2016 में संसद में एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें बताया गया कि देश में 1,05,630 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं, जिसमें 17,874 स्कूलों के साथ मध्यप्रदेश सबसे निचली पायदान पर है. राज्य में लगभग 1.23 स्कूल है जहां 50,000 से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं. स्कूली शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह का कहना है कि शिक्षकों की भर्ती, अक्टूबर तक हो जाएगी, हमारा बोर्ड फैसला करेगा. सवा लाख से ज्यादा स्कूल हैं लेकिन हमारे पास सीमित संसाधन हैं. यानी, शिक्षक आएंगे आधा साल बीतने के बाद. बहरहाल तस्वीरें और भी हैं. सिवनी ज़िले के पहाड़ी गांव में स्कूल के प्रिंसिपल को शौचालय में बैठना पड़ता है. वहीं महापुरुषों की तस्वीर लगानी पड़ती है, श्योपुर में बच्चियों को शौचालय की छत पर बैठकर पढ़ना पड़ता है. स्कूली शिक्षा मंत्री शायद हाथ वाला विज्ञान देखकर बता पाएं कि इन स्कूलों के लिये सुविधाएं कब जुटा पाएंगे.
वीडियो : बीमार हैं तो आपको सलाह देगी मध्य प्रदेश सरकार
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